वस्त्र एवं परिधान उद्योग : समक्ष विद्यमान वैश्विक और घरेलू चुनौतियां

प्रश्न: भारत में वस्त्र एवं परिधान उद्योग द्वारा सामना की जा रही प्रमुख चुनौतियों का उल्लेख कीजिए। उन्हें दूर करने के लिए सरकार द्वारा उठाए गए कुछ कदमों को रेखांकित कीजिए।

दृष्टिकोण:

  • उत्तर के आरम्भ में वस्त्र एवं परिधान उद्योग से संबंधित संक्षिप्त आँकड़े प्रस्तुत कीजिए।
  • इस क्षेत्र के समक्ष विद्यमान वैश्विक और घरेलू चुनौतियों को सूचीबद्ध कीजिए।
  • इन चुनौतियों से निपटने के लिए सरकार द्वारा किए गए उपायों पर चर्चा कीजिए।
  • आगे की राह सुझाते हुए निष्कर्ष प्रस्तुत कीजिए।

उत्तर:

भारतीय वस्त्र उद्योग विश्व में दूसरा सबसे बड़ा विनिर्माता और निर्यातक है। यह विनिर्माण क्षेत्र में 12.65 प्रतिशत और सकल घरेलू उत्पाद में 2.3 प्रतिशत का योगदान करता है। हालांकि वैश्विक वस्त्र निर्यात में इस क्षेत्र की हिस्सेदारी केवल 5 प्रतिशत है। वस्त्र एवं परिधान उद्योग के समक्ष प्रमुख चुनौतियाँ निम्नलिखित हैं :

  • बाह्य चुनौतियाँ 
  • वर्धित प्रतिस्पर्धा: भारतीय वस्त्र उद्योग को बांग्लादेश और वियतनाम जैसे देशों से अधिक टैरिफ (प्रशुल्क) के कारण कड़ी प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ रहा है, क्योंकि इन देशों को प्रमुख बाजारों में शून्य/तरजीही शुल्क पहुंच प्राप्त होती हैं।
  • चीन सम्बन्धी कारक: हाल के वर्षों में चीन ने भारत से किये जाने वाले धागे के आयात में कमी की है क्योंकि अमेरिका द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों के कारण उसका उत्पादन कम हो गया है।
  • घरेलू चुनौतियाँ:
  • उच्च लागत: कपास का उत्पादन करने वाले किसानों की सुरक्षा के प्रयास में केंद्र सरकार ने कपास के न्यूनतम समर्थन मूल्य में 25% की वृद्धि की है। इसके कारण वस्त्र निर्माता (मिलर्स) उच्च दर पर कपास के क्रय हेतु विवश होते हैं।
  • प्रौद्योगिकीय अंतराल: भारत में जहाँ रूई की ओटाई तथा कताई क्षेत्र अंतर्राष्ट्रीय मानकों के अनुरूप हैं, वहीं बुनाई, प्रसंस्करण और कढ़ाई में सीमांत तकनीकी अंतराल तथा हाथ से बुनाई (knitting), तकनीकी वस्त्र और परिधान खंडों में अत्यधिक अंतराल विद्यमान है।
  • लघु एवं मध्यम उद्यमों (SMES) का वर्चस्व: SMEs भारतीय वस्त्र उद्योग के 80% भाग का निर्माण करते हैं। ये खंडित उत्पादन, प्रौद्योगिकी और वित्त तक पहुंच के अभाव जैसे मुद्दों का सामना करते हैं। ये अन्य देशों में बड़ी मिलों के उत्पादन के स्तर और पैमाने का मुकाबला करने में सक्षम नहीं हैं।
  • विद्युत सब्सिडी: आंध्र प्रदेश जैसे कुछ राज्यों में विद्युत सब्सिडी प्रदान करने में विलम्बता के कारण मिलों को बंद करने हेतु विवश होना पड़ा है।
  • घरेलू मांग में गिरावट: घरेलू मांग के स्थिर तथा कम होने से भी वस्त्र उद्योग को हानि हुई है।

सरकार द्वारा किए गए उपाय:

  • कौशल विकास कार्यक्रम: वस्त्र क्षेत्र में क्षमता निर्माण के लिए योजना ‘समर्थ’ (Samarth Scheme For Capacity Building In Textile Sector: SCBTS) द्वारा आगामी वर्षों में 10 लाख लोगों को प्रशिक्षित करने का अनुमान है।
  • वित्तीय सहायता में वृद्धि:
  • मर्चेडाइज एक्सपोर्ट्स फ्रॉम इंडिया स्कीम के तहत प्राप्त छूट दरों को परिधानों के साथ-साथ मेड-अप्स, हैंडलूम और हेंडीक्राफ्ट के लिए विस्तारित किया गया है।
  • वस्त्र क्षेत्र में प्री-पोस्ट-शिपमेंट क्रेडिट के लिए ब्याज समकरण दर (Interest equalization rate) को 3 प्रतिशत से बढ़ाकर 5 प्रतिशत कर दिया गया है।
  • पारंपरिक वस्त्रों को प्रोत्साहन देना: सरकार द्वारा विभिन्न योजनाओं जैसे कि हथकरघा और हस्तशिल्प समूहों के समग्र विकास के लिए राष्ट्रीय हथकरघा विकास कार्यक्रम और राष्ट्रीय हस्तशिल्प विकास कार्यक्रम, व्यापक हथकरघा क्लस्टर विकास योजना (CHCDS) आदि को क्रियान्वित किया गया है।
  • अन्य वस्त्रों का संवर्धन: रेशम, जूट और ऊन के संवर्धन हेतु क्रमश: सिल्क समग्र, जूट एकीकृत विकास योजना (JIDS) और एकीकृत ऊन विकास कार्यक्रम जैसी पहलें प्रारंभ की गयी हैं।
  • प्रौद्योगिकी उन्नयन: संशोधित प्रौद्योगिकी उन्नयन निधि योजना (ATUFS) के तहत वस्त्र उद्योग का प्रौद्योगिकी उन्नयन किया जा रहा है, जिसमें पात्र मशीनरी को एक बार के लिए पूंजी सब्सिडी प्रदान की जाती है।
  • अन्य पहले: पावरलूम बुनकरों के लिए पॉवरटेक्स इंडिया और सार्वजनिक निजी भागीदारी (PPP) मोड में वस्त्र निर्माण के क्लस्टर विकास के लिए एकीकृत वस्त्र पार्क योजना अन्य महत्वपूर्ण पहलें हैं।

आर्थिक महत्व के अतिरिक्त, वस्त्र क्षेत्र का विशिष्ट हथकरघा और वस्त्र-कला रूपों के साथ विरासत मूल्य भी है। इस प्रकार, इस क्षेत्र की प्रतिस्पर्धात्मकता एवं आर्थिक उत्पादन में वृद्धि करने हेतु और अधिक सुधार किए जाने चाहिए।

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