भारत में वस्त्र एवं परिधान उद्योग का एक संक्षिप्त परिचय

प्रश्न: हाल के वर्षों में भारत में वस्त्र एवं परिधान उद्योग पर ध्यान केंद्रित किया गया है। इस उद्योग की संभावित क्षमता और उसे हासिल करने में निहित चुनौतियों की सविस्तार वर्णन कीजिए। इस संबंध में कौन-से कदम उठाए गए हैं? (250 शब्द)

दृष्टिकोण

  • भारत में वस्त्र एवं परिधान उद्योग का एक संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  • वस्त्र उद्योग की संभावित क्षमता एवं चुनौतियों पर चर्चा कीजिए।
  • इस संबंध में उठाए गए कदम एवं आगे की राह की चर्चा कीजिए।

उत्तर

वस्त्र उद्योग भारतीय अर्थव्यवस्था में एक महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन करता है। यह औद्योगिक उत्पादन में 14% और सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में 4% का योगदान करता है। यह देश में रोजगार सृजन का दूसरा सबसे बड़ा स्रोत है। कई देशों उदाहरणार्थ – अमेरिका, ब्रिटेन, चीन इत्यादि का ऐतिहासिक विकास पथ आंतरिक रूप से वस्त्र उत्पादन एवं निर्यात के साथ संबद्ध रहा है। एक गहन रोजगार उद्योग के रूप में वस्त्र उद्योग में अकुशल एवं अर्द्ध कुशल श्रमबल को रोजगार प्रदान करने की क्षमता निहित है। इसके साथ ही, इस उद्योग को आमतौर पर व्यवसायिक चक्रों से संरक्षित किया जाता है, क्योंकि इसमें मांग निरंतर बनी रहती है।

वस्त्र एवं परिधान उद्योग में विकास की बड़ी क्षमता विद्यमान है, जो कि निम्नलिखित कारकों द्वारा संचालित होती है:

  • कच्चे माल एवं कार्यबल की उपलब्धता: भारत विश्व में सबसे बड़ा कपास उत्पादक और दूसरा सबसे बड़ा कपास निर्यातक देश है। भारत की जनसांख्यिकीय क्षमता और असंगठित क्षेत्र में अर्द्ध कुशल कार्यबल की उपस्थिति वस्त्र क्षेत्रक (textile sector) हेतु लाभदायक है।
  • उपभोक्तावाद एवं अवशिष्ट आय: उत्पादों में उल्लेखनीय रूप से वृद्धि होने से एक विशाल घरेलू बाजार का निर्माण हुआ है।
  • सरकारी प्रोत्साहन एवं अनुकूल नीतियां: भारत से वस्तु निर्यात योजना (Merchandise Exports from India Scheme: MEIS), वस्त्र क्षेत्रक में स्वचालित मार्ग के तहत 100% विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (FDI) तथा प्रौद्योगिकी उन्नयन निधि योजना और वस्त्र क्षेत्र में क्षमता निर्माण योजना इत्यादि वस्त्र उद्योग के विकास के प्रमुख संचालक हैं।
  • विशाल कार्यबल: वस्त्र उद्योग संगठित एवं असंगठित क्षेत्र में प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से लगभग 105 मिलियन लोगों को रोजगार प्रदान करता है।
  • संगठित खुदरा बाज़ार की बढ़ती पहुंच, अनुकूल जनसांख्यिकी और निर्यात में वृद्धि द्वारा वस्त्रों की मांग को संचालित करने की संभावना है।
  • फैशन एवं प्रौद्योगिकी का एकीकरण: डिजिटल उपकरणों तथा इंटरनेट तक पहुंच में वृद्धि के कारण लोग (चाहे वे कहीं भी निवास करते हों) ऑनलाइन शॉपिंग का लाभ प्राप्त करते हैं।

उद्योग के समक्ष चुनौतियाँ:

  • अप्रचलित मशीनरी एवं प्रौद्योगिकी: शटल-लेस लूम्स और स्पिंडल (shuttle-less looms and spindles) में घरेलू उत्पादकों की कमी ने इस उद्योग को प्रतिकूल रूप से प्रभावित किया है। वस्त्र मशीनरी के क्षेत्र में अनुसंधान एवं निवेश की कमी एक चिंताजनक विषय है।
  • हथकरघा उद्योग के समक्ष संकट: मशीनीकृत मिलों द्वारा कड़ी प्रतिस्पर्धा और उपभोक्ताओं के परिवर्तित विकल्पों ने हथकरघा उद्योग के अस्तित्व को संकटग्रस्त बना दिया है। हाथ द्वारा बुने हुए पारंपरिक उत्पादों के अप्रचलित होने और बुनाई के कौशल के लुप्त होने का संकट व्याप्त है।
  • विद्युत की कमी: वस्त्र से सम्बंधित लघु एवं मध्यम उद्यम (Small and Medium Enterprises: SMEs) विद्युत की कमी के गहरे संकट का सामना कर रहे हैं।
  • अवैध बाजार: प्रवर्तन एजेंसियों द्वारा अपनाए गए नकली-उत्पाद रोधी उपायों के अभाव के कारण नकली उत्पादों की बिक्री प्रायः असली उत्पादों की तुलना में काफी कम कीमतों पर की जाती है।
  • श्रमिकों के मुद्देः कर्मचारियों की सुरक्षा एवं स्वास्थ्य संबंधी जोखिम, निम्नस्तरीय कार्य-परिवेश और बच्चों का शोषण, कठोर श्रम कानून तथा कौशल अंतराल इत्यादि उद्योग के लिए प्रमुख चुनौतियाँ बनी हुई हैं।
  • कच्चे माल की कमी: कीमतों में उतार-चढ़ाव (fluctuation) और कच्चे माल की उपलब्धता में अनिश्चितताओं के कारण उत्पादन में कमी तथा मिलों की रुग्णता में वृद्धि होती है।
  • पर्यावरण पर प्रतिकूल प्रभावों के कारण पर्यावरण-अनुकूल प्रौद्योगिकियों में निवेश किए जाने की आवश्यकता है।

चुनौतियों से निपटने हेतु सुझाव:

  • सरकार द्वारा एक योजना के अंतर्गत परिकल्पित एकीकृत वस्त्र पार्क की तर्ज पर अवसंरचना का विकास करना।
  • मेक इन इंडिया कार्यक्रम के माध्यम से कार्यबल को कौशल प्रदान करना।
  • कच्चे माल की उपलब्धता और प्रबंधन में वृद्धि करना।
  • वित्तीय सहायता तथा हथकरघों की ब्रांडिंग। अन्य देशों के साथ मुक्त व्यापार समझौतों का पूर्ण लाभ उठाते हुए आपूर्ति श्रृंखला (supply chain) के साथ सुदृढ़ समन्वय स्थापित करना।
  • भारत की क्षमताओं और सामर्थ्य का उन्नयन करना ताकि केवल चीन से ही नहीं बल्कि बांग्लादेश और श्रीलंका जैसे छोटे देशों से भी प्रतिस्पर्धा का सामना किया जा सके।
  • आयातों पर सेफगॉर्ड ड्यूटी आरोपित करना ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि न्यूनतम ड्यूटी के परिणामस्वरूप पूर्वी एशियाई देशों और चीन द्वारा डंपिंग न की जा सके।
  • नवाचार और प्रौद्योगिकी के अनुप्रयोग द्वारा सतत वस्त्र विनिर्माण को प्रोत्साहित करना चाहिए।

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