पर्यावरणीय लेखांकन पद की व्याख्या : भारत में इसकी स्थिति

प्रश्न: ‘पर्यावरणीय लेखांकन’ पद से आप क्या समझते हैं? पर्यावरणीय लेखांकन आरंभ करने के औचित्य की चर्चा करते हुए, भारत में इसकी स्थिति पर प्रकाश डालिए।

दृष्टिकोण

  • पर्यावरणीय लेखांकन पद की व्याख्या कीजिए।
  • पर्यावरणीय लेखांकन आरम्भ करने के औचित्य को रेखांकित कीजिए।
  • भारत में इसकी स्थिति पर चर्चा कीजिए।

उत्तर

पर्यावरणीय लेखांकन रिपोर्टिंग पद्धति में पर्यावरणीय प्रबंधन और संरक्षण के सिद्धांतों को सम्मिलित करने की कार्यप्रणाली को संदर्भित करता है। यह विशेष रूप से पर्यावरणीय संरक्षण से निर्देशित गतिविधियों के लिए एक उद्यम की लागत और लाभ का सर्वोत्तम  संभावित मात्रात्मक मूल्यांकन करने का प्रयास करता है।

यह एक संगठन को उसकी आपूर्ति श्रृंखला से सुविधाओं के विस्तार तक प्रत्येक चरण में पारिस्थितिक रूप से संधारणीय पद्धतियों के प्रभावों के आकलन का प्रावधान करता है। पर्यावरणीय लेखांकन का एक क्रियाशील उदाहरण क्योटो प्रोटोकॉल है जो कार्बन उत्सर्जन का मापन करता है।

औचित्य और महत्व:

  • यह परंपरागत लेखांकन पद्धतियों से भिन्न होता है, जिनका सामान्यत: एक आयामी दृष्टिकोण होता है और केवल एक संगठन के वास्तविक प्रभावों का लाभ और हानि की लेखांकन विधियों के माध्यम से मापन करते हैं।
  • पारिस्थितिकीय लेखांकन के विपरीत यह मौद्रिक रूप में एक कंपनी पर प्राकृतिक पर्यावरण के प्रभावों का आकलन करता है, जिसमें भौतिक माप में पर्यावरण पर प्रभाव का मापन किया जाता है।
  • यह संदूषित स्थलों की साफ-सफाई या उपचार की लागत, पर्यावरण जुर्मानों, दंड, करों तथा प्रदूषण रोकथाम प्रौद्योगिकियों की खरीद एवं अपशिष्ट प्रबंधन लागत की जाँच करता है।
  • यह पर्यावरण संबंधी जोखिम में परिवर्तित होने वाले गंभीर पर्यावरणीय विस्थापन और परिणामों को रोकने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
  • पर्यावरणीय संसाधनों का उपयोग करते समय यह उपभोक्ताओं, व्यवसायिक साझेदारों, निवेशकों और कर्मचारियों जैसे हितधारकों के प्रति संगठनों के उत्तरदायित्व को पूरा करने में सहायता करता है।
  • यह उपभोक्ताओं को प्रोत्साहित करता है और उन्हें ‘हरित उत्पाद (green products)’ खरीदने में सहायता करता है, इस प्रकार उपभोक्ता और कॉर्पोरेट दोनों लाभान्वित होते हैं।

भारतीय परिदृश्य 

  • भारत में पर्यावरणीय लेखांकन के लिए वैधानिक ढांचा भारतीय संविधान के अनुच्छेद 51A से सृजित होता है, जो प्रत्येक नागरिक पर प्राकृतिक पर्यावरण की सुरक्षा और इसे बेहतर बनाने हेतु मौलिक कर्तव्य आरोपित करता है।
  • इसके अतिरिक्त, पर्यावरण संरक्षण अधिनियम जैसे विभिन्न कानूनों और विधानों के माध्यम से औद्योगिक इकाइयों के लिए पर्यावरण संबंधी सूचनाओं को प्रकट करना आवश्यकता बनाया गया है। उदाहरण के लिए- मारुति उद्योग लिमिटेड निगरानी एजेंसियों के साथ पेंट शॉप और इंजन टेस्टिंग शॉप में नॉन-मीथेन हाइड्रोकार्बन पर डेटा साझा करता है।
  • वर्तमान में पर्यावरणीय प्रभाव मूल्यांकन (Environmental impact assessment: EIA) को विकास गतिविधियों की कुछ श्रेणियों के लिए पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 के अंतर्गत अनिवार्य बना दिया गया है।
  • भारत SDG # 13 और SDG # 15 की दिशा में कार्य कर रहा है जो प्रत्यक्ष रूप से पारिस्थितिक तंत्र को संरक्षित, समर्थन करने तथा जलवायु परिवर्तन को कम करने से संबंधित है।

यद्यपि पर्यावरणीय लेखांकन की अवधारणा मानक लेखा पद्धतियों का न होना, निम्नस्तरीय मूल्यांकन तकनीक, दीर्घकालिक प्रक्रिया और उद्योगों से संबंधित विश्वसनीय डेटा की कमी जैसी कुछ समस्याओं से ग्रसित है, परन्तु फिर भी यह “विकास” के निष्पक्ष मूल्यांकन तक पहुंचने और पर्यावरणीय पारदर्शिता को बढ़ावा देने हेतु एक महत्वपूर्ण उपकरण के रूप में उभर रहा है।

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