राज्यों का पुनर्गठन : स्वतंत्रता के बाद राज्यों के पुनर्गठन के विभिन्न चरण
प्रश्न: स्वातंत्र्योत्तर भारत में राज्यों का पुनर्गठन अलग-अलग सहायक कारकों के साथ एक सतत प्रक्रिया रही है। विश्लेषण कीजिए।
दृष्टिकोण
- स्वतंत्रता के ठीक पश्चात राज्यों की स्थिति का संक्षिप्त विवरण दीजिए तथा राज्यों के पुनर्गठन के प्रारम्भ का वर्णन कीजिए।
- इसके पश्चात स्वतंत्रता के बाद राज्यों के पुनर्गठन के विभिन्न चरणों का वर्णन करते हुए योगदान करने वाले विभिन्न कारकों को स्पष्ट कीजिए।
- अंत में यह समझाइए कि भारत में राज्यों का पुनर्गठन एक सतत प्रक्रिया क्यों रही है।
उत्तर
स्वतंत्रता के बाद भारत को लगभग 565 रियासतों का समेकन एवं एकीकरण करना था। साथ ही साथ राज्यों की सीमाओं का पुनर्गठन भी करना था क्योंकि ब्रिटिश शासन के अंतर्गत सीमांकन समुचित तरीके से नहीं किया गया था। विभिन्न प्रान्तों में यह माँग उठने लगी कि राज्यों का पुनर्गठन भाषाई आधार पर हो। धर आयोग और जे.वी.पी. समिति (जे.एल. नेहरू, वी.बी. पटेल, पी. सीतारमैया) ने राज्यों के पुनर्गठन के आधार के रूप में भाषायी आधार से अधिक प्रशासनिक आधार को महत्व दिया।
इसके बाद भाषायी आधार पर सीमाओं के पुनर्निर्धारण की मांग और अधिक उठने लगी, जिसके परिणामस्वरूप कई आंदोलन और हिंसक घटनाएँ हुईं। प्रथम भाषायी राज्य का गठन पोट्टि श्रीरामुलु की मृत्यु के बाद 1953 में मद्रास से तेलुगु भाषी आंध्र प्रदेश को अलग करके किया गया था। इसके बाद एक आयोग की स्थापना की गई और इसके आधार पर 1956 में राज्य पुनर्गठन अधिनियम पारित किया गया। इसके तहत 14 राज्यों और 6 केंद्र शासित प्रदेशों का गठन किया गया।
राज्यों के पुनर्गठन के चरण और योगदान करने वाले विभिन्न कारक:
- आंध्र प्रदेश के गठन के बाद 1960 में बंबई राज्य को दो राज्यों में विभाजित किया गया – महाराष्ट्र और गुजरात। यह विभाजन भाषायी आधार पर किया गया था।
- 1963 में असम राज्य के जनजातीय क्षेत्रों को मिलाकर नागालैंड राज्य का निर्माण किया गया। यह सांस्कृतिक विविधताओं के आधार पर किया गया था और आदिवासियों की अनूठी संस्कृति को संरक्षित करने के उद्देश्य से किया गया था।
- 1966 में पंजाब राज्य को भाषायी आधार पर पुनर्गठित किया गया। पंजाबी भाषी क्षेत्रों का गठन पंजाब राज्य जबकि हिंदी भाषी क्षेत्रों का गठन एक नए राज्य हरियाणा के रूप में किया गया तथा इसके पहाड़ी क्षेत्रों को निकटवर्ती केंद्र शासित प्रदेश हिमाचल प्रदेश में मिला दिया गया।
- मेघालय का गठन 1969 में किया गया। मणिपुर और त्रिपुरा को 1972 में राज्य का दर्जा प्रदान किया गया। 1975 में सिक्किम को भारत के 22वें राज्य के रूप में स्वीकार किया गया। मिजोरम, अरुणाचल प्रदेश और गोवा 1987 में राज्य बने। पूर्वोत्तर राज्यों के इस पुनर्गठन में संस्कृतियों का संरक्षण तथा नृजातीयता में अंतर प्रमुख कारक बने। प्रशासन में स्वायत्तता की मांग भी एक अन्य प्रमुख कारक था।
- वर्ष 2000 में छत्तीसगढ़, उत्तराखंड और झारखंड का निर्माण किया गया। 2014 में तेलंगाना का निर्माण हुआ। आधुनिक समय में राज्यों के पुनर्गठन में प्रशासनिक सहजता तथा क्षेत्रीय असमानता एक सुदृढ़ कारक के रूप में उभरे हैं।
यद्यपि, भारत में राज्यों के पुनर्गठन का कार्य अभी तक पूर्ण नहीं हुआ है और यह एक सतत प्रक्रिया है। वर्तमान में भारत में स्वायत्तता तथा राज्य का दर्जा प्राप्त करने के लिए कई मांगें उठ रही हैं और लंबे समय से संघर्ष चल रहे हैं। दार्जिलिंग के पहाड़ी क्षेत्रों के लोगों द्वारा गोरखालैंड राज्य की मांग; बोडो छात्र संघ द्वारा बोडोलैंड राज्य की मांग; मेघालय राज्य से गारोलैंड राज्य की मांग और उत्तर प्रदेश राज्य को चार राज्यों, नामत: बुंदेलखंड, पूर्वांचल, पश्चिमांचल व अवध प्रदेश में विभाजित करने की माँग ज़ोर पकड़ रही है।
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सिन्धी राज्य क्यों नहीं बनाया गया ,आज देश में लगभग 1 करोड़ 30 लाख सिन्धी बस रहे है जिनकी भाषा ,संस्कृति प्रान्त न होने कारण लुप्त हो सकती है ,सिन्धी समाज का देश के विकास में बहुत बड़ा योगदान रहा है ,सर्कार को इस पर विचार करना चाहिए .
वन्देमातरम