वेतन आयोग : कार्य-निष्पादन के अनुसार पारितोषिक की समीक्षा

प्रश्न: पारितोषिक संशोधन के दौरान कार्य-निष्पादन की समीक्षा एक आधारभूत कारक होनी चाहिए। इस संदर्भ में, सरकारी कर्मचारियों के लिए वेतन संबंधी संशोधनों का सुझाव देने हेतु प्रत्येक दस वर्ष पर वेतन आयोग के गठन की प्रथा पर आलोचनात्मक चर्चा कीजिए।

दृष्टिकोण

  • संक्षेप में वेतन आयोगों की व्याख्या कीजिए।
  • कार्य-निष्पादन के अनुसार पारितोषिक की समीक्षा किये जाने का कारण बताइए।
  • वेतन आयोगों से संबंधित नकारात्मक पहलुओं पर चर्चा कीजिए।
  • आगे की राह बताते हुए उत्तर को समाप्त कीजिए।

उत्तर

केंद्रीय वेतन आयोग (CPC) (साथ ही राज्य वेतन आयोग) की स्थापना विभिन्न असैन्य और सैन्य विभागों के कर्मचारियों के वेतन और पेंशन की समीक्षा एवं इसमें परिवर्तनों का सुझाव देने के लिए एक निश्चित अंतराल पर सरकार द्वारा की जाती है। स्वतन्त्रता के बाद से, सात बेतन आयोगों का गठन किया जा चुका है तथा सातवें वेतन आयोग की सिफारिशों को 2016 में सरकार द्वारा स्वीकार किया गया था।

एक न्यायोचित पारितोषिक की आशा स्वाभाविक रूप से प्रत्येक व्यक्ति के कार्य में अंतर्निहित होती है। जोखिम लेने वाले, नवाचारियों, उच्च कार्य निष्पादकों को प्रोत्साहित करने तथा निम्न कार्य निष्पादकों को अनुशासित करने के उद्देश्य से दिया जाने वाला पारितोषिक उनके प्रयासों के सापेक्ष होना चाहिए।
वर्तमान प्रणाली के अंतर्गत, CPC सभी के लिए एक समान रूप से वेतन वृद्धि की अनुशंसा करता है जिसमें कार्य निष्पादन के मूल्यांकन हेतु अधिक स्थान नहीं बचता।

अन्य संबंधित मुद्दे:

  • वेतन आयोग की अनुशंसाओं को लागू करने के बाद आगामी कुछ वर्ष केंद्र और राज्यों के लिए वित्तीय रूप से अत्यधिक दबावपूर्ण होते हैं। उदाहरण के लिए 2009-10 में, छठे वेतन आयोग की अनुशंसाओं के क्रियान्वयन के पश्चात वित्तीय घाटा 6% से अधिक हो गया। अभी हाल ही में, सातवें वेतन आयोग के कारण, वित्तीय वर्ष 2017 में दी गई अतिरिक्त वेतन राशि GDP का लगभग 0.65% थी।
  • इसके द्वारा दी जाने वाली अनुशंसाएं इसके सदस्यों के पूर्वाग्रह से प्रभावित हो सकती हैं। उदाहरण के लिए इसी आधार पर 2014 में, कुछ सेवानिवृत्त अधिकारियों ने सातवें केंद्रीय वेतन आयोग में एक IAS अधिकारी की नियुक्ति को दिल्ली उच्च न्यायालय में चुनौती दी थी।
  • वेतन आयोग के गठन, इसके क्रियान्वयन, और इसके गठन के समय (टाइमिंग) का राजनीतिक लाभ उठाया जा सकता है और यह आयोग के स्वतंत्र एवं निष्पक्ष रूप से कार्य करने में व्यवधान उत्पन्न कर सकता है।

इस संदर्भ में, निम्नलिखित परिवर्तन वांछनीय हैं:

  • एक जोखिम-पुरस्कार आधारित वार्षिक पारितोषिक प्रणाली का विकास
  • कर्मचारियों के कार्यकाल की सुरक्षा ताकि उनके कार्य निष्पादन का समुचित मूल्यांकन किया जा सके। वर्तमान में, बार-बार होने वाले स्थानान्तरण कार्य के मूल्यांकन को बाधित करते हैं।
  • केंद्र और राज्य की उच्च नियुक्तियों व पदस्थापनाओं के लिए मात्र वरिष्ठता ही नहीं अपितु सक्षमता व योग्यता भी महत्वपूर्ण मापदंड होने चाहिए।
  • व्यक्ति के साथ-साथ विभाग के कार्य निष्पादन का मूल्यांकन करने के लिए वार्षिक लक्ष्यों व दीर्घावधिक योजनाओं को अपनाया जाए- इसके लिए निजी क्षेत्र में लागू निष्पादन प्रबंधन प्रणालियों से सीख ली जा सकती है।
  • सूचना की पारदर्शिता को बढ़ावा देने के लिए नौकरी की सुरक्षा, मूर्त व अमूर्त अनुलाभ तथा कॉस्ट-टू-गवर्नमेंट आदि का मूल्य निर्धारण किया जाना चाहिए- सरकारी अधिकारी प्राय: निजी क्षेत्र की तुलना में कम वेतन होने की शिकायत करते हैं।

सातवें वेतन आयोग के अध्यक्ष श्री ए. के. माथुर ने सुझाव दिया कि भारत में स्पेन, सिंगापुर, जर्मनी और अन्य देशों में प्रचलित उत्पादकता व परिणाम आधारित प्रणालियों का अनुकरण करते हुए, वेतन आयोग की नियुक्ति की परंपरा के स्थान पर भिन्न कार्य-निष्पादनों के लिए भिन्न वेतन वाली व्यवस्था अपनायी जानी चाहिए, जिसकी समयबद्ध समीक्षा हो।’ इसके अतिरिक्त, वेतन आयोग पदस्थापना, प्रोन्नति, कार्य-निष्पादन की समीक्षा आदि से संबंधित अनेक अनुशंसाएं करते हैं जिन पर विशेष ध्यान नहीं दिया जाता। अत:, मात्र वेतन और पेंशन संबंधी अनुशंसाओं तक ही सीमित न होकर, CPC की अन्य व्यापक पहलुओं से संबंधित अनुशंसाओं को भी स्वीकार किया जाना चाहिए।

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