फसल पद्धति की एक संक्षिप्त अवधारणा

प्रश्न: किसी कृषि क्षेत्र में फसल पद्धति को निर्धारित करने वाले कारकों को सूचीबद्ध कीजिए। भारत में एकल फसली क्षेत्रों द्वारा सामना की जा रही समस्याओं के संदर्भ में फसल विविधीकरण की आवश्यकता की चर्चा कीजिए।

दृष्टिकोण

  • सर्वप्रथम, फसल पद्धति की एक संक्षिप्त अवधारणा दीजिए।
  • तत्पश्चात कृषि क्षेत्र में फसल पद्धति को निर्धारित करने वाले कारकों को चिन्हित कीजिए।
  • भारत में एक फसली क्षेत्रों द्वारा सामना की जा रही समस्याओं का उदाहरण सहित उल्लेख कीजिए।
  • अंत में, भारत में फसलों के विविधीकरण की आवश्यकता पर चर्चा कीजिए।

उत्तर

फसल पद्धति से आश्य भिन्न-भिन्न समयों पर विभिन्न फसलों के अंतर्गत कृषि क्षेत्र के अनुपात से है। यह एक विशेष भूमि क्षेत्र में समय और स्थानिक व्यवस्था या फसलों के अनुक्रम को भी इंगित करता है और इस प्रकार, यह एक गतिशील अवधारणा है।

फसल पद्धति को निर्धारित करने वाले विभिन्न कारक:

  • सिंचाई, वर्षा और मृदा उर्वरता क्षमता को सम्मिलित करने वाले संसाधन सम्बन्धी कारक।
  • तकनीक सम्बन्धी कारकों में बीज, उर्वरक, जल प्रौद्योगिकियाँ और विपणन, भंडारण तथा प्रसंस्करण भी सम्मिलित हैं।
  • गृहस्थी सम्बन्धी कारकों में खाद्य व चारा आत्मनिर्भरता की आवश्यकता, निवेश क्षमता और किसी विशेष फसल के लिए प्राथमिकता आदि सम्मिलित हैं।
  • मूल्य सम्बन्धी कारक आउटपुट और इनपुट कीमतों के साथ-साथ उन व्यापार नीतियों और अन्य आर्थिक नीतियों को कवर करते हैं, जो इन कीमतों को प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से प्रभावित करती हैं।
  • जोत का आकार और काश्तकारी व्यवस्था, अनुसंधान, विस्तार एवं विपणन प्रणाली तथा सरकारी नियामकीय नीतियों को शामिल करने वाले संस्थागत और आधारभूत संरचना संबंधी कारक।
  • व्यवहारात्मक कारक – अंततः यह किसान ही है जो किसी विशेष फसल से अपेक्षित रिटर्न का मूल्यांकन करता है और इसके उत्पादन का चयन करता है। ये अपेक्षित रिटर्न वास्तविक से अधिक अवधारणात्मक हैं – भले ही दालों से किसानों को अधिक रिटर्न प्राप्त हो सके, लेकिन इसके लिए एक खुली खरीद प्रणाली की अनुपस्थिति उन्हें अनाज फसलों की कृषि की ओर प्रेरित करती है।

भारतीय कृषि अनुपयुक्त रूप से एकल फसली पद्धति के पक्ष में है। एकल फसली पद्धति में एक समय (सामान्यतः निरंतर अनेक वर्षों के लिए) में एक प्रकार की फसल की कृषि के लिए भूमि का उपयोग होता है। उदाहरण के लिए, 2014-15 तक ओडिशा में फसल क्षेत्र का 80 प्रतिशत चावल के अंतर्गत रहा है, वहीं दालों के अंतर्गत लगभग 10 प्रतिशत और अन्य खाद्य फसलों के तहत लगभग 4 प्रतिशत रहा है। पंजाब में भी गेहूं और धान राज्य के कृषि योग्य क्षेत्र का 83 प्रतिशत कवर करते हैं।

पहली हरित क्रांति के साथ-साथ दोषपूर्ण MSP प्रणाली और उर्वरक नीति जैसी नीतियां भारत में एकल फसली पद्धति के विकास के लिए उत्तरदायी हैं एकल फसली पद्धति से संबंधित मुद्दे निम्नलिखित हैं:

  • फसल असंतुलन,
  • उत्पादकता में गिरावट,
  • निम्न उर्वरक प्रतिक्रिया अनुपात,
  • मृदा के स्वास्थ्य में गिरावट ने कृषि रोजगार को कम किया,और
  • उपज की लाभप्रदता में कमी।

इसलिए फसल विविधीकरण को प्रोत्साहित किए जाने की आवश्यकता है। उच्च मूल्य वाली फसलों, बागवानी फसलों आदि में विविधता लायी जानी चाहिए। इससे न केवल मृदा के स्वास्थ्य, उत्पादकता और कृषि के आर्थिक उत्पादन में सुधार होगा अपितु उपलब्ध कृषि इनपुट का उपयोग कर पोषण सुरक्षा और दक्षता प्राप्त करने में भी सहायता मिलेगी। सरकार इस दिशा में कई कदम उठा रही है जैसे कि फसल विविधीकरण कार्यक्रम, राष्ट्रीय बागवानी मिशन, एवं सूक्ष्म सिंचाई प्रणाली को अपनाना व प्रोत्साहन देना आदि।

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