महासागरीय जल के घनत्व का एक सामान्य अवलोकन : घनत्व अक्षांश में परिवर्तन के साथ परिवर्तित होता है।

प्रश्न: महासागरीय जल के घनत्व को निर्धारित करने वाले कारकों की पहचान कीजिए। घनत्व के अक्षांशीय वितरण पर चर्चा कीजिए और इसमें होने वाले मौसमी परिवर्तनों (यदि कोई हो) की व्याख्या कीजिए। साथ ही, महासागरीय धाराओं के साथ इसके संबंध को उदाहरण प्रस्तुत करते हुए समझाइए। (150 शब्द)

दृष्टिकोण

  • महासागरीय जल के घनत्व का एक सामान्य अवलोकन प्रस्तुत कीजिए।
  • इसके लिए उत्तरदायी कारकों को सूचीबद्ध कीजिए।
  • उल्लेख कीजिए की किस प्रकार घनत्व अक्षांश में परिवर्तन के साथ परिवर्तित होता है।
  • इसके साथ ही मौसम में परिवर्तन के साथ घनत्व में परिवर्तन तथा महासागरीय धाराओं के साथ इसके संबंध की चर्चा कीजिए।

उत्तर

महासागरीय जल का घनत्व मुख्य रूप से तापमान, लवणता और दाब के द्वारा निर्धारित होता है। हालांकि, अन्य क्षेत्रीय कारक भी जल के घनत्व को निर्धारित करते हैं। ये कारक महासागरीय जल के ऊर्ध्वाधर संचलन को नियंत्रित करते हैं, जिसके परिणामस्वरूप घनत्व के आधार पर महासागरीय जल का स्तरीकरण निर्धारित होता है।

  • तापमान: यह महासागरीय जल की सतह और वायुमंडल के मध्य ऊष्मा विनिमय पर निर्भर करता है। उच्च तापमान पर जल का प्रसार होता है तथा इसका घनत्व कम हो जाता है, जबकि निम्न तापमान पर जल के घनत्व में वृद्धि होती है। इस प्रकार, भूमध्यरेखा के समीपवर्ती क्षेत्रों की अपेक्षा ध्रुवों पर जल का घनत्व अधिक होता है।
  • लवणता: उच्च लवणता युक्त महासागरीय जल का घनत्व भी अधिक होता है और प्रायः यह कम लवणता युक्त जल के नीचे बैठ जाता है, इससे जल का स्तरीकरण होता है।
  • दाब: बढ़ता घनत्व गहरे महासागर में मौजूद अत्यधिक दाब के तहत महासागरीय जल की संपीडित होने की क्षमता को प्रदर्शित करता है।
  • अन्य कारक: वर्षा जल, महासागरों की ओर प्रवाहित होने वाली नदियों द्वारा लाया गया सतही जल, बर्फ से पिघला हुआ जल इत्यादि ऐसे अन्य सूक्ष्म कारक हैं जो जल के घनत्व में कमी करते हैं। जबकि वाष्पीकरण, सतही जल का ठंडा होना और बर्फ निर्माण की प्रक्रिया महासागरीय जल के घनत्व में वृद्धि करते हैं। आंशिक अथवा पूर्ण रूप से बंद महासागरों का जल अपने समीपवर्ती स्थित जलीय निकायों के साथ अंतर्मिश्रित नहीं हो पाता है। भूमध्य रेखा के आस-पास क्षेत्रों में उच्च वाष्पीकरण के परिणामस्वरूप उच्च घनत्व पाया जाता है जबकि ध्रुवों के निकट निम्न वाष्पीकरण के कारण अपेक्षाकृत कम घनत्व पाया जाता है।

अक्षांशीय विभिन्नता

20 डिग्री और 30 डिग्री उत्तरी एवं दक्षिणी अक्षांशों के मध्य, वाष्पीकरण की उच्च दर के कारण जल में उच्च लवणता पाई जाती है, जिसके कारण जल के घनत्व में वृद्धि होती है।

  • 45 डिग्री उत्तरी एवं दक्षिणी अक्षांशों तथा ध्रुवों के मध्य महासागरीय सतही जल का तापमान कम हो जाता है। सतही जल का निम्न तापमान उच्च घनत्व को प्रदर्शित करता है।
  • उच्च दैनिक वर्षा तथा उच्च सापेक्ष आर्द्रता के कारण भूमध्यरेखीय जल में औसतन 35% से भी कम लवणता पाई जाती है।

मौसमी परिवर्तन

चूंकि जल की लवणता, तापमान और घनत्व परस्पर संबंधित हैं; किसी भी एक कारक में होने वाला परिवर्तन अन्य कारकों को भी प्रभावित करता है। उदाहरण के लिए, लाल सागर में लवणता की अधिकता 41 ppt है, जबकि आर्कटिक सागर में यह मौसमी आधार पर 0-35 ppt के मध्य परिवर्तित होती रहती है। उष्ण एवं शुष्क क्षेत्रों में, जहां वाष्पीकरण की दर अधिक होती है, लवणता का स्तर कभी-कभी 70 ppt तक पहुंच जाता है। वर्षा के साथ-साथ गर्मियों में बर्फ के पिघलने के कारण महासागरीय लवणता में कमी हो जाती है।

महासागरीय धाराओं के साथ संबंध

निम्न लवणता एवं घनत्व वाला जल, उच्च लवणता वाले जल की सतह पर प्रवाहित होता है, जबकि महासागरों की गहराई में उच्च लवणता वाला जल कम लवणता वाले जल की ओर प्रवाहित होता है। उदाहरणार्थ- अटलांटिक महासागर का निम्न लवणता वाला जल संलग्न भूमध्य सागर की सतह पर प्रवाहित होता है जिसकी प्रतिपूर्ति भूमध्यसागर के उच्च घनत्व वाले नितलीय जल के बहिर्वाह द्वारा होती है।

उत्तरी अटलांटिक महासागर में, गल्फ स्ट्रीम, कनारी धारा और उत्तरी भूमध्यरेखीय धारा द्वारा जायर (gyre) के निर्माण के कारण लवणता में वृद्धि होती है।

इसके अतिरिक्त जिन क्षेत्रों में महासागरीय धाराओं का अभिसरण होता है, वहां अपेक्षाकृत उच्च घनत्व वाला जल नीचे की ओर प्रवाहित होता है, जबकि अपसरण वाले क्षेत्रों में, उच्च घनत्व और निम्न तापमान वाले नितलीय जल का सतह की ओर संचलन होता है।

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