अल्प-रोजगार की अवधारणा और भारत में उसके विस्तार की संक्षेप में व्याख्या
प्रश्न: वर्तमान में भारत के समक्ष मुख्य समस्या बेरोजगारी नहीं अपितु अल्प-रोजगार है। सविस्तार वर्णन कीजिए। साथ ही, इस समस्या के प्रत्युत्तर हेतु कुछ उपाय सुझाइए।
दृष्टिकोण
- अल्प-रोजगार की अवधारणा और भारत में उसके विस्तार की संक्षेप में व्याख्या कीजिए।
- चर्चा कीजिए कि कैसे बेरोजगारी की अपेक्षा अल्प-रोजगार एक बड़ी चुनौती है और इस समस्या के प्रत्युत्तर हेतु कुछ उपायों को सूचीबद्ध कीजिए।
उत्तर
अल्प-रोजगार किसी अर्थव्यवस्था में बेरोजगारी और श्रम उपयोग का एक मापन है। यह तब होता है जब कामगारों को पूर्ण रोजगार सामर्थ्य प्राप्त नहीं होता है अर्थात् वे अपने अर्जित कौशल की अपेक्षा निम्न वेतन या निम्न कौशल वाला कार्य करते हैं। नीति आयोग के तीन वर्षीय एक्शन एजेंडा के अनुसार, भारत के समक्ष बेरोजगारी की तुलना में गंभीर अल्प-रोजगार मुख्य समस्या है। NSSO सर्वेक्षण के द्वारा स्पष्ट किया गया है कि 2011 में श्रम बल का 49% कृषि क्षेत्र में नियोजित था जबकि वर्तमान मूल्यों पर भारत की GDP में इस क्षेत्र का योगदान केवल 17% है।
इस प्रकार भारत की संवृद्धि के रोजगारविहीन होने के दावों के विपरीत NSSO के आंकड़ों ने तीन दशकों से अधिक समय से निरंतर बेरोजगारी की निम्न और स्थिर दर को ही दर्ज किया है। निम्नलिखित कारणों से अल्प-रोजगार एक गंभीर समस्या बना हुआ है:
- सामाजिक कारक: अत्यधिक जनसंख्या और सामाजिक दबाव लोगों को उनके कौशल स्तर से नीचे के रोजगार प्राप्त करने के लिए विवश करते हैं।
- टेक्नो-इकोनॉमिकल- आर्थिक प्रगति और प्रौद्योगिकी परिवर्तन के फलस्वरूप मशीनों और प्रौद्योगिकी द्वारा प्रारंभिक स्तर के रोजगार को प्रतिस्थापित कर दिया जाता है, जिससे मौजूदा कौशल समूह अप्रचलित हो जाते हैं।
- मानव पूंजी का निम्न उपयोग-उच्च उत्पादकता वाले रोजगारों की कमी के परिणामस्वरूप नियोजित जनसंख्या की उत्पादक क्षमता का पूर्ण उपयोग नहीं हो पाता है। रोजगार के दौरान प्रशिक्षण के माध्यम से कौशल का समयबद्ध उन्नयन न होना। इसके साथ ही कई मामलों में दोहरे प्रशिक्षण के कारण उत्पादक समय और संसाधनों को अवांछित दिशा में मोड़ दिया जाता है।
- जीवन स्तर गुणवत्ता: अल्प-रोजगार, जीवन स्तर की अपेक्षा और वास्तविकता के मध्य अंतराल को बढ़ा देता है।
- नागरिक अशांति और हिंसा: हरियाणा, महाराष्ट्र में घटित हुई विभिन्न हिंसक घटनाएँ केवल बेरोजगारी के कारण नहीं बल्कि अल्प-रोजगार के कारण भी हुई हैं।
- मध्यमता (mediocrity) को प्रोत्साहन: अच्छी नौकरियों तक पहुँच की कमी भी लोगों को उन्नत कौशल प्राप्त करने से हतोत्साहित करती है। इससे देश की नवाचार क्षमता को नुकसान पहुँचता है।
- अन्य मुद्दे: विकसित देशों की ओर प्रतिभा पलायन, कम आत्म-सम्मान, मौजूदा नौकरी की प्रोफाइल को लेकर निम्न अभिप्रेरणा, विभिन्न भावनात्मक समस्याओं के कारण बढ़ता तनाव और उच्च रक्तचाप, अवसाद जैसी बीमारियाँ आदि।
अतः उच्च उत्पादकता और अधिक वेतन वाले रोजगार के सृजन की आवश्यकता है। यह निम्नलिखित उपायों द्वारा प्राप्त किया जा सकता है:
- नए बाजारों की खोज: मेक इन इंडिया अभियान के तहत निर्मित वस्तुओं के लिए वैश्विक बाजारों का उपयोग करने से सार्थक रोजगार सृजन करने में सहायता मिलेगी।
- तटीय रोजगार/कृषि प्रसंस्करण/निर्यात क्षेत्र: यह श्रम-केंद्रित क्षेत्रों में बहुराष्ट्रीय कंपनियों को आकर्षित करेगा। यह कृषि और संबद्ध क्षेत्रों को विनिर्माण तथा सेवा क्षेत्र से जोड़ देगा एवं छोटी और मध्यम फर्मों को अत्यधिक उत्पादक बना देगा। इससे अच्छे वेतन वाले रोजगारों की संख्या बढ़ जाएगी।
- श्रम कानूनों में सुधार: उदाहरणार्थ: अर्थव्यवस्था के सभी क्षेत्रों में निश्चित अवधि के रोजगार का विस्तार करना।
- आयात प्रतिस्थापन: यह उच्च सुरक्षा कवच निर्मित कर अपेक्षाकृत छोटी फर्मों के समूह के विकास में सहायक होगा और रोजगार का सृजन करेगा।
- अप्रैटिसशिप ऐक्ट में संशोधन: यह प्रशिक्षुओं को अपने कौशल को बढ़ाने हेतु उद्योगों में प्रशिक्षण लेने में सक्षम करेगा।
- अत्यधिक उत्पादक क्षेत्रों में क्षेत्र विशिष्ट पहलों को शामिल करना: पर्यटन, खाद्य प्रसंस्करण, वित्तीय सेवाओं, रत्न और आभूषण जैसे क्षेत्रों में।
समग्र रूप से, तीव्र परिवर्तन करने में सफल हुए कुछ देशों जैसे दक्षिण कोरिया, ताइवान, सिंगापुर और चीन का अनुभव यह दर्शाता है कि विनिर्माण क्षेत्र में निवेश और विशाल वैश्विक बाजार में प्रतिस्पर्धा करने की क्षमता, निम्न और अर्द्ध कुशल श्रमिकों के लिए उच्च वेतन वाले रोजगारों के सृजन हेतु महत्वपूर्ण है। अत्यधिक श्रम बल एवं प्रतिस्पर्धी मजदूरी जैसी घरेलू अनुकूल परिस्थितियों के माध्यम से भारत को उपलब्ध अवसरों का लाभ उठाने की आवश्यकता है।
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