“यद्यपि उत्तर प्रदेश ने असहयोग आन्दोलन के विस्तार को गति प्रदान किया लेकिन इसी ने (उत्तर प्रदेश) इसकी गति को रोक भी दिया।” चर्चा करें।

उत्तर की संरचनाः

भूमिका:

  • खिलाफत आंदोलन एवं असहयोग आंदोलन के अंतर्सबंध के संदर्भ में भूमिका लिखें।

मुख्य भाग:

  • संक्षेप में बताएं कि किस प्रकार असहयोग आंदोलन को खिलाफत के एक शस्त्र के रूप में प्रयोग किया गया।
  • उत्तर प्रदेश में असहयोग आंदोलन के प्रसार को बताएं।
  • बताएं कि किस प्रकार उत्तर प्रदेश (चौरी-चौरा घटना के संदर्भ में) ने इस आंदोलन की गति को रोक दिया।

निष्कर्ष:

  • बताएं कि जब युवा, किसान आदि जनसंख्या इन आंदोलन को चरम पर पहुंचा रही थी तभी अचानक उत्तर प्रदेश की घटना ने महात्मा गाँधी को इस आंदोलन को वापस लेने के लिए मजबूर कर दिया।

उत्तर

भूमिकाः

महात्मा गाँधी के असहयोग आन्दोलन की रूपरेखा खिलाफत आन्दोलन के समर्थन में बनायी गयी। उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद में हिन्दू-मुस्लिम के संयुक्त बैठक में असहयोग को शस्त्र के रूप में अपनाये जाने का निर्णय लिया गया और उत्तर प्रदेश के ही गोरखपुर में हुये चौरी-चौरा काण्ड से ‘असहयोग’ को वापस ले लिया गया।

मुख्य भागः

प्रारम्भ और उत्तर प्रदेश-

प्रथम विश्वयुद्ध के बाद ‘सेवर्स की संधि’ से तुर्की के सुल्तान के समस्त अधिकार ब्रिटेन द्वारा छीन लिया गया। परिणामस्वरूप विश्व भर के मुसलमानों ने ब्रिटेन के खिलाफ खिलाफत आन्दोलन चलाया। भारत में नवंबर 1919 में दिल्ली में ‘खिलाफत कमेटी’ का गठन हुआ, जबकि 20 जून 1920 को उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद में हिन्दू-मुस्लिम सम्मेलन में ‘असहयोग’ को खिलाफत के शस्त्र के रूप में प्रयोग करने का निर्णय लिया गया।

आन्दोलन का प्रसार और उत्तर प्रदेश-

  • दिसंबर 1920 में नागपुर में आयोजित कांग्रेस के अधिवेशन से आन्दोलन को प्रारंभ किया गया। उत्तर प्रदेश से मोतीलाल नेहरू और जवाहर लाल नेहरू ने नेतृत्व प्रदान किया। उत्तर प्रदेश के हजारों किसानों ने असहयोग के आह्वान का पालन किया जैसा कि सरकारी शिक्षा, न्यायालयों तथा सामानों का बहिष्कार ही इस आंदोलन की मुख्य विशेषता थी। अतः असहयोग के दौरान ही बनारस में राष्ट्रीय शिक्षा के विकास हेतु ‘काशी विद्यापीठ’ की स्थापना की गयी।
  • अवध प्रान्त के किसानों ने गैर-कानूनी धन उगाही के विरूद्ध आन्दोलन प्रारंभ किया। अक्टूबर 1921 में उत्तर प्रदेश का राजनैतिक सम्मेलन मौलाना हसरत मोहानी की अध्यक्षता में ‘आगरा’ में प्रारम्भ हआ। इस सम्मेलन में ब्रिटिश युवराज के बहिष्कार को पूरी तरह सफल बनाने का निश्चय किया गया। उत्तर प्रदेश में चल रहे किसान आन्दोलनों के संगठन जैसे अवध किसान आन्दोलन तथा एका आन्दोलनों ने असहयोग आंदोलन को विशेष बल प्रदान किया।

आन्दोलन का अन्त और उत्तर प्रदेश-

5 फरवरी 1922 को संयुक्त प्रान्त के गोरखपुर जिले में चौरी-चौरा नामक स्थान पर किसानों के एक जुलूस पर गोली चलाये जाने के कारण क्रुद्ध भीड़ ने थाने में आग लगा दी, जिससे एक थानेदार सहित 21 सिपाहियों की मृत्यु हो गयी। इस घटना से गाँधी जी को बहुत दु:ख पहुँचा और इस भय से भी कि यह आन्दोलन कहीं हिंसक न हो जाय, गाँधी जी ने 12 फरवरी को बारदोली में एक प्रस्ताव द्वारा चौरी-चौरा काण्ड के कारण आन्दोलन को स्थगित कर दिया। इसके बाद गाँधी जी ने रचनात्मक कार्यों पर विशेष जोर दिया। यद्यपि गाँधी जी के आंदोलन के स्थगन के निर्णय की राष्ट्रवादियों द्वारा जोरदार प्रतिक्रिया की गयी।

निष्कर्षः

इस तरह असहयोग आन्दोलन खिलाफत के एक शस्त्र के रूप में उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद से प्रारम्भ हुआ। भारत में कई प्रान्तों में इसकी तीव्रता थी और ऐसे समय जब देश राष्ट्रवादियों, युवाओं, किसानों आदि सी का उत्साह शिखर पर था तभी उत्तर प्रदेश के गोरखपुर के चौरी-चौरा काण्ड ने इसे रोक दिया।

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