शहरीकरण और इसके परिणामस्वरूप पड़ने वाले प्रभाव

प्रश्न: तीव्र शहरीकरण न केवल शहरी क्षेत्रों के अभावों को दूर करने की मांग करता है अपितु इसके कारण ग्रामीण क्षेत्रों में व्युत्पन्न कमियों से निपटना आवश्यक बनाता है। टिप्पणी कीजिए। साथ ही, शहरीकरण के कारण ग्रामीण आबादी पर पड़ने वाले दबाव को कम करने के लिए सरकारी योजनाओं की सफलता का भी मूल्यांकन कीजिए।

दृष्टिकोण

  • शहरीकरण और इसके परिणामस्वरूप पड़ने वाले प्रभावों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  • ग्रामीण क्षेत्रों में इसके द्वारा प्राप्त परिणामों की चर्चा कीजिए।
  • इन कार्यक्रमों की सफलता का मूल्यांकन करने वाली कुछ योजनाओं का उल्लेख कीजिए।
  • संक्षेप में उपचारात्मक सुझावों का उल्लेख करते हुए समापन कीजिए।

उत्तर

जनगणना के आंकड़ों के अनुसार, 2011 में भारतीय जनसंख्या का 31% भाग शहरी क्षेत्रों में निवास करता है। अगले दशक में यह 50% तक पहुंचने की उम्मीद है। यह ग्रामीण प्रतिकर्ष कारकों (पुश फैक्टर) और शहरी अपकर्ष कारकों (पुल फैक्टर) का नतीजा है, लेकिन इसमें मलिन बस्तियां, बेघर स्थिति, बेरोजगारी, गरीबी, प्रदूषण, संसाधनों की कमी, अपराध, नशीले पदार्थों की तस्करी, वेश्यावृत्ति, भिक्षावृत्ति और शराब की लत, अवसाद और तनाव जैसे मनोवैज्ञानिक समस्याओं जैसी कई समस्याएं सम्मिलित हैं।

इन शहरी समस्याओं को दूर करते समय प्राय: शहरीकरण के कारण ग्रामीण क्षेत्रों पर पड़ने वाले नकारात्मक प्रभावों को नजरंदाज कर दिया जाता है, इनमें से कुछ हैं:

  • युवाओं का प्रवसन जिसके परिणास्वरूप इन क्षेत्रों की आर्थिक उत्पादकता में गिरावट आती है।
  • कृषि और संबद्ध गतिविधियों में निवेश में गिरावट के कारण रोजगार के अवसरों में कमी और ग्रामीण गरीबी में वृद्धि होती है।
  • ग्रामीण परिवारों के टूटने और पति-पत्नी और बच्चों के अलग होने के कारण मनोवैज्ञानिक समस्याएं उत्पन्न होती हैं।
  • कृषि में महिलाओं की भूमिका में वृद्धि तथा साथ ही जाति आधारित और यौन अपराधों हेतु महिलाओं की सुभेद्यता में भी वृद्धि होती है।
  • प्रति व्यक्ति आय और जीवन स्तर में शहरी-ग्रामीण अंतर में वृद्धि।
  • योजनाकारों और नीति निर्माताओं के शहरी झुकाव के कारण ग्रामीण-शहरी अंतरालों में वृद्धि।
  • ग्रामीण क्षेत्रों की पारंपरिक कलाओं और शिल्प कलाओं में गिरावट।
  • ग्रामीण इलाकों में शहरी संस्कृति के अंगीकरण के कारण अद्वितीय स्थानीय सांस्कृतिक विशेषताओं में क्षरण हुआ है।

इन कमियों से निपटने के लिए, सरकार ने कई कार्यक्रमों का शुभारंभ किया है:

  • सड़क, अस्पताल, बिजली और डिजिटल अवसंरचना जैसी शहरी सुविधा और अवसंरचना ग्रामीण क्षेत्रों में उपलब्ध कराने के लिए रुर्बन मिशन।
  • सिंचाई, बीमा, संस्थागत ऋण और कृषि विस्तार जैसी कृषि और संबद्ध गतिविधियों को प्रोत्साहन देने की योजनाएं।
  • रोजगार योजना जैसे मनरेगा और PMEGP के माध्यम से ग्रामीण उद्यमशीलता को बढ़ावा देना।
  • मेगा फूड पार्क, कृषि निर्यात क्षेत्र और SAMPADA योजना के माध्यम से कृषि उद्योगों को बढ़ावा देना।

ऐसे कार्यक्रम ग्रामीण-शहरी अंतराल को कम करने और ग्रामीण जनता की सामाजिक-आर्थिक उन्नति करने में सहायता कर रहे हैं। उदाहरण के लिए, 2001 से 2016 तक स्कूल और कॉलेजों में ग्रामीण क्षेत्र के 18 वर्षीय बच्चों का हिस्सा 25% से बढ़कर 70% हो गया। यद्यपि, स्वतंत्रता के बाद की प्रत्येक सरकार का मुख्य फोकस ग्रामीण कार्यक्रम ही रहे हैं फिर भी यह गरीबी, बेरोजगारी और भौतिक और सामाजिक अवसंरचना की खराब स्थिति की समस्या का समाधान करने में सक्षम नहीं रहा है। अब भी, भारत की BPL आबादी का एक बहुत बड़ा हिस्सा ग्रामीण भारत में निवास करता है।

इस संबंध में, उपयुक्त औद्योगिक नीतियों, PRIs और भू-स्वामित्व अधिकारों हेतु कानूनी ढांचे को सशक्त करना, कृषि आधारित गतिविधियों का संवर्धन और ऋणों तक पहुंच तथा विश्वसनीय एवं वहनीय ऊर्जा उपलब्ध कराने के माध्यम से रोजगार का उचित वितरण करना और प्रवसन को रोकना आदि वर्तमान समय की आवश्यकताएँ हैं। ये ग्रामीण-शहरी अंतराल को खत्म करने में सहायता करेंगे।

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