दावानल का संक्षिप्त विवरण : दावानल के प्रति भारत के वनों की सुभेद्यता

प्रश्न: दावानल के प्रति भारत के वनों की सुभेद्यता का आकलन कीजिए और इससे निपटने हेतु कुछ उपायों का सुझाव दीजिए।

दृष्टिकोण:

  • दावानल का संक्षिप्त विवरण देते हुए उत्तर प्रारम्भ कीजिए।
  • दावानल के प्रति भारत के वनों की सुभेद्यता का आकलन कीजिए तथा इसके लिए उत्तरदायी कारणों की तथ्यों और आंकड़ों सहित पुष्टि कीजिए।
  • भारत में दावानल की घटनाओं से निपटने हेतु कुछ उपायों का सुझाव दीजिए।

उत्तर:

राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन संस्थान (National Institute of Disaster Management: NIDM) के अनुसार, दावानल को प्राकृतिक ईंधनों का उपयोग करने वाले एक अनियंत्रित और स्वतंत्र रूप से प्रसारित दहन के रूप में परिभाषित किया जा सकता  है।

भारतीय वनों की अग्नि के प्रति सुभेद्यता एक स्थान से दूसरे स्थान पर भिन्न-भिन्न होती है और यह प्राकृतिक व साथ ही साथ मानव निर्मित दोनों कारकों द्वारा निर्धारित होती है। इसके अंतर्गत वनस्पति, जलवायु और वर्षा प्रतिरूप, मानवजनित कारक एवं अन्य कारक जैसे- वृक्षों की आयु, भू-भाग आदि शामिल होते हैं।

दावानल के प्रति सुभेद्यता:

देश के 647 जिलों में वर्ष 2003 से 2016 के मध्य तक प्रतिवर्ष 60% से अधिक दावानल की घटनाएं दर्ज की गई हैं। हालांकि, कुछ क्षेत्रों में अन्य क्षेत्रों की तुलना में दावानल की घटनाएं अधिक घटित होती हैं। दावानल की बारम्बारता के संदर्भ में शीर्ष 20 जिले मुख्य रूप से पूर्वोत्तर क्षेत्र में स्थित हैं, जबकि प्रभावित क्षेत्र के संदर्भ में शीर्ष 20 जिले मुख्य रूप से मध्य भारत में अवस्थित हैं।

  • यद्यपि पूर्वोत्तर राज्यों में दावानल की बारम्बारता अधिक होती है, क्योंकि इनमें दावानल लघु क्षेत्र में केंद्रित होता है, जहां आग लगने की घटनाएं घटती रहती हैं। उदाहरण के लिए, झूम कृषि की परम्परा दावानल के लिए उत्तरदायी होती है।
  • हिमालय के विभिन्न क्षेत्रों में चीड़ (पाइन) वनों (रेज़िन पदार्थ के कारण) के व्यापक पैमाने पर विस्तार के कारण दावानल की बारम्बारता और तीव्रता में वृद्धि होती है। उदाहरणार्थ, चीड़ (पाइन) वनों के विस्तार के कारण उत्तराखंड के 60% से अधिक वन क्षेत्र दावानल के प्रति सुभेद्य हैं।
  • विशिष्ट प्रजातियों (जैसे- यूकेलिप्टस, सागौन, चिनार, शीशम) की सुभेद्यता के अतिरिक्त, वृक्षों की आयु, जलवायु, भू-भाग आदि जैसे अन्य कारक भी किसी विशेष वन में दावानल की घटना का निर्धारण करते हैं।
  • किसी समाज के सामाजिक-आर्थिक और सामाजिक-सांस्कृतिक प्रतिमान भी अग्नि के प्रति वनों की सुभेद्यता का निर्धारण करते हैं। उदाहरण के लिए, मध्य भारत में महुआ के फूलों और फलों की कटाई हेतु भूमि तैयार करने के लिए जनजातीय लोगों द्वारा सामान्यतः वनों में आग लगा दी जाती है, जिससे दावानल के प्रति सुभेद्यता में वृद्धि होती है।

दावानल से निपटने के उपाय:

  • हालांकि पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) द्वारा वर्ष 2000 में वनाग्नि रोकथाम और प्रबंधन (FFPM) पर राष्ट्रीय दिशा-निर्देश जारी किए गए थे, किन्तु वर्तमान में इन्हें लागू नहीं किया जा रहा है। राष्ट्रीय हरित अधिकरण ने FFPM हेतु एक राष्ट्रीय नीति और कार्य योजना तैयार करने के लिए राज्य वन विभागों, NDMA, NGOs एवं अनुसंधान संस्थानों के साथ परामर्श के उपरांत MoEFCC के लिए वर्ष 2017 में निर्देश जारी किए थे।
  • दावानल की रोकथाम और प्रबंधन हेतु पर्याप्त वित्तपोषण और क्षेत्रीय कर्मचारियों (फील्ड स्टाफिंग) की संख्या को सुनिश्चित करना। प्रतिपूरक वनीकरण कोष प्रबंधन एवं योजना प्राधिकरण (CAMPA) वित्तपोषण का एक संभावित स्रोत उपलब्ध करवाता है।
  • सभी वन रक्षकों और अन्य क्षेत्रीय अधिकारियों के लिए पाठ्यक्रम विकसित किए जाने की आवश्यकता है तथा उन्हें दावानल प्रबंधन में भी प्रशिक्षित किया जाना चाहिए। इसके साथ ही, कार्मिकों हेतु उपकरणों का प्रावधान किया जाना चाहिए।
  • वन विभागों और आपदा प्रबंधन अभिकरणों के मध्य राष्ट्रीय, राज्य और जिला स्तरों पर समन्वय तंत्र स्थापित करना।
  • फायर लाइन्स (अग्नि-रोधी पट्टियों) और दहन नियंत्रित क्षेत्र के निर्माण और उनके उचित रखरखाव की आवश्यकता है।
  • भारतीय वन सर्वेक्षण को राज्य वन विभागों के सहयोग से फायर डेंजर रेटिंग सिस्टम का विकास और उसका परिनियोजन जारी रखना चाहिए।
  • नई तकनीकों और संसूचन कलन विधियों (एल्गोरिदम) का उपयोग करके मौजूदा उपग्रह आधारित फायर डिटेक्शन सिस्टम (अग्नि खोजी प्रणाली) में निरंतर सुधार करने की आवश्यकता है।
  • राज्यों के वन विभागों को स्थानीय समुदायों और गैर-सरकारी संगठनों के साथ मिलकर कार्य करना चाहिए ताकि उन्हें सूचना साझा करने और फीडबैक के लिए प्रोत्साहित किया जा सके।
  • आगामी वर्षों में राष्ट्रीय वनाग्नि सूचना डेटाबेस (National Forest Fire Information Database) को विकसित करने की आवश्यकता है।

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