सिविल सेवक के लिए वस्तुनिष्ठता और समानुभूति शब्दों की महत्ता : निष्पक्षता और समानुभूति के बीच संबंध

प्रश्न: सिविल सेवक को वस्तुनिष्ठ होने के साथ-साथ समानुभूति रखने वाला भी होना चाहिए। वस्तुनिष्ठता से आप क्या समझते हैं? समानुभूति के साथ इसके संबंधों की विवेचना कीजिए।

दृष्टिकोण

  • सिविल सेवक के लिए वस्तुनिष्ठता और समानुभूति शब्दों की महत्ता व्यक्त करते हुए इन शब्दों की विस्तृत व्याख्या कीजिए।
  • निष्पक्षता और समानुभूति के बीच संबंध का वर्णन कीजिए।
  • सिविल सेवकों में वस्तुनिष्ठता और समानुभूति के मूल्यों की आवश्यकता की व्याख्या करते हुए उत्तर का समापन कीजिए।

उत्तर

वस्तुनिष्ठता का अर्थ प्रमाण के कठोर विश्लेषण को सलाह और निर्णय का आधार बनाना है। इसमें मानसिक खुलापन, निष्पक्षता, योग्यता द्वारा निर्देशित होना और पूर्वनिर्धारित धारणाओं या पूर्वाग्रहों को अपने कर्तव्य या पेशेवर आचरण को प्रभावित नहीं करने देना सम्मिलित होता है। सिविल सेवकों को निम्नलिखित के लिए वस्तुनिष्ठता की आवश्यकता होती है:

  • सूचना और परामर्श प्रदान करना, इसमें मंत्रियों को दिया जाने वाला परामर्श भी सम्मिलित है। यह परामर्श प्रमाण पर आधारित होता है तथा साथ ही इसमें विकल्पों और तथ्यों को सही ढंग से प्रस्तुत करना सम्मिलित है; 
  • मामले के गुण के आधार पर निर्णय लेना – असुविधाजनक तथ्यों या प्रासंगिक विचारों को अनदेखा करने के कारण नीतिगत रूप से चूक हो जाती है और अंततः कार्यान्वयन अप्रभावी हो जाता है।

अन्य लोगों के स्थान पर अपने आप को रखकर उनकी अनुभूतियों एवं भावनाओं के प्रति जागरुकता ही समानुभूति है। यह भावनात्मक बुद्धिमता का एक प्रमुख तत्व है, क्योंकि यह सामाजिक जागरुकता क्षमता एवं व्यक्ति की दूसरों के साथ संबद्धता अनुभव करने की क्षमता का प्रतिनिधित्व करता है। वंचित और अभावग्रस्त लोगों की बड़ी संख्या को आधारभूत सेवाओं, सामाजिक न्याय और आर्थिक समृद्धि प्राप्त नहीं है। इसलिए सिविल सेवकों के बीच निर्बल वर्ग के प्रति समानुभूति, सहिष्णुता और करुणा जैसे मूल्यों की सबल भावना का विकास करना अत्यावश्यक है।

वस्तुनिष्ठता और समानुभूति एक-दूसरे के अनुपूरक गुण हैं, क्योंकि ऐसे गुणों के कारण सिविल सेवक करुणापूर्वक व्यवहार करते हैं और संतुलित दृष्टिकोण रखते हुए नागरिकों की बात को धैर्यपूर्वक सुनते हैं। इसके अतिरिक्त, इससे सिविल सेवकों का अपनी सेवा के प्रति उत्साही बने रहना और जिन लोगों की वे सेवा कर रहे हैं, उनके प्रति निरपेक्ष होना (गर्भवती महिलाओं, विधवाओं, दिव्यांगजनों आदि से संबंधित व्यवहार करने जैसी असाधारण परिस्थितियों को छोड़कर) सुनिश्चित होता है। समानुभूति के बिना वस्तुनिष्ठता सिविल सेवक को रोबोट सदृश बना देती है जबकि, वस्तुनिष्ठता के बिना समानुभूति नियमों का अनुपालन न करने, पक्षपात करने और सार्वजनिक संसाधनों के अपव्यय की ओर प्रेरित करती है।

कुछ ऐसे भी उदाहरण देखने को मिलते हैं (जैसे-सार्वजनिक वितरण प्रणाली में) जहाँ सरकारी एजेंसियां लोक कल्याण के अंतिम उद्देश्य को ध्यान में रखे बिना केवल सेवाएँ देने के उद्देश्य से सेवाएं प्रदान करती हैं। देश की सेवा के लिए सिविल सेवकों को इस तथ्य की बेहतर समझ को आत्मसात् करना होता है कि किसकी सेवा करनी है – उनकी आवश्यकताएं, आकांक्षाएं और जीवन की परिस्थितियाँ क्या हैं। यद्यपि वस्तुनिष्ठता और निष्पक्षता सुनिश्चित करने के लिए प्रक्रियाओं का अनुपालन महत्वपूर्ण है, किन्तु स्वयं प्रक्रियाओं को भी, विशेषकर समाज के सुभेद्य और निर्बल वर्गों के प्रति संवेदनशील बनाने की आवश्यकता होती है। यह सुनिश्चित करने को प्राथमिकता दी जानी चाहिए कि इनके अपेक्षित परिणाम निर्धनों, वंचितों और सुभेद्य वर्गों के हितों की विधिवत रक्षा करते हुए समाज को लाभान्वित करें।

इसलिए, राष्ट्रीय एकीकरण और समावेशी विकास का दर्शन चरितार्थ करने के लिए सिविल सेवकों को वस्तुनिष्ठ होना ही चाहिए। किसी कार्रवाई की उपयुक्तता और अनुपयुक्ता के विषय में संदेह होने पर अपनाई जाने योग्य महात्मा गांधी की सलाह यह थी कि स्वयं को निर्धनतम व्यक्ति के स्थान पर रखकर विचार किया जाए कि किसी विशेष नीति और कार्यक्रम का उस व्यक्ति पर क्या प्रभाव पड़ेगा। विकास की प्रक्रिया से वंचित रह गए लोगों पर विशेष ध्यान केंद्रित करते हुए बिना किसी पक्षपात या पूर्वाग्रह के सभी नागरिकों की समान रूप से सेवा करने की दिशा-धारा, अर्थात ‘अंत्योदय’ दृष्टिकोण को अपनाया जाना चाहिए जिसमें कोई भी पीछे नहीं छूटना चाहिए।

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