स्वैच्छिक संगठनों की विश्वसनीयता

प्रश्न: भारत में NGOs के कार्यकरण से संबंधित हाल की चिंताओं के संदर्भ में, स्वैच्छिक संगठनों की विश्वसनीयता को पुनर्स्थापित करने के लिए स्व-नियामकीय दिशानिर्देशों और पारदर्शिता तंत्रों की आवश्यकता पर चर्चा कीजिए।

दृष्टिकोण:

  • गैर-सरकारी संगठनों (NGOs) को परिभाषित कीजिए और उनकी भूमिका का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  • NGOs के भ्रष्टाचार और अनियमितताओं में संलिप्त रहने संबंधी हालिया मुद्दों को रेखांकित कीजिए।
  • इस संदर्भ में स्व-नियामकीय दिशानिर्देशों और पारदर्शिता तंत्रों की आवश्यकता पर चर्चा कीजिए।

उत्तरः

विश्व बैंक की परिभाषा के अनुसार, “गैर-सरकारी संगठन (NGOs) ऐसे निजी संगठन हैं जो पीड़ितों को राहत प्रदान करने, निर्धनों के हितों को बढ़ावा देने, पर्यावरण की रक्षा करने, बुनियादी सामाजिक सेवाएं प्रदान करने अथवा सामुदायिक विकास की गतिविधियां संपन्न करते हैं।”

विगत कुछ दशकों से भारत में लोक सेवा उपलब्ध कराने और नीति निर्माण में NGOs की भूमिका महत्वपूर्ण रही है।

हालाँकि, हाल ही में इंटेलिजेंस ब्यूरो की एक रिपोर्ट ने इस बात को रेखांकित किया है कि कुछ गैर-सरकारी संगठन भारत की विकास प्रक्रिया में अवरोध उत्पन्न करने का कार्य कर रहे हैं और इससे हमारे सकल घरेलू उत्पाद में संभावित रूप से 2-3% की क्षति हो रही है। इसके अतिरिक्त, NGOs को भ्रष्टाचार संबंधी गतिविधियों में भी लिप्त पाया गया है, जैसे कि:

  • कथित रूप से विदेशों से वित्तपोषित NGOs विकास संबंधी परियोजनाओं को रोककर विदेशी प्रॉपेगैंडा का प्रसार करने का प्रयत्न कर रहे हैं। उदाहरण: कुडनकुलम परियोजना का विरोध।
  • निधियों का दुरुपयोग तथा पारदर्शिता और जवाबदेही का अभाव; क्योंकि सोसाइटी पंजीकरण अधिनियम के अंतर्गत पंजीकृत कुल गैर-सरकारी संगठनों में से केवल 10% ही वार्षिक वित्तीय विवरण प्रस्तुत करते हैं।
  • राजनीतिक सक्रियता और कुछ राजनीतिक दलों के लिए प्रतिनिधि के रूप में कार्य करते हुए चुनाव प्रचार करना।
  • विदेशी धन प्राप्त करने वाले भ्रष्ट या बेईमान NGOs मनी लॉन्ड्रिंग के लिए एक माध्यम का कार्य कर सकते हैं।

इस प्रकार की अनियमितता और गैर-ज़िम्मेदाराना कार्य सिविल सोसाइटी संगठनों की विश्वसनीयता को प्रभावित करते हैं। हाल के वर्षों में गैर-सरकारी संगठनों (NGOs) की संख्या और कार्यक्षेत्र में अत्यधिक वृद्धि हुई है तथा साथ ही शासन और नियामक संबंधी चुनौतियों में निरंतर वृद्धि हो रही है। इसके अतिरिक्त, ऐसे कई अन्य कारण भी हैं जो स्व-नियामकीय दिशानिर्देशों और पारदर्शिता तंत्रों की आवश्यकता को बल प्रदान करते हैं, यथा:

  •  NGO क्षेत्रक ‘असंगठित’ है और इससे संबंधित नियामकीय ढाँचे का अभाव है।
  • जवाबदेही और पारदर्शिता का अभाव जो धन और पूंजी जुटाने में अवरोध उत्पन्न करता है।

स्व-नियामकीय दिशानिर्देशों और पारदर्शिता तंत्रों के माध्यम से निर्धारित किये गए कड़े शासकीय मानकों से प्रभावी प्रबंधन की सुविधा प्राप्त होगी। इससे किसी NGO की उसके दानदाताओं, सरकार और समुदाय के प्रति जवाबदेहिता में वृद्धि होगी। यह स्वैच्छिक क्षेत्रक को प्राप्त होने वाली निधि के संदिग्ध स्रोतों पर निगरानी रखना भी संभव बनाएगा। स्व-नियामकीय तंत्र NGOs को नए नियमन मानकों को विकसित करने में सहायक होंगे। इसके साथ ही, ये न केवल दानदाताओं और सरकारों से संबंधित ऊर्ध्वगामी जवाबदेहिता सुनिश्चित करेंगे अपितु लाभार्थियों के प्रति अधोगामी जवाबदेहिता सुदृढ़ करने में भी सहायता प्रदान करेंगे।

स्व-नियमन को इस संबंध में अधिनियमित एक व्यापक केंद्रीय कानून के द्वारा भी अनुपूरकता प्रदान की जा सकती है। एस. विजयकुमार समिति ने इस क्षेत्रक के अधिक प्रभावी और कुशल विनियमन को सक्षम बनाने के लिए धर्मार्थ या “लोक कल्याण” प्रदायक गतिविधियों में संलग्न स्वैच्छिक संगठनों के लिए एक पृथक कानून बनाने की अनुशंसा की है। इसके अतिरिक्त, उच्चतम न्यायालय ने सरकारी अनुदान प्राप्त करने वाले NGOs द्वारा निधियों के उपयोग को विनियमित किये जाने के लिए केंद्र सरकार को एक नया कानून बनाने के लिए कहा है।

उपर्युक्त कदम इस क्षेत्रक को बेहतर नियामकीय तंत्रों, प्रकटीकरण मानदंडों तथा वित्तीय प्रबंधन और बजट प्रणालियों सहित प्रबंधन प्रक्रियाओं का उपयोग करने में सहायता करेंगे। परिणामस्वरूप जनता, स्वयंसेवकों, दानदाताओं और अन्य हितधारकों की दृष्टि में परिचालन संबंधी जवाबदेही और पारदर्शिता में वृद्धि होगी।

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