कृषि ऋण माफ़ी : समालोचनात्मक परीक्षण 

प्रश्न: कृषि संकट को कम करने के एक साधन के रूप में कृषि ऋण माफ़ी का सहारा लेने की प्रथा का समालोचनात्मक परीक्षण कीजिए।

दृष्टिकोण

  • कृषि ऋण माफ़ी संबंधी नवीनतम आंकड़ों पर प्रकाश डालते हुए उत्तर प्रारंभ कीजिए। 
  • कृषि ऋण माफी से संबंधित कुछ लाभों एवं हानियों को वर्णित कीजिए।
  • निष्कर्ष के रूप में प्रासंगिक वैकल्पिक समाधान सुझाइए।

उत्तर

सम्पूर्ण देश के किसानों ने स्वयं को नीति और अर्थव्यवस्था को प्रभावित करने वाले एक महत्वपूर्ण दबाव समूह के रूप में स्थापित कर लिया है। यह देश के आठ राज्यों में कार्यान्वित, 1.9 ट्रिलियन रूपए मूल्य की नवीनतम कृषि ऋण माफ़ी की घोषणाओं से स्पष्ट होता है

जुलाई 2015 से जून 2016 के मध्य हुए नाबार्ड (NABARD) के वित्तीय समावेशन सर्वेक्षण (NAFIS) के अनुसार लगभग 43.5% कृषक परिवारों द्वारा ऋण लिया गया है।

ऋण माफ़ी के लाभ

  • कृषिगत ऋण उपलब्धता: ऋण माफी की घोषणा बैंकरों को ऋणों को नवीनीकृत करने में सहायता कर सकती है तथा किसान उधार लिए गए धन का उपयोग अधिक फसल उत्पादन में कर सकते हैं।
  • उत्पादन को प्रोत्साहन: ऋण माफ़ी तत्काल वित्तीय आवश्यकताओं को पूर्ण करते हुए आगामी बुआई के सीजन के लिए किसानों को प्रोत्साहित करती है। इसके अतिरिक्त यह कृषि को छोड़ने तथा अन्य वैकल्पिक आजीविका की खोज करने से भी किसानों को रोकेगी।
  • औपचारिक ऋण प्रणाली में समावेशन को बढ़ावा: ऋण माफ़ी योजनाएं किसानों को बैंकों से ऋण लेने हेतु आकर्षित कर सकती हैं। जिससे औपचारिक ऋण प्रणाली में समावेशन (बैंक-कृषक संबद्धता के माध्यम से) को प्रोत्साहन मिलेगा।
  • आत्महत्या में कमी: कृषि ऋण से राहत, फसल नष्ट होने या अपर्याप्त बाजार मांग की स्थिति में किसानों को राहत प्रदान करेगी।
  • बचतों में सुधार: यह दीर्घकाल हेतु किसानों की बचतों को स्थायी बनाने में सहायता कर सकती है।

हालांकि, अधिकांश अर्थशास्त्री यह अनुभव करते हैं कि निम्नलिखित कारणों से ऋण माफ़ी केवल अल्पकालीन राहत प्रदान करने वाली योजनाएं हैं तथा दीर्घकालिक समाधान नहीं हैं:

  • किसानों का अपवर्जन: विभिन्न अध्ययनों के अनुसार उच्चतर न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSPs) या ऋण माफ़ी के माध्यम से केवल 20 से 30% किसानों को ही लाभ प्राप्त होता है। औपचारिक बैंकों तक बेहतर पहुंच और वृहद् वित्तीय साक्षरता एवं जागरूकता के कारण समृद्ध किसान अधिक लाभान्वित होते हैं।
  • महाजनों पर निर्भरता में वृद्धि: ऋण माफ़ी के पश्चात् संस्थागत ऋणदाताओं की निर्लिप्तता उधारकर्ताओं को महाजनों जैसे उच्च लागत वाले असंगठित साधनों से ऋण लेने हेतु बाध्य करती है।
  • राजकोष पर प्रभाव: ऋण माफ़ी राजकोषीय समेकन के मार्ग से राज्य को विरत कर सकती है तथा स्फीतिकारी दबावों में योगदान दे सकती है।
  • कृषि में बढ़ती बाध्यताएं: ऋण माफ़ी के कारण पूंजीगत निवेश सामान्यतः हतोत्साहित हो जाते हैं और परिसम्पत्ति सृजन में कमी से कृषि क्षेत्र में मांग एवं आपूर्ति पक्ष संबंधी दबाव में वृद्धि होती है।
  • भविष्य में लोन डिफ़ॉल्ट में वृद्धि: ऋण माफ़ी योजनाएं ऋण व्यवस्था में बाधा उत्पन्न करती हैं।
  • डेब्ट ओवरहैंग (ऋण की अधिकता के कारण नए निवेश न कर पाने की स्थिति): ऋण माफ़ी के परिणामस्वरूप डेब्ट ओवरहैंग की स्थिति उत्पन्न होती है। इसका अर्थ है कि नवीन आय का व्यापक प्रयोग पुराने ऋणों का भुगतान करने हेतु किया जाता है जिसके कारण नए निवेश नहीं किए जाते हैं।

देश में कृषि संकट के उन्मूलन हेतु बीमा के माध्यम से संरक्षण प्रदान करना, सभी 23 फसलों (न की केवल गेंहू और चावल हेतु) के लिए MSP का क्रियान्वयन, वैकल्पिक आय विविधिकरण, एम.एस.स्वामीनाथन रिपोर्ट की अनुशंसाओं का सावधानीपूर्वक अध्ययन, भूमि सुधारों का प्रभावी कार्यान्वयन आदि विभिन्न योजनाएं लागू की जा रही हैं। इसके अतिरिक्त अशोक दलवई समिति के अनुसार कृषि और खाद्य प्रसंस्करण के चतुर्दिक उद्योगों का विकास वर्ष 2022 तक कृषि आय को दोगुना करने में सहायक सिद्ध हो सकता है।

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