भारत में चुनावी वित्तपोषण के संदर्भ में मुख्य मुद्दे
प्रश्न: भारत में चुनावी वित्तपोषण के संदर्भ में मुख्य मुद्दे क्या हैं? आपकी राय में चुनावों के राज्य द्वारा वित्तपोषण का विचार इन मुद्दों का किस सीमा तक समाधान कर सकता है?
दृष्टिकोण
- भारत में चुनावों के वित्तपोषण से संबंधित महत्त्वपूर्ण मुद्दों का उल्लेख कीजिए।
- संक्षेप में व्याख्या कीजिए कि चुनावों के राज्य द्वारा वित्तपोषण से आप क्या समझते हैं।
- आलोचनात्मक विश्लेषण कीजिए कि क्या चुनावों के राज्य द्वारा वित्तपोषण से मुद्दों का समाधान हो सकता है।
- आगे की राह बताइए।
उत्तर
चुनावी वित्तपोषण का अर्थ है राजनीतिक दलों और प्रत्याशियों की चुनावी प्रक्रियाओं का वित्तपोषण किया जाना। किसी भी अन्य गतिविधि की तरह इसमें भी वित्तीय संसाधनों की आवश्यकता होती है। किंतु भारत में इसे निम्नलिखित मुद्दों का सामना कर पड़ता है:
- राजनीतिक दल अपना अधिकांश धन (लगभग 70%) बेनामी चंदे के माध्यम से नकद प्राप्त करते हैं।
- जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 29 के प्रावधानों के बावजूद राजनीतिक दल चुनाव आयोग के समक्ष अपनी वार्षिक लेखा परीक्षा रिपोर्ट प्रस्तुत नहीं करते हैं।
- दलों को आयकर से छूट प्राप्त है, जिससे काला धन जमा करके रखने वाले लोगों को एक रास्ता मिल जाता है।
- निर्वाचन ट्रस्टों के निर्माण के बावजूद राजनीतिक-कॉरपोरेट गठजोड़ ज्यों-का-त्यों बना हुआ है, क्योंकि कॉरपोरेट घराने ही मुख्यतः इनका वित्तपोषण करते हैं। इसके अतिरिक्त, FCRA में संशोधनों से चुनावों में विदेशी वित्तपोषण की अनुमति मिल गयी है, जिसका नतीजा अंततोगत्वा अभिशासन में हस्तक्षेप के रूप में सामने आ सकता है।
- CIC द्वारा 2013 में कहा गया कि राजनीतिक दल RTI अधिनियम के दायरे में आते हैं। हालांकि राजनीतिक दलों ने इसकी अवहेलना की है।
- राजनीति में धनबल की बढ़ती भूमिका के कारण चुनाव आयोग ने RPA, 1951 में एक नए भाग 58B को जोड़ने की मांग की, ताकि निर्वाचन आयोग उन मामलों में जहाँ दलों द्वारा किसी निर्वाचन क्षेत्र के मतदाताओं को रिश्वत दी गई हो तथा वह मामला प्रकाश में न आ पाया हो, कार्यवाही करने में सक्षम हो सके।
चुनावों के राज्य द्वारा वित्तपोषण, जिसके अंतर्गत सरकार, दलों या प्रत्याशियों को चुनाव लड़ने के लिए धन प्रदान करती है, को धनबल के बढ़ते प्रभाव को रोकने के उपायों में से एक माना गया है। भारत में, राज्य वित्तपोषण के वर्तमान तरीकों में राजनीतिक दलों को दी जाने वाली सुरक्षा, कार्यालय के लिए जगह, आयकर आदि से छूट सम्मिलित है।
चुनावों के राज्य द्वारा वित्तपोषण के पक्ष में तर्क:
- चुनावों के राज्य द्वारा वित्तपोषण पर इन्द्रजीत गुप्ता समिति (1998) जैसी समितियों, चुनाव सुधारों पर विधि आयोग की रिपोर्ट (1999), द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग (2005) आदि ने चुनावों के राज्य द्वारा आंशिक वित्तपोषण की अनुशंसा की है।
- इससे परस्पर लाभ पहुँचाने की प्रवृति (quid-pro-quo) पर नियंत्रण हो पाएगा और भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने में सहायता मिल सकती है, जिससे राजनीतिक-कॉरपोरेट गठजोड़ व राजनीति के अपराधीकरण में कमी आएगी।
- यह उन प्रत्याशियों को समान अवसर प्रदान करेगा जो प्रमुख राजनीतिक दलों या शक्तिशाली व्यक्तियों द्वारा समर्थित नहीं
चुनावों के राज्य द्वारा वित्तपोषण के विरुद्ध तर्क:
- राष्ट्रीय संविधान कार्यकरण समीक्षा आयोग (2001) के अनुसार, राज्य द्वारा वित्तपोषण की शुरुआत किए जाने से पहले एक कड़े विनियामकीय ढांचे की स्थापना की आवश्यकता होगी।
- चुनाव आयोग, राज्य द्वारा चुनाव वित्तपोषण का समर्थन नहीं करता है। इसके बजाय वह राजनीतिक दलों द्वारा किये गये खर्च के सम्बन्ध में क्रांतिकारी सुधारों की मांग करता है।
- सरकार पहले से ही बजटीय घाटों से जूझ रही है, अत: इस प्रकार राज्य द्वारा वित्तपोषण से सरकारी खजाने पर अनावश्यक भार पड़ेगा। इसके अतिरिक्त आवंटित राशि को इसके स्थान पर कल्याण सम्बन्धी गतिविधियों पर खर्च किया जा सकता है।
- इससे वे लोग जो गंभीर नहीं है, केवल मिल रही धनराशि के चलते राजनीति के क्षेत्र में प्रवेश करने हेतु प्रोत्साहित हो सकते हैं।
- बहुत अधिक सम्भावना है कि राज्य के वित्त पोषण का उपयोग केवल पूरक के रूप में किया जायेगा और यह प्रत्याशी द्वारा स्वयं किये जाने वाले व्यय के प्रतिस्थापन के रूप में नहीं होगा।
आगे की राह
राज्य द्वारा वित्तपोषण के आर्थिक प्रभावों का आकलन करने के पश्चात ही इस दिशा में कदम उठाये जाने चाहिए। इसके द्वारा सरकार की कल्याणकारी गतिविधियों में बाधा नहीं आनी चाहिए तथा इसके अतिरिक्त, इसमें कठोर लेखा पद्धति और पारदर्शिता का भी समावेश होना चाहिए। राजनीतिक दलों द्वारा स्व-विनियमन, चुनावों में लम्बी प्रचार अवधि और कानूनों का कठोरता से पालन होने से भी देश में चुनावों के वित्तपोषण से सम्बन्धित चिन्ताओं के समाधान का मार्ग प्रशस्त हो सकता है।
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