शरणार्थी नीति  : शरण चाहने वालों के प्रति राष्ट्र राज्यों की जिम्मेदारी

प्रश्न: क्या आप मानते है कि शरण चाहने वालों के प्रति राष्ट्र राज्यों की जिम्मेदारी होती है ? आपकी राय में शरणार्थी नीति निर्मित करते समय किन विषयों पर विचार किया जाना चाहिए? समसामयिक उदाहरणों के साथ तर्क प्रदान कीजिए।

दृष्टिकोण

  • संक्षेप में शरण चाहने वालों को परिभाषित कीजिए और समसामयिक उदाहरणों द्वारा समर्थित उपयुक्त तर्क प्रदान कीजिए कि उनके प्रति राष्ट्र राज्यों की ज़िम्मेदारी क्यों होती है।
  • अपने उपर्युक्त दृष्टिकोण के आधार पर एक शरणार्थी नीति के लिए विचारों को सूचीबद्ध कीजिए और तदनुसार निष्कर्ष दीजिए।

उत्तर

शरण चाहने वाले वे लोग हैं जो किसी भयवश अपने देश से पलायन कर जाते हैं तथा किसी अन्य देश में सुरक्षा चाहते हैं। उदाहरण के लिए, सीरिया, इराक और अफ्रीकी देशों के लोग यूरोपीय तटों पर शरण पाने के लिए दस्तक दे रहे हैं, क्योंकि उनके देश नागरिक संघर्ष, युद्ध और संसाधनों की कमी से ग्रसित हैं। इसी तरह, हाल ही में बांग्लादेश और भारत को म्यांमार से रोहिंग्या मुस्लिमों के अंतःप्रवेश का सामना करना पड़ रहा है।

सामान्यतः शरण चाहने वालों के प्रति देशों की प्रतिक्रिया में ज़ेनोफोबिक (विदेशी लोगों को पसन्द न करना) निहित रहा है। आर्थिक संसाधनों का निकासी, नौकरियाँ खोने का भय, चरमपंथी तत्वों का प्रवेश और इसी प्रकार के अन्य तर्क, शरणार्थियों के प्रवेश का विरोध करने के लिए दिए जाते हैं। उदाहरण के लिए, यूरोप में, जर्मनी के आंशिक सार्वजनिक समर्थन के बावजूद शरणार्थियों के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण था, जबकि हंगरी और इटली जैसे अन्य देशों ने शरणार्थियों के प्रवेश का विरोध किया था।

हालांकि, मानवतावाद की मांग यह है कि संकट की स्थिति में मनुष्यों द्वारा अन्य मनुष्यों को सम्मानजनक उपचार और सार्थक सहायता प्रदान की जानी चाहिए। मानवता स्वयं में एक साध्य है और इसे संकीर्ण लाभ प्राप्त करने के साधन के रूप में नहीं माना जाना चाहिए। इसके अतिरिक्त, पृथ्वी के संसाधनों पर प्रत्येक मनुष्य का समान अधिकार होता है। इस प्रकार, गैररिफॉलमेंट का सिद्धांत वर्तमान समय में एक आदर्श बन गया है। यह सिद्धांत किसी देश को शरण चाहने वालों को उस देश, जहाँ उनके उत्पीडन के संभावित खतरे विद्यमान होते हैं, में वापस भेजने को प्रतिबंधित करता है। इसके अतिरिक्त, अंतरराष्ट्रीय एकजुटता और बोझ साझा करने के सिद्धांत को देखते हुए, राष्ट्र राज्यों की यह ज़िम्मेदारी है कि वह कमजोर शरण चाहने वालों की सुरक्षा और बुनियादी देखभाल करें।

इस संदर्भ में, शरणार्थी नीति निर्मित करते समय निम्नलिखित विषयों पर विचार किया जाना चाहिए:

  • यह व्यावहारिक होना चाहिए तथा एक ही समय मानवता और सहानुभूति के सिद्धांतों द्वारा निर्देशित होना चाहिए।
  • राष्ट्रीय सुरक्षा पर खतरों को ध्यान में रखते हुए व्यक्तियों और परिवारों को शरण के प्रावधान के लिए मामले-दर-मामले के आधार पर विचार किया जाना चाहिए।
  • शरणार्थियों के मध्य विभेद किया जाना चाहिए जो उत्पीड़न से बचने के लिए पलायन करते हैं और दूसरे वे जो बेहतर अवसरों के लिए प्रवास करते हैं।
  • प्राथमिकता प्रथम प्रकार के शरणार्थियों को दी जानी चाहिए क्योंकि वे आपातकालीन मामलें हैं।
  • स्थानीय एजेंसियों की सहायता से भाषा और रीति-रिवाजों को सीखने के लिए अल्पकालिक पाठ्यक्रमों के साथ उचित पुनर्वास एवं आजीविका सम्बन्धी नीतियों को संस्थागत बनाया जाना चाहिए।
  • राष्ट्रों को स्वेच्छा से अपनी क्षमता की घोषणा करनी चाहिए तथा इस विषय पर ठोस तर्कों और साक्ष्य द्वारा समर्थित आवधिक क्षेत्रीय रिपोर्ट प्रस्तुत करनी चाहिए।
  • शरणार्थी न सिर्फ उन राष्ट्रों की ज़िम्मेदारी हैं जहाँ वे शरण चाहते हैं बल्कि सभी राष्ट्रों की सामूहिक चिंता हैं। प्रयास यह होना चाहिए कि समुद्र तट मृत पड़े एलन कुर्दी नामक उस बच्चे की तस्वीर जैसी स्थिति हमें दुबारा न देखनी पड़ें।

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