कृषि संगणना, 2015-16 : परिवर्तनशील भू-धारण प्रतिरूप

प्रश्न: जैसा कि कृषि संगणना, 2015-16 के जांच के परिणामों में देखा गया है, परिवर्तनशील भू-धारण प्रतिरूप के परिणामस्वरूप भारतीय कृषि के समक्ष आने वाली समस्याओं की पहचान कीजिए। इन समस्याओं के प्रकाश में, कृषि में ऐसे संरचनात्मक मुद्दों का समाधान करने के लिए उपयुक्त उपायों का सुझाव दीजिए।

दृष्टिकोण

  • संगणना के मुख्य निष्कर्षों पर प्रकाश डालते हुए भारत में भू-धारण की स्थिति का उल्लेख कीजिए। 
  • भू-धारण के इस परिदृश्य के कारण कृषि के समक्ष आने वाली समस्याओं को सूचीबद्ध कीजिए।
  • इन चुनौतियों का समाधान करने के उपाय सुझाइए।

उत्तर

कृषि संगणना, 2015-16 में कृषि भू-धारण की परिवर्तनशील प्रकृति को प्रदर्शित किया गया है। यह 2010-11 के आंकड़ों की तुलना में 157.14 मिलियन हेक्टेयर के कुल परिचालन क्षेत्र में 1.53 प्रतिशत की गिरावट किन्तु परिचालन क्षेत्र के स्वामित्व और महिला भागीदारी दोनों में वृद्धि (इसके कारण भू-जोत अधिक विखंडित हुए हैं) को प्रदर्शित करती है। भारत में भू-धारण की स्थिति के संदर्भ में संगणना के प्रमुख निष्कर्ष निम्नलिखित है:

  •  भू-धारक महिला कृषकों के प्रतिशत में वृद्धि: न केवल महिला कृषकों में वृद्धि हुई है, बल्कि परिचालन संबंधी भू-धारक महिलाओं का प्रतिशत 2010-11 में 12.79% से बढ़कर 2015-2016 में 13.87% हो गया है।
  • 2015-16 में परिचालन भू-धारकों की संख्या में वृद्धि 5.33 प्रतिशत से बढ़कर 146 मिलियन हो गई जो 2010-11 में 138 मिलियन थी। परिचालन कृषि जोत के औसत आकार में गिरावट: यह 2015-16 में घटकर 1.08 हेक्टेयर हो गई है, जो 2010-11 में 1.15 हेक्टेयर थी।
  • लघु और सीमांत स्तर की भू-जोतों में वृद्धि: भारत की कृषि योग्य भूमि की दो हेक्टेयर से कम आकार की कुल भू-जोतों को धारण करने वाले लघु और सीमांत किसानों का प्रतिशत 86.21% जबकि 10 हेक्टेयर और उससे अधिक आकार वाली भूजोतों को धारण करने वाले किसानों का प्रतिशत 0.57% है। कुल परिचालन क्षेत्र में लघु और सीमांत किसानों की भागीदारी (कृषि योग्य और गैर-कृषि योग्य दोनों में) 47.34% थी, जो पांच वर्ष पूर्व 44.31% थी।

भू-धारण की प्रचलित प्रकृति के कारण उत्पन्न कृषि से संबद्धित समस्याएं:

  • कृषि की लाभप्रदत्ता में कमी: अधिक लाभदायक फसलों (जैसे कि फलों की फसलें) को उपजाने हेतु बड़े भूखंड वाले क्षेत्रों की आवश्यकता होती है, यदि किसानों के पास छोटे और खंडित भूखंड हैं, तो वे कम लाभदायक फसलों को उपजाने के लिए बाध्य होते हैं।
  • कृषि और उन्नत कृषि प्रथाओं के मशीनीकरण से संबंधी मुद्देः मशीनीकरण कृषि को अधिक लाभदायक बनाता है, लेकिन इसके संचालन हेतु व्यापक क्षेत्रों की आवश्यकता होती है। यहां तक कि पर्यावरण के अनुकूल कृषि पद्धतियों जैसे कि जैविक कृषि की छोटी जोत में अत्यधिक कम उपज प्राप्त होती है।
  • औपचारिक ऋण तक पहुंच में कठिनाई छोटे कृषि जोत से संबंधित एक प्रमुख समस्या है। केवल 14% सीमांत और 27% छोटे किसान संस्थागत स्रोतों से ऋण प्राप्त करने में सक्षम थे।
  • व्यर्थ भूमि: भू-जोतों के विखंडन के कारण भूखंडों की एक जटिल सीमा वाले नेटवर्क का निर्माण होता है जो सीमांत पर जोत का एक भाग के अकृषित रहने के कारण व्यर्थ भूमि में वृद्धि करता है। भारतीय अर्थव्यवस्था में हो रहे संरचनात्मक परिवर्तन के परिपेक्ष्य में कृषि के लिए भूमि की सीमित उपलब्धता महत्वपूर्ण है।
  • भूमि उत्पादकता में कमी: किसान छोटे भू-जोतों पर विभिन्न उपचारों और कृषि विधियों का प्रयोग करते हैं, जो उत्पादकता को प्रभावित करते हुए मृदा की गुणवत्ता और उर्वरता को और भी खराब कर देते हैं।

प्रचलित समस्याओं का समाधान करने के उपाय

  • सहकारी कृषि: एक अधिक सहभागी पद्धति अधिक बेहतर परिणाम उत्पन्न कर सकती है। कृषि के बढ़ते नारीकरण (feminization) के साथ अधिक से अधिक महिला सहकारी समितियों के गठन से बेहतर परिणाम उत्पन्न होने की संभावना है।
  • अनुबंध कृषि और सहयोगात्मक कृषि संबंधी पहल किसानों हेतु संयुक्त खेती के लिए सहयोग करने का एक उपकरण हो सकती है।
  • कॉर्पोरेट फार्मिंग इसके माध्यम से विशेष रूप से शुष्क क्षेत्रों के ऐसे भाग, जहाँ बड़ी आकार वाली भू-जोत उपलब्ध हो किन्तु सिंचाई सुविधा का अभाव हो, में निवेश को प्रोत्साहित किया जा सकता है।
  • छोटे भू-जोतों को उपयुक्त इनपुट प्रदान करने हेतु या अधिक भूमि खरीदने में सक्षम बनाने हेतु संस्थागत ऋण बाजारों तक उचित पहुंच सुनिश्चित करना।
  • किसानों को कौशल प्रदान करना और शिक्षित बनाना तथा उत्पादकता बढ़ाने हेतु उच्च उपज वाले विभिन्न प्रकार के बीज उपलब्ध कराना।

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