वृद्धिशील पूंजी-उत्पादन अनुपात (इंक्रीमेंटल कैपिटल-आउटपुट रेश्यो: ICOR) क्या है

प्रश्न: एक विकासशील अर्थव्यवस्था जिन लक्ष्यों की आकांक्षा रखती है उनमें से एक वृद्धिशील पूंजी-उत्पादन अनुपात (इंक्रीमेंटल कैपिटल-आउटपुट रेश्यो: ICOR) में कमी लाना है। इस संदर्भ में, भारतीय अर्थव्यवस्था में बचत दर के निवेश में कुशल रूपांतरण के समक्ष आने वाली बाधाएं क्या हैं? साथ ही, इनकी कुशलता में सुधार हेतु कुछ उपायों का भी सुझाव दीजिए।

दृष्टिकोण

  • वृद्धिशील पूंजी-उत्पादन अनुपात (इंक्रीमेंटल कैपिटल-आउटपुट रेशियो:ICOR) की संक्षिप्त अवधारणा दीजिए, तत्पश्चात व्याख्या कीजिए कि विकासशील देश इसे कम करने की आकांक्षा क्यों रखते हैं।
  • पिछले दशक की बचत, निवेश और सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में हुयी वृद्धि का संक्षिप्त विवरण देते हुए बचत दर के निवेश में कुशल रूपांतरण के समक्ष आने वाली बाधाओं पर चर्चा कीजिए।
  • अंत में, कुछ उपाय सुझाइए।

उत्तर

वृद्धिशील पूंजी-उत्पादन अनुपात (ICOR), पूंजी-उत्पादन का एक प्रकार है, जो उत्पादन की एक अतिरिक्त इकाई को उत्पादित करने हेतु आवश्यक पूंजी या निवेश की अतिरिक्त इकाई को इंगित करता है।

भारत जैसे विकासशील देशों के लिए यह अनुपात बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि उन्हें इस अनुपात को कम करने की आवश्यकता है, जिसका अर्थ है कि कम निवेश के साथ सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में अधिक उत्पादन जोड़ा जा सकता है। देश उपलब्ध संसाधनों के सीमित होने के कारण इस अनुपात को कम करने की आकांक्षा रखते हैं। सामान्यतः निम्न आय से तात्पर्य निम्न बचत दर से है, जो सामान्यतः निम्न निवेश दर में रूपांतरित हो जाती है।

इस संदर्भ में, पिछले दशक में भारत की विकास दर के माध्यम से बचत और निवेश के मध्य संबंध को निर्धारित किया जा सकता है। 2007 में घरेलू बचत की दर 38.3 प्रतिशत के साथ अपने चरम पर थी तथा 2016 में गिरकर यह 29 प्रतिशत हो गई। इस अवधि के दौरान सकल घरेलू उत्पाद (GDP) से स्थायी पूंजी निर्माण (अर्थात निवेश) का अनुपात 36.7 प्रतिशत के शीर्ष स्तर से घटकर 26.4 प्रतिशत हो गया। इस अवधि के दौरान बचत की तुलना में निवेश की गिरावट दर बहुत तीव्र रही, जो यह दर्शाती है कि बचत दर के निवेश में कुशल रूपांतरण के समक्ष कुछ बाधाएं विद्यमान हैं, जैसे:

  • नकद समृद्ध होने के बावजूद, पुरानी गैर निष्पादनशील परिसम्पतियों (NPA) तथा प्रोविजनिंग एवं पूंजी पर्याप्तता संबंधी आवश्यकताओं द्वारा अधिरोपित बाधाओं के कारण बैंकों द्वारा ऋण प्रदान करने में तेजी नहीं दिखाई गयी।
  • ब्याज दरों, सरकार की नीतियों, भविष्य की आर्थिक संभावनाओं आदि कारकों का परिणाम निवेश है। उच्च बचत दर निवेश को संभव बनाती है, किन्तु इसके लिए कोई गारंटी प्रदान नहीं करती है।
  • 2008 के वित्तीय संकट ने बाजार में निवेश को हतोत्साहित कर दिया था क्योंकि इसके पश्चात निरंतर सोने और भूमि जैसे निवेश के सुरक्षित घटक खोजे जा रहे थे। उच्च बचत दर के बावजूद इसका उपयोग उत्पादक निवेश में नहीं किया गया, बल्कि अधिक लाभ हेतु स्पेक्यूलेटिव निवेशों में किया गया।
  • ऋणों और अग्रिमों के कारण परिवारों की वित्तीय देयताओं में वृद्धि हुई, जिससे निवेश से बचत की तरफ झुकाव बढ़ा।
  • उच्चतर निर्भरता अनुपात, चक्रीय रोजगार (जैसे कि कृषि के मामले में) आदि कुछ अन्य प्रमुख कारक हैं जिनके कारण बचत को निवेश में उपयोग करने के बाजाय बफर के रूप में उपयोग करने की उच्च प्रवृत्ति व्याप्त है।

इस संदर्भ में कुछ उपाय किए जा सकते हैं:

  • दोहरे तुलन पत्र की समस्या के समाधान हेतु नीतियों के साथ सार्वजनिक निवेश को बढ़ावा देना।
  • व्यापार की लागत को कम करना और एक सुस्पष्ट, पारदर्शी कर व्यवस्था का निर्माण करना।
  • लघु एवं मध्यम उद्यमों (SMEs) को समृद्ध और निवेश करने योग्य बनाने तथा निजी निवेश की पुनः बहाली हेतु अधिक सहायक परिवेश निर्मित करने की आवश्यकता है।
  • विभिन्न प्रोत्साहनों जैसे कर लाभ, संशोधित कर स्लैब आदि के माध्यम से घरेलू बचत और वित्तीय निवेश को प्रोत्साहन प्रदान करना।
  • औपचारिक बचत और निवेश साधनों के बारे में लोगों को शिक्षित करके मितव्ययिता को बढ़ावा देना।

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