मध्यकालीन भारतीय साहित्य : भारतीय भाषाओं पर भक्ति काव्य (सूफी एवं भक्ति)

प्रश्न: मध्यकालीन भारतीय साहित्य की सबसे सशक्त प्रवृत्ति भक्ति काव्य है, जो देश की लगभग सभी प्रमुख भाषाओं पर हावी रही। स्पष्ट कीजिए।

दृष्टिकोण

  • मध्यकालीन भारतीय साहित्य की प्रकृति का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  • उदाहरणों सहित वर्णन कीजिए कि किस प्रकार प्रमुख भारतीय भाषाओं पर भक्ति काव्य (सूफी एवं भक्ति) हावी रहे।
  • इस समय के अन्य काव्य रूपों का संक्षिप्त उल्लेख करते हुए उत्तर समाप्त कीजिए।

उत्तर

भारत के मध्यकालीन युग में उत्कृष्ट विशिष्टताओं से युक्त भक्ति साहित्य की एक समृद्ध परंपरा विकसित हई। भारतीय मध्यकाल का सबसे महत्वपूर्ण विकास भक्ति साहित्य वस्तुतः एक प्रेम काव्य है जिसके अंतर्गत दम्पत्तियों अथवा प्रेमियों अथवा सेवक और स्वामी अथवा माता-पिता और सन्तान के मध्य के प्रेम को चित्रित किया गया है। भक्ति आंदोलन में धर्म के प्रति काव्यात्मक दृष्टिकोण और काव्य के प्रति वैराग्य पूर्ण दृष्टिकोण अपनाया गया था।

भक्ति काव्य के उद्भव ने क्षेत्रीय भाषाओं के विकास को प्रेरित किया। भक्ति की अवधारणा ने संस्कृत की कुलीन परंपरा को समाप्त कर दिया और आम जन की सबसे स्वीकार्य भाषाओं को अपनाया। भक्ति काव्य सर्वप्रथम छठी से सातवीं शताब्दी ईस्वी में तमिल में रचा गया था और धीरे-धीरे मध्यकालीन युग के दौरान देश की लगभग सभी प्रमुख भाषाओं में भक्ति काव्य की रचना की गयी, जैसे कि:

  • दसवीं शताब्दी में कन्नड़ में पम्पा के महान राजदरबारी काव्यों की रचना की गई थी। कन्नड़ में भक्ति साहित्य, कृष्ण, राम और शिव सम्प्रदायों के विभिन्न सन्तों के “वचन” काफी प्रसिद्ध हैं।
  • मराठी में ज्ञानेश्वर, एकनाथ और तुकाराम ने भक्तिमय अभंग (एक साहित्यिक विधा) लिखे। इस साहित्य ने समस्त महाराष्ट्र को प्रभावित किया था।
  • 12वीं शताब्दी में नरसी मेहता और प्रेमानंद जैसे गुजराती कवियों को वैष्णव कवियों की विशिष्ट मण्डली में प्रमुख स्थान प्राप्त है।
  • बांग्ला कवि चण्डीदास को इनकी कविताओं में सुबोधगम्यता और माधुर्य के लिए एक महान प्रतिभाशाली व्यक्ति के रूप में जाना जाता है। महान बंगाली संत श्री चैतन्य ने वैष्णववाद को एक धार्मिक और साहित्यिक आंदोलन में रूपांतरित करने में सहायता प्रदान की। चैतन्य अनेक बंगाली कवियों के लिए कभी न समाप्त होने वाले प्रेरणा स्रोत बने रहे।
  • मैथिली में विद्यापति ने एक नई कव्यात्मक भाषा का सृजन किया। 
  • कश्मीर की एक मुस्लिम कवयित्री ललद्यद ने कश्मीरी भाषा में ‘वाखों’ (Vakhs) के रूप में रहस्यमयी भक्ति को एक नया आयाम प्रदान किया।
  • उड़िया के एक प्रसिद्ध भक्ति कवि जगन्नाथ दास ने भागवत (कृष्ण की कहानी) की रचना की, जिसने समस्त ओडिशावासियों को आत्मिक रूप से एक कर दिया और एक जीवंत चेतना का सृजन किया।
  • असमी कवि शंकरदेव ने वैष्णवमत का प्रचार करने के लिए नाटकों (अंकिया-नाट) और कीर्तन (भक्ति गीत) का प्रयोग किया और एक दिव्य-चरित्र बन गए।
  • कबीर, सूरदास, तुलसीदास और मीराबाई ने हिंदी का प्रयोग किया। हिंदी साहित्य ने विस्तृत भौगोलिक क्षेत्र में अपनी विशाल पहुँच के कारण नामदेव (मराठी) और गुरु नानक (पंजाबी) को भी हिन्दी में साहित्य की रचना करने के लिए आकर्षित किया।
  • इस अवधि के दौरान एक भाषा के रूप में उर्दू की उत्पत्ति हुई। एक महान सूफी संत अमीर खुसरो ने उर्दू का विकास किया।

भक्ति काव्य के अतिरिक्त, मध्ययुगीन साहित्य में अन्य धाराएं भी प्रचलित थीं जैसे कि पंजाबी में प्रेम गाथागीत (जैसे- वारिस शाह द्वारा रचित हीर-रांझा) और वीरगाथाएं (जिन्हें ‘किस्सा’ के रूप में जाना जाता है)। 1700 और 1800 ईसवी के मध्य बिहारी लाल और केशव दास जैसे कई कवियों ने हिन्दी में श्रृंगार (श्रृंगारिक भावना) के पंथनिरपेक्ष काव्य का सृजन किया। साथ ही बड़ी संख्या में अन्य कवियों ने उच्च कोटि के काव्य की सम्पूर्ण श्रृंखला की रचना की है। तथापि, 1000 से 1800 ईसवी के बीच मध्यकालीन भारतीय साहित्य की सर्वाधिक शक्तिशाली धारा भक्ति काव्य ही है जिसकी रचना देश की लगभग सभी प्रमुख भाषाओं में की गयी है।

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