असम आंदोलन का संक्षिप्त वर्णन : 1985 के असम समझौते के रूप में निष्कर्ष

प्रश्न: असम आंदोलन को आकार देने वाले मुद्दों की व्याख्या कीजिए। इस संदर्भ में, 1985 के असम समझौते के महत्व पर भी टिप्पणी कीजिए। (250 शब्द)

दृष्टिकोण

  • असम आंदोलन का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  • आंदोलन को आकार देने वाले मुद्दों पर चर्चा कीजिए।
  • उल्लेख कीजिए कि कैसे यह आंदोलन 1985 के असम समझौते के रूप में अपने निष्कर्ष पर पहुँचा।
  • इस समझौते के प्रमुख प्रावधानों तथा परिणामों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  • वर्तमान स्थिति का उल्लेख करते हुए निष्कर्ष दीजिए।

उत्तर

1979 से 1985 तक चलने वाला असम आंदोलन वर्ष 1985 में असम समझौते के अंगीकरण के उपरांत समाप्त हुआ। ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन (AASU) के नेतृत्व में यह स्थानीय लोगों द्वारा चलाया गया एक लोकप्रिय आंदोलन था, जो मुख्य रूप से पूर्वी पाकिस्तान तथा अन्य देशों के अप्रवासियों के विरुद्ध चलाया गया। इस आंदोलन के विकास एवं प्रसार के लिए उत्तरदायी कारण निम्नलिखित थे :

  • स्थानीय समूहों के मध्य अधीनता, प्रवासन आदि के कारण पहचान के खोने का भय।
  • असमिया तथा अन्य स्थानीय परंपराओं पर बंगाली भाषा एवं संस्कृति का प्रभुत्व।
  • प्रवासियों को मताधिकार एवं इसके परिणामस्वरूप मतदान जनसांख्यिकी में होने वाला परिवर्तन।
  • विभिन्न राजनीतिक नेताओं द्वारा अप्रवासियों के प्रति भिन्न-भिन्न दृष्टिकोणों के कारण निराशा।
  • राजनीतिक हितों के लिए उग्रवादी समूहों का तुष्टिकरण एवं शोषण।
  • आप्रवासियों के कारण कृषि भूमि पर अधिकार एवं रोजगार अवसरों की क्षति।
  • स्थानीय-आप्रवासी ध्रुवीकरण।

इस आंदोलन में मांग की गयी कि असम की नृजातीय विविधतायुक्त जनसांख्यिकी में होने वाले संरचनात्मक परिवर्तनों को रोकने के लिए अवैध अप्रवासियों की पहचान की जाए एवं उन्हें असम से निष्कासित किया जाए। इसके परिणामस्वरुप, भारत सरकार तथा असम आंदोलन के नेताओं के बीच अगस्त 1985 में असम समझौते अर्थात समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए गए।

इस समझौते के प्रमुख प्रावधान निम्नलिखित थे: 

  • बाहरी लोगों की पहचान एवं निष्कासन के उद्देश्य हेतु वर्ष 1966 को आधार वर्ष के रूप में निर्धारित किया जाए।
  • 1 जनवरी 1966 को एवं उसके बाद से 24 मार्च 1971 तक असम में आए प्रवासियों की पहचान विदेशी विषयक अधिनियम, 1946 और विदेशी विषयक (अधिकरण) आदेश, 1964 के प्रावधानों के अनुसार की जाएगी एवं उनके नामों को मतदाता सूची से हटाया जाएगा।
  • 25 मार्च, 1971 को अथवा इसके पश्चात असम में आए विदेशियों की उपरोक्त कानूनों के अनुसार पहचान की जाएगी, उनके नामों को हटाया जाएगा तथा उन्हें निष्कासित कर दिया जाएगा।

असम समझौते का ऐतिहासिक महत्व है क्योंकि इसके द्वारा एक हिंसक आंदोलन का समापन हुआ। इसके माध्यम से आंदोलन के नेताओं ने राजनीतिक मुख्यधारा में प्रवेश किया एवं 1985 के पश्चात् आयोजित चुनावों में लोकतांत्रिक रीति से निर्वाचित होकर असम में सरकार का गठन किया। हालांकि, अभी भी 1985 के समझौते के कुछ प्रावधानों को लागू किया जाना शेष है। इस कारण से स्थानीय समुदायों के मध्य नृजातीय संवेदनशीलता एवं साम्प्रदायिक तनाव में वृद्धि के साथ ही लोगों में असंतोष उत्पन्न हुआ है।

लोगों के निरंतर विरोध के कारण राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर को सफलतापूर्वक अद्यतित नहीं किया जा सका है। इसके अतिरिक्त, अप्रवासियों की संख्या एवं उनकी पीढ़ीगत वृद्धि और उनके द्वारा अन्य राज्यों में प्रवास ने समस्या को और अधिक जटिल बना दिया है। कुछ विशिष्ट क्षेत्रों में नृजातीय स्वायत्तता की मांग भी उठाई जा रही है। इसी संदर्भ में, असम समझौते के क्रियान्वयन की स्थिति का पुनः मूल्यांकन करते हुए उपयुक्त रणनीति तथा सक्रिय उपायों द्वारा बढ़ते जन असंतोष को कम किया जाना चाहिए।

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