प्राचीन भारत की कला और स्थापत्य में बौद्ध धर्म के गहन प्रभाव : भारत में एक संगठित धर्म के रूप में बौद्ध धर्म के पतन के कारण

प्रश्न: एक संगठित धर्म के रूप में पूर्णतया ओझल होने के बावजूद, बौद्ध धर्म ने अपनी स्थायी छाप छोड़ी है। इस संदर्भ में, प्राचीन भारत की कला और स्थापत्य में बौद्ध धर्म के योगदान पर प्रकाश डालिए।

दृष्टिकोण

  • भारत में एक संगठित धर्म के रूप में बौद्ध धर्म के पतन के कारणों की संक्षिप्त चर्चा कीजिए।
  • प्राचीन भारत की कला और स्थापत्य में बौद्ध धर्म के गहन प्रभाव को रेखांकित कीजिए।

उत्तर

भारत में बौद्ध धर्म 12वीं शताब्दी के प्रारंभ में ही व्यावहारिक रूप से विलुप्त हो गया था। यह धन संचयन, महिलाओं के प्रति वासना, आरामदायक जीवन शैली, अंधविश्वास युक्त प्रथाओं इत्यादि उन्हीं बुराइयों से ग्रसित हो गया, जिनका इसके द्वारा आरंभ में विरोध किया गया था। हिंदू धर्म और जैन धर्म के साथ बढ़ती प्रतिस्पर्द्धा, संरक्षण एवं दान में कमी तथा हूणों, तुर्कों और फारसियों द्वारा विजय और तत्पश्चात उत्पीड़न एक संगठित धर्म के रूप में इसके पूर्णतया ओझल होने के कारण बने।

हालाँकि इसके बावजूद, बौद्ध धर्म ने प्राचीन भारत के कला और स्थापत्य पर अपनी प्रभावी छाप छोड़ी। जैसे:

स्थापत्य

  • महान बौद्ध सम्राट अशोक ने बलुआ पत्थर के एकाश्म स्तंभ स्थापित करवाये, जिनके शीर्ष पर वृषभ, सिंह व हाथी जैसे पशुओं की आकृतियाँ उत्कीर्ण की गयी थी तथा इन पर सदाचार, मानवता व पवित्रता के बौद्ध उपदेश अंकित किए गए थे। उत्खनन में लौरिया-नंदनगढ़, सांची और सारनाथ में अशोक के प्रसिद्ध स्तंभ प्राप्त हुए हैं। सारनाथ का एकाश्म सिंह, भारत सरकार का राष्ट्रीय चिह्न है।
  • स्तूपः स्तूपों का निर्माण पत्थरों अथवा ईंटों से किया जाता था। ये महत्वपूर्ण घटनाओं की स्मृति या बौद्ध धर्म से संबंधित महत्वपूर्ण स्थानों को चिह्नित करने या बुद्ध के महत्वपूर्ण अवशेषों को सुरक्षित रखने हेतु निर्मित किये जाते थे। उदाहरणस्वरूप: अमरावती, सांची, भरहुत और गया के स्तूप।
  • चैत्य और विहार: सम्पूर्ण देश में चैत्यगृह या पूजा स्थल (हॉल), ईंटों से अथवा चट्टानों को काट कर बनाए गए थे। भारत के विभिन्न भागों में ईंटों से अथवा चट्टानों को काट कर बनाए गए विहार या मठ पाए गए हैं। अजंता, एलोरा, नासिक, कार्ले, कन्हेरी, बाघ और बादामी में निर्मित विहार इसके प्रमुख उदाहरण हैं।

कला:

  • लगभग तीसरी-चौथी शताब्दी में संकलित बौद्ध ग्रंथ विनय पिटक में अनेक स्थानों पर चित्रित हॉल वाले आमोद गृह को संदर्भित किया गया है। ये चित्रित आकृतियों और अलंकृत पैटर्न से सुसज्जित थे।
  • ईसाई युग से पूर्व, बुद्ध की आध्यात्मिकता को अत्यंत अमूर्त माना जाता था और बोधि वृक्ष (जहाँ बुद्ध को ज्ञान प्राप्त हुआ था), धम्म चक्र (विधि का चक्र), उनके पद चिह्न, शाही छत्र, स्तूप एवं खाली सिंहासन आदि जैसे प्रतीकों द्वारा इसका प्रतिनिधित्व किया गया था। बुद्ध की मानव छवियों को सर्वप्रथम मथुरा कला शैली के अंतर्गत निर्मित किया गया।
  • अजंता के गुफा मंदिरों में (दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व से 7वीं शताब्दी ईस्वी के दौरान निष्पादित), चित्रों की विषयवस्तु छत और स्तंभों पर अलंकृत पैटर्न को छोड़कर लगभग पूर्ण रूप से बौद्ध धर्म से संबंधित है। ये पैटर्न अधिकांशतः जातक कथाओं (कहानियों का संग्रह, बुद्ध के पूर्व जन्मों का विवरण) से संबंधित हैं। गुफा -1 में बना बोधिसत्व पद्मपाणि का चित्र, अजंता चित्रकारी की सर्वोत्कृष्ट कृतियों में से एक है।
  • 8वीं और 10वीं शताब्दी ईस्वी के मध्य उत्खनित एलोरा के भित्ति चित्रों में बौद्ध धर्म से संबंधित चित्र भी शामिल हैं।

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