भारत-नेपाल शांति एवं मैत्री संधि, 1950

प्रश्न: भारत-नेपाल शांति एवं मैत्री संधि, 1950 भारत-नेपाल संबंधों की आधारशिला निर्मित करती है। यद्यपि इस क्षेत्र में हाल ही में हुए परिवर्तनों पर विचार करते हुए इस संधि में संशोधन करना एक विवेकपूर्ण कदम होगा। विश्लेषण कीजिए।

दृष्टिकोण

  • संधि का संक्षिप्त विवरण दीजिए।
  • उन आधारों की चर्चा कीजिए जिन पर संधि के संशोधन की मांग की जा रही है।
  • संक्षिप्त चर्चा कीजिए कि क्यों संधि लाभदायक है तथा इसमें संशोधन की आवश्यकता नहीं है।
  • उपरोक्त चर्चा के आधार पर सुझाव दीजिए कि क्या इसे संशोधित किया जाना चाहिए तथा किस संदर्भ में इसे संशोधित किया जाना चाहिए।

उत्तर

भारत और नेपाल के मध्य संबंध ऐतिहासिक, भौगोलिक, सांस्कृतिक तथा भाषाई संबद्धता पर आधारित हैं। भारत-नेपाल शांति एवं मैत्री संधि,1950 में भी यही परिलक्षित होता है।

नेपाल में घरेलू लोकतान्त्रिक परिवर्तनों के संदर्भ में संधि में संशोधन की मांग की गयी है। नेपाल में विभिन्न स्रोतों के द्वारा निम्नलिखित शिकायतों को व्यक्त किया गया है:

  • संधि नेपाल के विगत युग से संबंधित है: नेपाल की राजशाही ने नेपाल में लोकतांत्रिक आन्दोलनों के पक्ष में भारत के समर्थन को रोकने के उद्देश्य से भारत से मित्रता स्थापित करने का प्रयास किया। इसके अतिरिक्त, तिब्बत के अधिग्रहण के सन्दर्भ में चीन से होने वाले खतरे ने भारत के इस दिशा में आगे बढ़ने को तर्कसंगत ठहराया। यद्यपि वर्तमान में, नेपाल में राजशाही और चीन से खतरा, दोनों ही परिस्थितियां समाप्त हो गयी हैं।
  • समानता आधारित संबंधों की आवश्यकता: नेपाल में कुछ समुदायों द्वारा शिकायत की जाती है कि भारत नेपाल के साथ समानता का व्यवहार नहीं करता है जैसा कि 2015 में सीमावर्ती क्षेत्रों में की गई नाकाबंदी में भी स्पष्ट रूप से दिखाई पड़ता है। इसके अतिरिक्त, मधेसी जैसे समूहों के समर्थन को घरेलू राजनीति में हस्तक्षेप के रूप में देखा जाता है।
  • सम्प्रभुता संबंधी तर्क: विभिन्न विचारकों ने यह तर्क दिया है कि यह संधि नेपाल को अन्य देशों विशेषकर चीन के साथ स्वतंत्र रूप से अपने रणनीतिक और आर्थिक हितों को आगे बढ़ाने से रोकती है।

इस तथ्य देखते हुए कि नेपाल में नव निर्वाचित सरकार के नेताओं ने अनेक अवसरों पर संधि में संशोधन के पक्ष में अपना मत व्यक्त किया है, इस प्रकार की मांग की संभावना को ध्यान में रखा जाना चाहिए। भारत को नेबरहुड फर्स्ट पॉलिसी के साथ ही साथ गजराल डॉक्टिन जैसे सिद्धांतों के एक भाग के रूप में ऐसे विचारों के प्रति सदैव उदार रहना चाहिए जो उसके पड़ोसी देशों की लोकप्रिय आकांक्षाओं को प्रतिबिंबित करते हैं। इस प्रकार यदि संधि में संशोधन नेपाल की एक लोकप्रिय मांग है तो इस प्रकार के विचार के प्रति उदार रहना निश्चित रूप से दूरदर्शी सिद्ध होगा।

इसके बावजूद, इस तथ्य को ध्यान में रखा जाना चाहिए कि मौजूदा संधि में दोनों देशों के नागरिकों के साथ पारस्परिक राष्ट्रीय व्यवहार जैसे प्रावधानों से नेपाल को अत्यधिक लाभ प्राप्त हुआ है। विदेश मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, लगभग 60 लाख नेपाली नागरिक भारत में रहते और कार्य करते हैं। भारत हमेशा से नेपाल का मित्र रहा है और इसकी अभिव्यक्ति सरकार के उच्चतम स्तरों पर की गयी है। प्रधानमंत्री के द्वारा इस हिमालयी राष्ट्र की अपनी हालिया यात्रा के दौरान भी इस विचार को अभिव्यक्त किया गया। इस संदर्भ में, एक अन्य पड़ोसी हिमालयी राष्ट्र भूटान एक आदर्श उदाहरण के रूप में कार्य कर सकता है। भारत और भूटान ने 1949 की संधि एवं 2007 में इसके संशोधित संस्करण के तहत मजबूत आपसी संबंधों को बरकरार रखा  है।

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