बीज प्रतिस्थापन दर : ब्रीडर, फाउंडेशन और प्रमाणित बीजों की अवधारणाओं की संक्षेप में व्याख्या

प्रश्न: बीज प्रतिस्थापन दर (सीङ रिप्लेसमेंट रेट) से आप क्या समझते हैं? ब्रीडर, फाउंडेशन और प्रमाणित बीजों की अवधारणा की व्याख्या करते हुए, किसानों के लिए गुणवत्तापरक बीजों की उपलब्धता की चुनौती का समाधान करने हेतु की गयी प्रमुख नीतिगत पहलों पर प्रकाश डालिए।

दृष्टिकोण

  • बीज प्रतिस्थापन दर को परिभाषित कीजिए। ब्रीडर, फाउंडेशन और प्रमाणित बीजों की अवधारणाओं की संक्षेप में व्याख्या कीजिए।
  • गुणवत्ता के मुद्दों को हल करने के लिए की गयी नीतिगत पहलों को सूचीबद्ध कीजिए।
  • आगे की राह के साथ उत्तर का समापन कीजिए।

उत्तर

बीज प्रतिस्थापन दर या अनुपात (Seed Replacement Ratio:SRR) कृषि से व्युत्पन्न पारंपरिक बीज की तुलना में प्रमाणित / गुणवत्ता पूर्ण बीजों के साथ बोए गए कुल फसल वाले क्षेत्र का मापक है। चूंकि प्रमाणित / गुणवत्ता वाले बीज की उत्पादकता बेहतर होती है अतः उच्च SRR, उच्च उत्पादन एवं उत्पादकता तथा इसके परिणामस्वरूप निवेश पर बेहतर रिटर्न (प्रतिफल) को दर्शाता है।

ब्रीडर, फाउंडेशन और प्रमाणित बीज भारतीय बीज क्षेत्र की पहलों के तहत सीड मल्टीप्लीकेशन चेन में मान्यता प्राप्त तीन पीढ़ियाँ हैं। बीज की यह सीमित पीढ़ी प्रणाली बीज की शुद्धता व गुणवत्ता सुनिश्चित करने में मदद करती है क्योंकि इनका प्रवाह ब्रीडर से किसान तक होता है।

बीज परिभाषा उत्पादक प्रमाणन
ब्रीडर समान किस्म के न्यूक्लियस बीज की  संतति (progeny); फाउंडेशन बीज के उत्पादन के लिये भौतिक एवं आनुवांशिक द्रश्टि से 100 शुद्ध बीज  ICAR के अधिदेश के तहत स्थापित प्लांट ब्रीडर, राज्य कषि विश्वविद्यालय और अन्य सार्वजनिक निकाय उत्पादक ब्रीडर द्वारा सुनेहरे पीले र्ंग के प्रमाण पत्र के साथ जारी
फाउंडेशन ब्रीडर बीज की संतति. ब्रीडर बीज या  ऐसे फाउंडेशन बीज से उत्पादित किया जाता है जिसका मूल स्पष्ट रूप से ब्रीडर बीज में खोजा सकता है सार्वजनिक और निजी क्षेत्र में मान्यता प्राप्त बीज उत्पादन निकाय  इंडियन मिनिमम सीड्स सर्टिफिकेशन स्टेंडड्र्र्स(IMSCS) ऐसे फाउंडेशन बीज 1988 के अनुसार बीज प्रमाणिक एजेसियों द्वरा दिया गया

 

प्रमाणित IMSCS, 1988 में निर्धारित मानकों के अनुसार फाउंडेशन बीज की संतति बीज प्रमाणन एजेंसियों की देखरेख में पंजीकृत बीज उत्पादक नीले र्ंग के प्रमाणन पत्र के साथ बीज प्रमाणन एजेंसी द्वारा जारी किया गया

बीज किसी फसल उत्पादन प्रणाली का प्रारंभिक बिंदु है। बीज की गुणवत्ता उत्पादन की सीमा को निर्धारित करती है। यह स्वाभाविक है कि सरकार ने भारतीय किसानों को गुणवत्ता पूर्ण बीज की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए विभिन्न पहले आरंभ की हैं। इसमें शामिल है:

  1. राष्ट्रीय बीज कार्यक्रम (1976-95): इसे विश्व बैंक की सहायता से आरम्भ किया गया। इस कार्यक्रम को तीन चरणों में लागू किया गया जिसके तहत राज्य बीज निगमों, राज्य बीज प्रमाणन एजेंसियों, राज्य बीज परीक्षण प्रयोगशालाओं, ब्रीडर बीज कार्यक्रम आदि की स्थापना की गई।
  2. PPV & FR एक्ट, 2001 के तहत प्रोटेक्शन ऑफ़ प्लांट वैराइटीज एंड फार्मर्स राइट्स (PPV & FR) अथॉरिटी (WTO के ट्रिप्स समझौते के अनुपालन में अधिनियमित): यह पौधों की किस्मों की रक्षा, नई किस्मों के विकास को प्रोत्साहित करने, अनुसंधान एवं विकास में निवेश को प्रोत्साहित करने और बीज उद्योग के विकास को सुगम बनाने के लिए अधिदिष्ट  है।
  3. नेशनल मिशन ऑन आयलसीड्स एंड आयल पाम, 2014: इसे तीन लघु मिशनों के तहत लागू किया जा रहा है। इसका उद्देश्य किस्मों के प्रतिस्थापन, विविधीकरण, अंतर-शस्यन और सिंचाई कवरेज पर ध्यान केंद्रित करते हुए SRR को बढ़ाना
  4. अन्य कदम और सार्वजनिक संगठनः इनमें उत्पादन और वितरण सब्सिडी, सीड मिनी किट, बीज बैंक योजना (2000),  राष्ट्रीय बीज नीति (2002) शामिल हैं; 1963 से आरम्भ राष्ट्रीय बीज निगम (NSC), बीज हब, बीज सम्मेलन, सहकारी संस्थान और कृषि विभाग, लगभग 500 निजी बीज एजेंसियां और इसी प्रकार के अन्य कदम शामिल हैं।

इसके अलावा, किसानों की आय को दोगुना करने के तरीकों का सुझाव देने के लिए गठित अशोक दलवाई समिति ने, SRR बढ़ाने, पुरानी किस्मों को नयी किस्मों से प्रतिस्थापित करने, संकर प्रौद्योगिकी को प्रोत्साहन देने, बीज परीक्षण सुविधाओं को मजबूत करने, संपूर्ण देश में एक समान बीज लाइसेंसिंग नीति को अपनाने, अनुसंधान एवं विकास के क्षेत्र में PPP मॉडल का प्रयोग करने, बीज के निर्यात को बढ़ावा देने और इस क्षेत्र में सार्वजनिक निकायों को पुनर्गठित करने की अनुशंसा की है। ये कदम न केवल गुणवत्ता युक्त बीज की चुनौती की ओर ध्यान देंगे बल्कि किसानों के लिए उत्पादन लागत को भी कम करेंगे और इस प्रकार उनकी आय में वृद्धि होगी।

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