सूक्ष्म,लघु एवं मध्यम उद्यम ( MSME) क्षेत्र की संक्षिप्त व्याख्या : भारत की अर्थव्यवस्था में MSME क्षेत्र का महत्व

प्रश्न: भारत की अर्थव्यवस्था में MSME क्षेत्रक के महत्व पर प्रकाश डालिए। साथ ही, चुनौतियों की पहचान करते हुए उन्हें संपोषित करने और उनके प्रतिस्पर्धात्मक वृद्धि को सुनिश्चित करने के लिए कुछ नीतिगत अनुशंसाओं का सुझाव दीजिए।

दृष्टिकोण

  • सूक्ष्म,लघु एवं मध्यम उद्यम ( MSME) क्षेत्र की संक्षिप्त व्याख्या कीजिए।
  • भारत की अर्थव्यवस्था में MSME क्षेत्र के महत्व का उल्लेख कीजिए।
  • इस क्षेत्र के समक्ष आने वाली चुनौतियों का आकलन कीजिए।
  • MSMEs को संपोषित करने और इनके प्रतिस्पर्धात्मक वृद्धि को सुनिश्चित करने के लिए कुछ नीतिगत अनुशंसाओं का सुझाव दीजिए।
  • निष्कर्ष लिखिए।

उत्तर

2018 में संशोधित सूक्ष्म,लघु एवं मध्यम उद्यम विकास (MSMED) अधिनियम, 2006, ऐसे व्यवसाय को MSMEs के रूप में वर्गीकृत करता है, जिसका वार्षिक बिक्री टर्नओवर 5 करोड़ (सूक्ष्म), 75 करोड़ (लघु) और 250 करोड़ (मध्यम) तक है। इससे पूर्व की परिभाषा प्लांट और मशीन में निवेश पर आधारित थी। MSMEs के अंतर्गत खाद्य उत्पादों के विनिर्माण में संलग्न उद्योग, परिधान उद्योग और मोटर वाहनों की बिक्री एवं मरम्मत जैसी सेवाएं आती हैं।

MSME क्षेत्र का महत्व:

  • MSMEs भारतीय विनिर्माण क्षेत्र का मुख्य आधार हैं, क्योंकि उनके द्वारा भारत में लगभग 90% औद्योगिक इकाइयों और विनिर्माण क्षेत्र में मूल्यवर्धन के 40% का योगदान दिया जाता है।
  • इसके द्वारा तुलनात्मक रूप से कम पूंजी लागत में व्यापक स्तर पर रोजगार सृजित किए जाते हैं। ये 11.10 करोड़ कामगारों को रोजगार प्रदान करते हैं (NSS के 73वें राउंड, 2015-16 के अनुसार)
  • ये ग्रामीण एवं पिछड़े क्षेत्रों के औद्योगीकरण में सहायता करते हैं।
  • कुल विनिर्माण निर्यात में MSMEs का योगदान 50% है।
  • इनमें परिवर्तनों के साथ समायोजन करने और अंतर्निहित लचीलेपन के कारण नवाचार को प्रोत्साहित करने की क्षमता होती है।

इसके समक्ष विद्यमान चुनौतियाँ

  • व्यावसायिक गतिविधियों के विस्तार हेतु पर्याप्त ऋण की अनुपलब्धता।
  • 1991 के सुधारों और WTO की बाध्यताओं के कारण तीव्र अंतर्राष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा।
  • सार्वजनिक क्षेत्र में गिरावट, जो SMEs का एक प्रमुख उपभोक्ता रहा है।
  • विद्युत, सड़क, जल, परिवहन, संचार, सूचना और तकनीकी आगतों जैसी विश्वसनीय एवं कुशल बुनियादी सुविधाओं का अभाव।
  • ये बड़े संगठनों की तरह कुशल एवं सक्षम श्रमबल को नियुक्त करने की स्थिति में नहीं हैं।
  • फंड की कमी के कारण बाजार रणनीति का अभाव।

संपोषित करने और इनके प्रतिस्पर्धात्मक वृद्धि को सुनिश्चित करने हेतु नीतिगत अनुशंसाएं:

  • वित्त– बैंक ऋण, एंजेल फंडिंग, वेंचर कैपिटल, प्राइवेट इक्विटी इत्यादि के माध्यम से वित्त की उपलब्धता। क्रेडिट गारंटी स्कीम, क्रेडिट लिंक्ड कैपिटल सब्सिडी स्कीम, प्रधानमंत्री मुद्रा योजना, मुद्रा बैंक जैसी योजनाएं इस सन्दर्भ में सराहनीय कदम हैं।
  • श्रम कानूनों में सुधार जैसे उत्पादकता से सम्बद्ध मजदूरी संरचना, इनकी प्रतिस्पर्धात्मकता को बढ़ाने के लिए एकल श्रम कानून आदि।
  • वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला के साथ इंटर-फर्स लिंकेज और एकीकरण को प्रोत्साहन देना।
  • तकनीकी उन्नयन और संगठन द्वारा आंतरिक रूप से किये गए (in-house) तकनीकी नवाचारों को बढ़ावा दिया जाना चाहिए।
  • कौशल विकास और प्रशिक्षण– लघु एवं दीर्घ अवधि के पाठ्यक्रम, उच्च स्तरीय प्रशिक्षण सुविधाएँ इत्यादि।
  • विपणन एवं सरकारी खरीद- सार्वजनिक खरीद, क्लस्टर-बेस्ड मार्केटिंग नेटवर्क आदि में वरीयतापूर्ण व्यवहार के माध्यम से।

MSMEs में राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लागत, गुणवत्ता और उत्पादों के आधार पर प्रतिस्पर्धा करने की क्षमता विद्यमान है, बशर्ते उन्हें प्रौद्योगिकी, उत्पादन प्रक्रिया, R&D में एक आदर्श निवेश और प्रभावी मार्केटिंग उपलब्ध कराई जाए।

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