प्रवाल भित्तियों के विकास हेतु अनुकूल दशाऐं
प्रश्न: प्रवाल भित्तियों के विकास के लिए अनुकूल दशाएँ बताइए। उन मानवीय क्रियाकलापों का उल्लेख कीजिए जिनके परिणामस्वरूप प्रवाल भित्तियों का ह्रास हुआ है। साथ ही, इसके परिणामों पर भी प्रकाश डालिए।
दृष्टिकोण
- प्रवाल भित्तियों के विकास हेतु अनुकूल दशाओं का उल्लेख कीजिए।
- उन मानवीय क्रिया कलापों का वर्णन कीजिए जिनके परिणामस्वरूप प्रवाल भित्तियों का ह्रास हुआ है।
- इसके अतिरिक्त, प्रवाल भित्तियों के ह्रास के परिणामों को सूचीबद्ध कीजिए।
उत्तर
प्रवाल भित्तियाँ विविधतापूर्ण जलमग्न पारितंत्र हैं जो प्रवालों द्वारा स्रावित कैल्शियम कार्बोनेट की संरचनाओं के समेकन एवं संयोजन से निर्मित होती हैं। इनका निर्माण समुद्री जल में पाए जाने वाले प्रवाल जंतुओं (पॉलिप) की कॉलोनियों द्वारा होता है। इन्हें सामान्यत: उष्ण एवं शीतल जल की प्रवाल भित्तियों में वर्गीकृत किया जाता है।
उष्णकटिबंधीय/उष्ण जल की प्रवाल भित्तियों हेतु अनुकूल दशाएँ:
- जल का तापमान 22 से 29 डिग्री सेल्सियस के मध्य होना चाहिए। इस प्रकार, प्रवालों का क्षेत्रीय वितरण उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों तक ही सीमित होता है। ठंडी धाराओं वाले क्षेत्रों में इनका विकास नहीं होता, परन्तु गर्म धारा वाले क्षेत्रों में ये फलते-फूलते हैं। यही कारण है कि ये सामान्यत: महाद्वीपों के पश्चिमी तट पर नहीं पाए जाते। उदाहरण: गल्फ स्ट्रीम के कारण प्रवाल, अटलांटिक महासागर में वेस्ट इंडीज के सुदूर उत्तर में पाए जाते हैं।
- पॉलिप, सूक्ष्म शैवालों पर निर्भर होते हैं जिन्हें जीवन हेतु प्रकाश संश्लेषण की आवश्यकता होती है। इस प्रकार प्रवाल भित्तियों हेतु जल की गहराई 180 फ़ीट से अधिक नहीं होनी चाहिए ,क्योंकि इससे अधिक गहराई पर पर्याप्त प्रकाश पहुँच नहीं पाता। इसके साथ ही यह भी ध्यान देने योग्य है कि प्रवालों के लिए पर्याप्त जल की उपलब्धता अनिवार्य है ,क्योंकि एक लम्बे समय तक जल के अभाव में पॉलिप जीवित नहीं रह सकता।
- जल लवणीय तथा अवसाद-मुक्त होना चाहिए। प्रवालों के विकास के लिए सर्वाधिक अनुकूल परिस्थितियाँ सागरवर्ती पार्श्व पर विद्यमान होती है, जहाँ निरंतर गतिमान तरंगें, ज्वार तथा धाराएँ प्रचुर मात्रा में स्वच्छ, ऑक्सीजन युक्त जल की आपूर्ति को बनाए रखती हैं।
शीतल जल के प्रवालों हेतु अनुकूल दशाएँ:
- ये सामान्यत: उन स्थानों में पाए जाते हैं जहाँ धारा का प्रवाह तीव्र होता है।
- ये महाद्वीपीय निमग्नतट पर तथा साथ ही स्थलाकृतिक ऊँचाई वाले गहरे समुद्री क्षेत्रों यथा समुद्रीपर्वत, समुद्री टीले, कटक और श्रृंग में पाए जाते हैं।
- इनके पॉलिप, शैवालों के साथ सहजीवी सम्बन्ध नहीं स्थापित करते। इस प्रकार ये अधिक गहराई में भी पाए जा सकते हैं,क्योंकि इन्हें जीवित रहने के लिए सूर्य के प्रकाश की आवश्यकता नहीं होती है।
- इनके पॉलिप अपेक्षाकृत बड़े होते हैं इसलिए कम पोषक तत्व युक्त जल से खाद्य कणों का अभिग्रहण कर सकते हैं।
मानवीय क्रियाकलाप जिनके परिणामस्वरूप प्रवालों का ह्रास हुआ है:
- जलवायु परिवर्तन तथा प्रदूषण के कारण तापमान वृद्धि: चूंकि प्रवाल तापमान के अत्यंत संकीर्ण परास में जीवित रहते हैं, अतः तापमान में मामूली परिवर्तन भी बड़े पैमाने पर ह्रास का कारण बन सकता है।
- कृषि भूमि से होने वाला अपवाह और रासायनिक प्रदूषण: इसके परिणामस्वरूप सुपोषण (युट्रीफिकेशन) होता है एवं तत्पश्चात ऑक्सीजन की कमी हो जाती है।
- अति मत्स्यन: इसके परिणामस्वरूप मछलियों की संख्या में कमी तथा फलस्वरूप परभक्षी मछलियों के लिए उपलब्ध आहार में भी कमी हो जाती है। इस प्रकार, बड़े पैमाने पर पारिस्थितिकी तंत्र में परिवर्तन होता है और इसके फलस्वरूप प्रवाल पारितंत्र प्रभावित होता है।
- विनाशकारी मत्स्य आखेट एवं नौकायन क्रियाएँ: इसके फलस्वरूप पारिस्थितिकी तंत्र का विनाश एवं प्रवाल पारितंत्र का विघटन होता है।
- समुद्री प्रदूषण: समुद्री परिवहन में वृद्धि, तेल के रिसाव (ऑयल स्पिल) आदि जैसी घटनाएँ प्रवाल भित्तियों के विनाश का कारण बनती हैं।
- अनियंत्रित पर्यटन गतिविधियां: ऐसी गतिविधियों के परिणामस्वरूप प्रवाल कालोनियों का विघटन तथा ऊतकों की क्षति (tissue damage) होती है।
- तटीय निर्माण और तटरेखा विकास: इनके द्वारा अत्यधिक अवसादन होता है, जो प्रवाल भित्तियों के विनाश का कारण बनता है।
- मनुष्यों द्वारा महासागरों में आक्रामक प्रजातियों का प्रवेश कराने से भी प्रवाल पारितंत्र में परिवर्तन होता है।
- प्रवाल खनन: ईंट आदि के रूप में उपयोग करने के लिए भित्तियों से जीवित प्रवाल निकाल लिए जाते हैं।
विनाशकारी मानवीय गतिविधियों तथा जलवायु परिवर्तन के कारण विश्व की लगभग 60% भित्तियाँ खतरे में पड़ सकती हैं। इसके अतिरिक्त यह सम्भावना भी व्यक्त की गयी है कि 2030 तक 90% प्रवाल भित्तियाँ तथा 2050 तक सभी प्रवाल भित्तियाँ संकटग्रस्त हो सकती हैं।
इसके परिणामों में सम्मिलित हैं:
- इससे समुद्री पारिस्थितिक तंत्र प्रभावित होगा, क्योंकि प्रवाल भित्तियाँ सर्वाधिक जैव विविधतापूर्ण एवं उत्पादक पारितंत्रों में गिनी जाती हैं।
- भित्तियाँ तट रेखाओं के लिए प्राकृतिक अवरोधों के रूप में कार्य करती हैं तथा उन्हें प्रवाहमान जल के प्रभाव से बचाती हैं।
- प्रवाल भित्तियों के लुप्त हो जाने पर तट रेखाएं तूफान, हरीकेन तथा चक्रवातों से होने वाली क्षति एवं बाढ़ के प्रति अत्यधिक संवेदनशील हो जाएंगी।
- प्रवाल भित्तियों की अनुपस्थिति में महासागरों की कार्बन डाइऑक्साइड अवशोषित करने की क्षमता कम हो जाएगी। इससे वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड की अधिक मात्रा शेष रह जाएगी।
- प्रवाल भित्तियों की हानि का उष्णकटिबंधीय देशों की अर्थव्यवस्था, खाद्य आपूर्ति और उनके तटीय समुदायों की सुरक्षा पर विनाशकारी प्रभाव पड़ेगा।
यही कारण है कि इनके संरक्षण के लिए प्रयास करना अत्यधिक महत्वपूर्ण है अन्यथा हजारों वर्षों में घटित यह प्राकृतिक परिवर्तन अपना अस्तित्व खो देगा।
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