सेवा क्षेत्रक में MSME के महत्व की व्याख्या : भारत में इस संदर्भ में MSMEs द्वारा सामना की जा रही समस्याओं का उल्लेख

प्रश्न: MSMEs से संबद्ध सेवा उद्यम न केवल समग्र GDP संवृद्धि में बहुत अधिक योगदान देती हैं, बल्कि उनका स्थानीय अर्थव्यवस्थाओं पर भी एक सशक्त और गुणक प्रभाव है। इस कथन का सविस्तार वर्णन करते हुए, MSMEs सेवा क्षेत्रक द्वारा सामना की जा रही समस्याओं पर प्रकाश डालिए। सरकार MSMEs के लिए किसी व्यवसाय को आरंभ करने और उसके विकास को कैसे आसान बना सकती है?

दृष्टिकोण

  • सेवा क्षेत्रक में MSME के महत्व की व्याख्या कीजिए।
  • भारत में इस संदर्भ में MSMEs द्वारा सामना की जा रही समस्याओं का उल्लेख कीजिए।
  • MSMEs के लिए व्यवसाय को आरंभ और विकसित करना आसान बनाने हेतु समाधान सुझाइए।

उत्तर

1950 से वर्तमान तक सेवा क्षेत्रक का योगदान 33% से बढ़कर 58% हो गया है। सेवा क्षेत्र में लगभग 10-50 मिलियन MSMEs कार्यरत हैं जो अकाउंटेंट, कैटरर्स, योग प्रशिक्षक, इंटीरियर डेकोरेटर जैसी अनेक सेवाएं प्रदान कर रहे हैं। सेवा क्षेत्रक के MSMEs का निम्नलिखित के संदर्भ में महत्व है:

  • रोजगार सृजन: विनिर्माण और सेवा क्षेत्रक दोनों में अनेक संभावनाएं मौजूद हैं।
  • क्षेत्रीय असंतुलन को कम करना: सेवा क्षेत्रक के MSMEs क्षेत्रीय असंतुलन को कम करने या समाप्त करने का एक बेहतर माध्यम हो सकते हैं।
  • प्रौद्योगिकी के विकास का अवसर प्रदान करना: नवाचार विकास की कुंजी है और सेवा क्षेत्र के MSMEs भारत में नवाचार में अग्रणी भूमिका निभा सकते हैं।
  • समावेशी विकास को प्रोत्साहित करना: MSMEs में आर्थिक क्षमताओं के न्यायसंगत वितरण की संभावना मौजूद है।
  • उद्यमी दक्षता: मालिक के नियंत्रण में उपलब्ध सीमित संसाधनों के कारण निर्णय लेना आसान और कुशल हो जाता है।

हालांकि, सेवा क्षेत्रक के MSMEs के समक्ष अनेक समस्याएं विद्यमान हैं जैसे कि:

  •  दीर्घकालिक कार्य की कमी: उनके पास पर्याप्त ग्राहक नहीं होते हैं और निश्चित लागत को कवर करने और आय अर्जित करने हेतु पर्याप्त कार्य भी उपलब्ध नहीं होता है।
  • पूंजी का अभाव: चूंकि अधिकांश सेवा क्षेत्रक के MSMEs के पास स्थायी संपत्ति (hard assets) नहीं होती है, इसलिए वे विकास हेतु निवेश के लिए बड़ी मात्रा में ऋण प्राप्त करने हेतु अर्हता प्राप्त नहीं कर पाते हैं।
  • विपणन चैनल: अधिकांश मुख्यधारा के मीडिया बड़े कॉर्पोरेट ब्रांडों के लिए सबसे उपयुक्त हैं। यह उन MSMEs के लिए न तो वहनीय और न ही प्रभावी हैं जो अपने व्यय पर तत्काल लाभ प्राप्त करना चाहते हैं।
  • अत्यधिक विनियमन: भारत में अभी भी विभिन्न विनियमों में विकृति विद्यमान है परिणामस्वरूप उद्यमियों के लिए व्यवसाय आरंभ करना अत्यधिक कठिन हो जाता है।
  • आधुनिक तकनीक तक पहुंच: सेवा क्षेत्रक की MSMEs के पास प्रौद्योगिकीय क्षमताओं की कमी है जिसके कारण वे अपनी पूर्ण क्षमता का उपयोग नही कर पाते हैं।
  • प्रबंधकीय विशेषज्ञता की कमी।
  • उपभोक्ता की बदलती मांगों को पूरा करने के बजाय नवाचारों के प्रति अनिच्छा रखना और पारंपरिक उत्पादों का ही उत्पादन करते रहना।

केंद्र और राज्य दोनों सरकारें MSMEs के लिए किसी व्यवसाय को आरंभ करने और विकसित करने को आसान बनाने हेतु विभिन्न कदम उठा सकती हैं जैसे कि:

  • समपार्श्व के बिना ऋण की उपलब्धता: उचित MSMEs के लिए क्रेडिट फंडिंग के कई स्रोतों या प्रायोजकों की व्यवस्था करना।
  • व्यवसाय प्रबंधन में नि:शुल्क या सब्सिडीकृत शिक्षा और प्रशिक्षण: व्यवसायिक ज्ञान और संबंधित कौशल प्राप्त करने हेतु सार्वजनिक वित्त पोषित कॉलेजों और विश्वविद्यालयों को स्थापित किया जाना चाहिए।
  • व्यवसाय का सरल पंजीकरण और दिवालियापन विनियम: नए व्यवसायों का निर्माण करने और परिचालन को बंद करने या उचित दिवालियापन संरक्षण के साथ पुनर्गठन करने को आसान बनाना चाहिए क्योंकि अधिकांश देशों में इस प्रकार के मानक विद्यमान हैं।
  • आधुनिक उपकरणों और प्रौद्योगिकी तक पहुंच: प्रतिस्पर्धी लाभ प्राप्ति हेतु अप्रचलित प्रौद्योगिकी को आधुनिक तथा नवीनतम उपकरणों और प्रौद्योगिकी के द्वारा प्रतिस्थापित किया जाना चाहिए।

एक सक्षम पारिस्थितिक तंत्र के निर्माण के लिए उपयुक्त रणनीतियाँ विकसित की जानी चाहिए जहां सेवा क्षेत्रक के MSMES उभरती चुनौतियों का सामना करने में सक्षम हो सकें।

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