भारत में जल-विद्युत् उत्पादन की उच्च संभावना: पर्यावरण पर इसके प्रभाव

प्रश्न: भारत में जल-विद्युत् उत्पादन की उच्च संभावना वाले विभिन्न क्षेत्रों का वर्णन कीजिए। पर्यावरण पर जल-विद्युत परियोजनाओं के प्रभाव की विवेचना कीजिए।

दृष्टिकोण

  • भारत में जल-विद्युत ऊर्जा संभावना और उनके वितरण के साथ उत्तर आरम्भ कीजिए। 
  • पर्यावरण पर जल-विद्युत ऊर्जा के सकारात्मक प्रभावों पर चर्चा कीजिए। 
  • इन ऊर्जा संयंत्रों के कुछ नकारात्मक प्रभावों पर भी चर्चा कीजिए।

उत्तर

भारत में अत्यधिक जल-विद्युत संभावना विद्यमान है और जल-विद्युत संभावना के सन्दर्भ में वैश्विक परिदृश्य पर 5वें स्थान पर है। केन्द्रीय विद्युत् प्राधिकरण (CEA) द्वारा किए गए आकलन के अनुसार, भारत मात्र 48,974 मेगावाट (MW) (अप्रैल 2017 तक) की स्थापित क्षमता की तुलना में 1,48,700 मेगावाट स्थापित क्षमता के समतुल्य आर्थिक रूप से दोहन योग्य जल-विद्युत क्षमता से संपन्न है।

बेसिन/नदियों की सम्भावित क्षमता (मेगावाट)

  • सिन्धु बेसिन                                                                                     33,832 मेगावाट
  • गंगा बेसिन                                                                                        20,711 मेगावाट
  • मध्य भारत का नदी तंत्र                                                                        4,152 मेगावाट
  • पश्चिम दिशा की ओर प्रवाहित होने वाली दक्षिण भारत की नदिया          9,430 मेगावाट
  • पूर्व दिशा की ओर प्रवाहित होने वाली दक्षिण भारत की नदिया               14,511 मेगावाट
  • ब्रह्मपुत्र बेसिन                                                                                    66,065 मेगावाट

कुल                                                                                                         1,48,701 मेगावाट

उत्तर-पूर्वी भारत में सर्वाधिक जल-विद्युत् संभावना होने के कारण, इसे ‘पॉवर हाउस ऑफ इण्डिया‘ कहा जा सकता है।

पर्यावरण पर प्रभाव :

जल चक्र के निरंतर बने रहने के कारण यह ऊर्जा का न केवल एक नवीकरणीय स्रोत है, बल्कि यह ऊर्जा के एक स्वच्छ स्रोत के रूप में भी कार्य करता है। इसमें किसी भी प्रकार के वायु प्रदूषकों और विषाक्त उपोत्पादों का कोई उत्सर्जन नहीं होता। हालांकि, जल-विद्युत् परियोजनाओं के कारण उत्पन्न चिंतनीय मुद्दे निम्नलिखित हैं:

  • जलाशय पारिस्थितिकी तंत्र, नदी के पारिस्थितिकी तंत्र को प्रतिस्थापित करता है तथा तापमान, ऑक्सीजन संघटन, गाद एवं रासायनिक संरचना आदि में परिवर्तन कर देता है। यह प्रणाली सामान्यतया आक्रामक प्रजातियों को आश्रय प्रदान करती हैं, जिसके परिणामस्वरूप मूल प्रजातियां समाप्त हो जाती हैं।
  • एक जल-विद्युत् ऊर्जा संयंत्र का परिचालन नदी में एवं भूमि पर देशज़ पौधों और जन्तुओं को प्रभावित करने वाले जल के तापमान और नदी के प्रवाह में परिवर्तन कर सकता है। उदाहरणार्थ: बांधों के कारण पर्यावासों के विखंडन से मछलियों के प्रवास में बाधा उत्पन्न हो सकती है।
  • अनुप्रवाह स्तर (downstream) में, नदी में गाद (silt) कम रहती है, जो डेल्टा, बाढ़ के मैदान, मैंग्रोव आदि के पुनरुद्भवन और अनुरक्षण हेतु अत्यंत आवश्यक है। यह इन सभी क्षेत्रों में जैव विविधता को प्रभावित करता है। जलाशय प्रेरित भूकंप से संबंधित अतिरिक्त मुद्दे उठाए गए हैं।
  • जलाशयों और जल-भराव के कारण अत्यधिक मात्रा में वनस्पतियां जलमग्न हो जाती हैं, जो जल के भीतर मीथेन गैस का उत्सर्जन करती हैं। 
  • बांधों आदि के निर्माण में मशीनों के कंपन के साथ-साथ ध्वनि प्रदूषण भी उत्पन्न होता है जो क्षेत्र में वन्यजीवों को प्रभावित करता है।

जल-विद्युत् परियोजनाएं कई समस्याओं का कारण बन सकती हैं, हालांकि उनमें किसी भी प्रकार के ईंधन का दहन नहीं होता। निःसंदेह जल-विद्युत परियोजनाओं ने विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया है, परन्तु इस प्रकार के विकास का स्थानीय आजीविका और पर्यावरण पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ा है। इसलिए आवश्यक है कि स्थानीय मुद्दों को भी ध्यान में रखा जाए।

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