अन्तरिक्षीय मलबे : इसे हटाने हेतु उपाय व सुझाव

प्रश्न: अन्तरिक्षीय मलबे द्वारा उत्पन्न जोखिम का परीक्षण करते हुए, इसके शमन एवं इसे हटाने हेतु कुछ उपायों का सुझाव दीजिए।

दृष्टिकोण

  • कुछ उदाहरणों सहित अन्तरिक्षीय मलबे की अवधारणा का संक्षिप्त विवरण देते हुए उत्तर आरम्भ कीजिए।
  • अन्तरिक्षीय मलबे द्वारा उत्पन्न विभिन्न जोखिमों का परीक्षण कीजिए।
  • अन्तरिक्षीय मलबे के शमन एवं उन्हें हटाने हेतु कुछ उपायों का सुझाव दीजिए।

उत्तर

अन्तरिक्षीय मलबे के अंतर्गत प्राकृतिक (उल्कापिंड) और कृत्रिम (मानव निर्मित) दोनों प्रकार की सामग्रियों को शामिल किया जाता है। उल्कापिंड सूर्य के चारों ओर परिक्रमा करते हैं जबकि अधिकांश कृत्रिम मलबे पृथ्वी के चारों ओर परिक्रमा करते हैं और इन्हें सामान्यतः कक्षीय मलबे (orbital debris) के रूप में संदर्भित किया जाता है। इस प्रकार के कक्षीय मलबे में मुख्य रूप से निम्नलिखित शामिल हैं – क्रियाशील अंतरिक्ष यान, गैर-कार्यात्मक और उपयोग न करने तथा उपेक्षा के कारण खराब स्थिति में पहुँच चुके उपग्रह तथा साथ ही पूर्व में मरम्मत कार्यों के दौरान परित्यक्त अवशेष और पृथ्वी के चारों ओर चक्कर लगाने वाले एवं आसानी से ट्रेस न होने वाले पूर्ववर्ती उपग्रहों के हजारों टुकड़े। वर्तमान में अंतरिक्ष में लगभग 7500 टन कृत्रिम रूप से निर्मित वस्तुएं विद्यमान हैं।

अन्तरिक्षीय मलबे द्वारा उत्पन्न विभिन्न जोखिम:

  • नासा ने अनुमान लगाया है कि अन्तरिक्षीय मलबे में लगभग 20,000 मलबे के टुकड़े आकार में एक सॉफ्टबॉल से बड़े हैं। ये अन्तरिक्षीय मलबे 28,000 किलोमीटर प्रति घंटे की गति से घूर्णन करते हैं, जो उपग्रहों, अंतरिक्ष शटलों, अंतरिक्ष स्टेशनों और मानवों के साथ अंतरिक्ष यान को भी क्षति पहुंचा सकते हैं।
  • संगमरमर के टुकड़ों के आकार वाले या वृहद् आकार वाले मलबे के टुकड़ों की संख्या लगभग 500,000 है जो किसी बंदूक के खतरनाक छरों के समान हो सकते हैं। ट्रेस न किए जा सकने वाले मलबे अंतरिक्ष मिशन के लिए सबसे बड़ा जोखिम सिद्ध हो सकते हैं।
  • अन्तरिक्षीय मलबे द्वारा उत्पन्न जोखिम के कारण, विभिन्न अंतरिक्ष एजेंसियों को अपने अंतरिक्ष कार्यक्रम को उसी जोखिम द्वारा उत्पन्न आवश्यकताओं के अनुसार संचालित करना पड़ता है जिससे आर्थिक और मानव संसाधन संबंधी लागतें बढ़ जाती हैं। साथ ही, कम लागत वाले क्यूबसैट नाम के लघु उपग्रहों से भी खतरा बढ़ गया है, जो अगले 10 वर्षों में अंतरिक्ष मलबे में लगभग 15% की वृद्धि करेंगे।
  • कुछ वृहद् आकार वाले मलबे पृथ्वी के वायुमंडल में पुनः प्रवेश कर सकते हैं और दहन हुए बिना पृथ्वी के किसी भी स्थान पर गिर सकते हैं। उदाहरण के लिए, अप्रैल 2019 में चीनी अंतरिक्ष स्टेशन तियांगोंग -1 का भार 8.5 टन था, जो अपनी कक्षा से बाहर निकल गया और ताहिती के उत्तर-पश्चिम में दक्षिण प्रशांत महासागर में गिर गया।

यद्यपि अन्तरिक्षीय मलबे के पृथ्वी से टकराने की संभावना 1 ट्रिलियन में से 1 की है और पृथ्वी से टकराने से पूर्व पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश करने पर अधिकांश छोटे मलबे सुगमता पूर्वक जल जाएंगे, किन्तु अभी भी यह एक समस्या बनी हुई है जो भविष्य में और बढ़ सकती है।

इसलिए, कक्षा में ही अन्तरिक्षीय मलबे के शमन और उसे हटाने के लिए निम्नलिखित उपाय किए जाने की आवश्यकता है:

  • अन्तरिक्षीय वस्तुएं अभी भी क्रियाशील हैं, इसलिए टकराव को रोकने हेतु आवश्यक मैन्युवरिंग को सुनिश्चित करना
  • मिशन परिचालन की उपयोगिता के बाद अन्तरिक्षीय वस्तुओं को निष्क्रिय करने (passivation) की प्रक्रिया के द्वारा कक्षा में ही होने वाले विस्फोटों की रोकथाम।
  • अनियंत्रित पुन: प्रवेश के परिप्रेक्ष्य में ऑन-ग्राउंड सुरक्षा आवश्यकताओं को सुनिश्चित करना।
  • उच्च वस्तु घनत्व और लम्बे कक्षीय जीवनकाल वाले क्षेत्रों से कुछ वृहद् आकार की वस्तुओं को हटाकर मलबे की वृद्धि को रोका जा सकता है। उदाहरण के लिए, निम्न भू कक्षीय क्षेत्र में उपग्रहों को मिशन पूरा होने के 25 वर्ष के भीतर पृथ्वी के वायुमंडल में पुनः प्रवेश की अनुमति दी जा सकती है।  उन उपग्रहों (जो भूस्थैतिक वलय में अथवा उसके निकट अपना मिशन पूरा कर चुके हैं) को समायोजित करने के लिए ग्रेवयार्ड ऑर्बिट्स (Graveyard orbits) की अवधारणा।
  • सक्रिय मलबे को हटाने (ADR) वाली प्रौद्योगिकियों जैसे कि नेट कैप्चर और हार्पून कैप्चर का प्रयोग किया जाना चाहिए ताकि उनकी आर्थिक व्यवहार्यता का परीक्षण किया जा सके।
  • सदस्य अंतरिक्ष एजेंसियों के मध्य अंतरिक्षीय मलबा अनुसंधान गतिविधियों पर सूचना के आदान-प्रदान को सुदृढ़ कर अंतर्राष्ट्रीय समन्वय को बढ़ावा देना।
  • यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी द्वारा अपनाए गए अंतर्राष्ट्रीय मलबा शमन मानकों (International Debris Mitigation Standards) को अन्य देशों द्वारा अंतरिक्ष प्रणालियों के डिजाइन और संचालन हेतु बाध्यकारी राष्ट्रीय आवश्यकताओं के रूप में अपनाया जाना चाहिए।

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