सम्पूर्ण विश्व और भारत में गरीबों की संख्या में हुई कमी : असमानता पर हाल की रिपोर्ट/सर्वेक्षणों

प्रश्न: हालांकि हालिया दशकों में लाखों लोगों को गरीबी से बाहर निकाला गया है, लेकिन असमानता में वृद्धि के समाज के लिए खतरनाक परिणाम हो सकते हैं। इस बढ़ती हुई प्रवृत्ति पर प्रकाश डालते हुए हालिया अध्ययनों के आलोक में व्याख्या कीजिए।

दृष्टिकोण

  • आंकड़ों की सहायता से सम्पूर्ण विश्व और भारत में गरीबों की संख्या में हुई कमी का संक्षेप में उल्लेख कीजिये।
  • असमानता पर हाल की रिपोर्ट/सर्वेक्षणों पर प्रकाश डालते हुए, आय असमानता के कुछ कारणों का उल्लेख कीजिये।
  • समाज में बढ़ती असमानता की परिस्थितियों को विस्तार से समझाइए।
  • असमानता को कम करने हेतु एक सुझावपूर्ण दृष्टिकोण के साथ निष्कर्ष दीजिये।

उत्तर

विश्व बैंक की एक रिपोर्ट के अनुसार,1990 से 2013 के मध्य सम्पूर्ण विश्व में चरम गरीबी वाले लोगों की संख्या में लगभग 1.1 बिलियन की गिरावट आई है। भारत में, 1994 और 2012 के मध्य 133 मिलियन लोग गरीबी से बाहर आये। गरीबी के स्तर में कमी एक अनुकूल संकेत है, किन्तु चिंता बढ़ती हुई आय असमानता है।

विश्व असमानता रिपोर्ट-2018 के अनुसार, भारत के शीर्ष 10% लोगों की राष्ट्रीय आय में हिस्सेदारी लगभग 56% थी। विश्व स्तर पर, 1980 से विश्व की 50% जनसंख्या के पास जितनी सम्पति रही है उससे दोगुनी संपत्ति सर्वाधिक धनी 1% लोगों के पास रही है। इसी प्रकार, ऑक्सफैम सर्वे के अनुसार 2017 में देश के कुल धन का 73% भाग भारत के सर्वाधिक धनी 1% लोगों के पास संकेंद्रित था।

बढ़ती असमानता के कारण

  • अत्यधिक असमान संपत्ति वितरण और उत्तराधिकार के दोषपूर्ण कानून।
  • शिक्षा की गुणवत्ता और रोजगार के अवसरों में असमानता।
  • कर चोरी, भ्रष्टाचार और प्रतिगामी कर (जैसे भारत में उच्च अप्रत्यक्ष कर)।
  • कुछ बड़ी फर्मों द्वारा बाजार पर एकाधिकार।
  • श्रम में लैंगिक असमानता।

असमानता के परिणाम

  • नागरिकों द्वारा संस्थाओं में विश्वास ख़त्म हो सकता है, जो भविष्य में सामाजिक सामंजस्य और विश्वास में कमी ला सकता है।
  • उच्च आय असमानता, गुणवत्तापूर्ण कार्य के लिए प्रोत्साहन को कम करती है। इसके फलस्वरूप आर्थिक विकास प्रभावित होता है।
  • असमान समाजों में अपराध की दर उच्च है। इस उच्च दर के कारणों में समाज के वंचित सदस्यों के मध्य व्याप्त असंतोष और शत्रुता, सीमित नौकरियों या संसाधनों के लिए उच्च प्रतिस्पर्धा, निम्न आय वाले क्षेत्रों में कानून के क्रियान्वयन पर किये जाने वाले व्यय में कमी आदि शामिल हो सकते हैं।
  • कम वेतन वाले परिचारक सदृश कार्यों में नियोजन के परिणामस्वरूप निम्न आय वाले परिवारों का सृजन होता है जो उच्च लागत वाली स्वास्थ्य सुविधाओं का व्यय उठाने में असमर्थ होते हैं।
  • आर्थिक रूप से असमान समाज में, शिक्षा का औसत स्तर घटता है, जबकि शैक्षिक अभिजात वर्गों की संख्या में वृद्धि होती है।
  • सामाजिक विषमता के उच्च स्तर और सामाजिक गतिशीलता के निम्न स्तर के मध्य एक मजबूत संबंध है, जिसके परिणामस्वरूप सामाजिक स्तरीकरण होता है।
  • जब धन वितरण कुछ ही हाथों में संकेंद्रित हो जाता है, तो राजनीतिक शक्ति उस छोटे धनी समूह के पक्ष में झुकाव प्रदर्शित करती है।
  • असमानता गरीबी को जन्म देती है, जो बदले में सफाई एवं स्वच्छता का अभाव, गरीब परिवारों के घरों में आंतरिक वायु प्रदूषण जैसी समस्याओं में वृद्धि करती है।
  • गरीब झुग्गी वासी और उनके निवासस्थल शेष समाज से पृथक होते है। इससे शेष समाज में उन्हें एकीकृत करने और मुख्यधारा में लाने में कठिनाइयां उत्पन्न होती हैं।

आगे की राह

  • इन परिस्थितियों से पता चलता है कि बढ़ती असमानता को समाप्त करने हेतु युद्ध स्तरीय प्रयास किए जाने चाहिए।
  • विभिन्न देशों के सफल मॉडल को अपनाया जा सकता है। उदाहरण के लिए, दक्षिण कोरिया में कम्पनियाँ कौशल प्रशिक्षण स्वयं प्रदान करती हैं और उसका उन्नयन भी करती हैं।
  • गुणवत्तापूर्ण रोजगार सृजन के साथ सभी को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान की जाए।
  • श्रमिकों का अच्छा स्वास्थ्य सुनिश्चित करने के लिए यह आवश्यक है कि उन्हें गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सुविधा प्रदान की जाए।
  • पर्याप्त सामाजिक सुरक्षा से जुड़ी मूलभूत सुविधाओं का प्रभावी वितरण सुनिश्चित किया जाये।

यह आवश्यक है कि समग्र समावेशी समृद्धि दृष्टिकोण का पालन किया जाए, जो न केवल ट्रिकल-डाउन इफ़ेक्ट पर निर्भर हो, बल्कि इसमें जॉन रॉल्स का पुनर्वितरण न्याय सिद्धांत, गांधीवादी ट्रस्टीशिप सिद्धांत, भगवती के विकास नेतृत्व संबंधी मॉडल के साथ अमर्त्य सेन के कैपेबिलिटी एप्रोच का एक हाइब्रिड रूप शामिल हो।

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