विशेष रूप से कमज़ोर जनजातीय समूह (PVTGS) : उत्थान हेतु सरकार द्वारा उठाए गए कदम

प्रश्न: वे कौन से कारक हैं जिनके परिणामस्वरूप विशेष रूप से कमज़ोर जनजातीय समूह (PVTGS) भारत के सर्वाधिक पिछड़ें समूहों में से एक बने हुए हैं? उनके उत्थान हेतु सरकार द्वारा उठाए गए कदमों पर प्रकाश डालिए।

दृष्टिकोण

  • भारत में PVTGS का संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत कीजिए।
  • ये भारत के सर्वाधिक पिछड़ें समूहों में से एक क्यों बने हुए हैं। चर्चा कीजिए।
  • उनके उत्थान हेतु सरकार द्वारा उठाए गए कदमों पर प्रकाश डालिए।

उत्तर

विशेष रूप से कमज़ोर जनजातीय समूह (PVTGs) भारत के सबसे पिछड़े जनजातीय समूहों में से हैं। सरकार द्वारा 18 राज्यों तथा अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में अधिवासित 75 जनजातीय समूहों को पूर्व-कृषि प्रौद्योगिकी स्तर, स्थिर या घटती जनसंख्या, अत्यंत निम्न साक्षरता स्तर और अर्थव्यवस्था के निर्वाह स्तर के आधार पर PVTGs के रूप में अधिसूचित किया गया है।

PVTGs के पिछड़ेपन हेतु उत्तरदायी कारक:

  • औद्योगिक परियोजनाओं, संरक्षण संबंधी प्रयासों, पर्यटन आदि के लिए उनके क्षेत्रों में शोषणकारी घुसपैठ के कारण पारंपरिक आजीविका और संसाधनों का ह्रास हुआ है। यह इन समूहों को प्रतिकूल रूप से प्रभावित करता है क्योंकि वे अपनी आजीविका और निर्वाह के लिए वनों पर निर्भर रहते हैं।
  • विकास परियोजनाओं या उनके निवास स्थानों को आरक्षित वन, संरक्षित वन आदि के रूप में की घोषित करने के कारण विस्थापन और पुनर्वास; जो उचित पुनर्वासन के अभाव में उन्हें संवेदनशील बना देता है।
  • निम्न HDI सूचकांक: ये गंभीर कुपोषण, सुरक्षित पेयजल का अभाव, स्वास्थ्य सेवाओं की अनुपलब्धता, उच्च बाल मृत्यु दर, निम्न साक्षरता स्तर, निम्न पहुंच आदि समस्याओं का सामना करते हैं।
  • शोषण: अन्य सामाजिक समूहों द्वारा PVTGs का निरंतर शोषण किया जा रहा है। उदाहरण के लिए, राजस्थान में सहरिया समुदाय के सदस्य अमीर जमींदारों के लिए बंधुआ मजदूर के रूप में काम करते हैं।
  • वन अधिकार अधिनियम (FRA), 2006 का अप्रभावी कार्यान्वयन: निवास स्थान संबंधी अधिकारों की परिभाषा और व्याख्या पर स्पष्टता का अभाव, वन्यजीव पर्यावास के साथ PVTGs की पारंपरिक आवास सीमाओं के अतिव्यापन आदि के कारण उत्पन्न मुद्दे।
  • एकीकरण और समावेशन आधारित नीतियों के कारण सांस्कृतिक पहचान को खतरा। 
  • वर्गीकरण संबंधी मुद्दे: PVTGs का वर्गीकरण अस्पष्ट और अतिव्यापी है। PVTGs परिवारों, उनके निवास स्थान और सामाजिक-आर्थिक स्थिति की सटीक पहचान करने हेतु आधे से अधिक समूहों में बेस लाइन सर्वे नहीं किए गए हैं।

इनके विकास हेतु सरकार द्वारा उठाए गए कदम:

  •  PVTGs के विकास संबंधी योजना: इस योजना में 75 चिन्हित PVTGs शामिल हैं। यह अत्यंत लचीली योजना है तथा यह राज्यों को उन विषयों पर ध्यान केंद्रित करने में सक्षम बनाती है जिन्हे वे PVTGs के विकास हेतु प्रासंगिक मानते हैं; जैसे कि आवास, भूमि वितरण, भूमि और कृषि विकास आदि। जनजातीय उप योजना क्षेत्रों के लिए केंद्रीय सहायता: यह PVTGS सहित जनजातीय विकास के लिए राज्य के प्रयासों को समर्थन प्रदान करने के उद्देश्य से प्रारंभ पूर्णतः केंद्र द्वारा वित्त पोषित योजना है।
  • जनजातीय क्षेत्रों में व्यावसायिक प्रशिक्षण की योजना: नौकरियों और स्वरोजगार के लिए अनुसूचित जनजाति के युवाओं के कौशल का विकास करना।
  • जनजातीय जनसंख्या के समग्र विकास के लिए वनबंधु कल्याण योजना।
  • वन अधिकार अधिनियम, 2006: यह जनजातीय के व्यक्तिगत और सामुदायिक वन अधिकारों को मान्यता प्रदान करता है। इस अधिनियम के अंतर्गत PVTGs के आवास संबंधी अधिकार का प्रावधान किया गया है जो अधिकार प्रदान करने हेतु जैव सांस्कृतिक इकाइयों और क्षेत्रों को चिन्हित करता है। हाल ही में, मध्य प्रदेश की बैगा जनजातियों को पहली बार इस अधिनियम के तहत निवास का अधिकार प्रदान किया गया।
  • अनुसूचित जनजाति के विद्यार्थियों हेतु प्री और पोस्ट मैट्रिक छात्रवृत्ति, जनजातीय उप-योजना क्षेत्रों में आवासीय स्कूलों की स्थापना आदि।

PVTGS द्वारा सामना किए जाने वाले आर्थिक, शैक्षिक और सामाजिक वंचन की जाँच करने की आवश्यकता है और इन्हें अपनी प्रतिभा के अनुरूप विकसित करने में सक्षम बनाने हेतु अवसर प्रदान किए जाने चाहिए।

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