भारत के वित्त आयोग के संबंध में परिचय : इसकी संवैधानिक भूमिका एवं उत्तरदायित्व
प्रश्न: वित्त आयोग (FC) की संवैधानिक भूमिका पर प्रकाश डालते हुए, उन मुद्दों की चर्चा कीजिए, जिन पर 15वें वित्त आयोग के विचारार्थ विषयों (TOR) के संदर्भ में बहस की जा रही हैं।
दृष्टिकोण
- भारत के वित्त आयोग के संबंध में परिचय दीजिए तथा इसकी संवैधानिक भूमिका एवं उत्तरदायित्वों पर प्रकाश डालिए।
- 15वें वित्त आयोग के विचारार्थ विषयों (TOR) पर राज्यों द्वारा व्यक्त की गई चिंताओं पर चर्चा कीजिए।
- आगे की राह बताते हुए संक्षिप्त निष्कर्ष दीजिए।
उत्तर
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 280 के अंतर्गत एक अर्द्ध-न्यायिक निकाय के रूप में वित्त आयोग के गठन का प्रावधान किया गया है। इसका गठन राष्ट्रपति द्वारा प्रत्येक पांचवे वर्ष किया जाता है। इसकी संवैधानिक भूमिका और उत्तरदायित्वों में, निम्नलिखित विषयों पर भारत के राष्ट्रपति को अनुशंसाएं प्रस्तुत करना शामिल है:
- संघ और राज्यों के मध्य विभाजित होने वाले करों के शुद्ध आगमों का वितरण तथा ऐसे आगमों से संबंधित शेयरों का राज्यों के मध्य आवंटन। संघ द्वारा राज्यों को भारत की संचित निधि से प्रदत्त अनुदान सहायता को शासित करने वाले सिद्धांत।
- राज्य वित्त आयोग द्वारा की गई अनुशंसाओं के आधार पर राज्य में स्थानीय निकायों के संसाधनों के अनुपूरण हेतु राज्य की संचित निधि के संवर्धन के लिए आवश्यक उपाय।
- वित्त व्यवस्था को सुदृढ़ करने हेतु राष्ट्रपति द्वारा आयोग को निर्दिष्ट कोई अन्य विषय।
इन अनुशंसाओं की प्रकृति केवल सलाहकारी होती है तथा इन अनुशंसाओं को लागू करना केंद्र सरकार पर निर्भर करता है।
15वां वित्त आयोग
एन.के.सिंह की अध्यक्षता में गठित 15वें वित्त आयोग के विचारार्थ विषयों (TOR) की निम्नलिखित आधारों पर आलोचना की जा रही है:
- 2011 की जनगणना का उपयोग: इससे पूर्व वित्त आयोग द्वारा राजकोषीय हस्तांतरण हेतु वर्ष 1971 की जनगणना का उपयोग किया जाता था, जिसे पहली बार 7वें वित्त आयोग द्वारा 1976 में जनसंख्या नियंत्रण के एक साधन के रूप में अपनाया गया था। अतः 2011 की जनगणना का उपयोग करने से जनसंख्या नियंत्रण और परिवार नियोजन कार्यक्रमों पर बेहतर प्रदर्शन कर रहे कुछ दक्षिणी राज्यों तथा अन्य राज्यों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।
- 14वें वित्त आयोग की अनुशंसाओं की समीक्षा: 15वें वित्त आयोग द्वारा अपने पूर्ववर्ती आयोग के निर्णयों की समीक्षा की जाएगी, जिसमें राज्यों के लिए करों के हस्तांतरण को 32% से बढ़ाकर 42% किया गया था। हालांकि हस्तांतरण में वृद्धि के साथ ही केंद्र प्रायोजित योजनाओं में राज्यों की हिस्सेदारी में वृद्धि तथा योजनागत अनुदानों की समाप्ति हुई है। इस प्रकार हस्तांतरण में कटौती राज्यों के वित्त को प्रभावित कर सकती है।
- राजकोषीय स्वायत्तता: 14वें वित्त आयोग ने अपने प्रयासों को यह सुनिश्चित करने हेतु निर्देशित किया था कि आयोग द्वारा दिए गए अनुदान में विवेकाधीन तत्व को पूर्णतया समाप्त कर दिया जाए। हालांकि 15वें आयोग के विचारार्थ विषयों (TOR) में विवेकाधीन अनुदान 9 प्रोत्साहनों पर आधारित हैं तथा राज्यों ने यह कहा है कि ऐसे विकल्प राज्यों के नियंत्रण में होने चाहिए।
- राजस्व घाटा अनुदान: राजस्व घाटा अनुदान को पूरी तरह से समाप्त किए जाने संबंधी अपने सुझाव के परिप्रेक्ष्य में 15वाँ वित्त आयोग भारतीय संविधान के अनुच्छेद 275(1) तथा 280(3)(b) के तहत प्रावधानों का उल्लंघन करने की ओर अग्रसर है। ये अनुदान संविधान के ऊर्ध्वाधर असंतुलनों को सही करने के साधन हैं (यद्यपि राज्य सार्वजनिक व्यय के 60% हेतु उत्तरदायी हैं परंतु उनके द्वारा केवल 37% राजस्वों का ही एकत्रण किया जाता है)।
- राज्यों द्वारा लिए जाने वाले ऋणों को कम करना: ToR में राज्यों के पूँजीगत व्यय को कठोरतापूर्वक कम करने तथा उनके ऋणों को उनके सकल राज्य घरेलू उत्पाद (GSDP) के वर्तमान 3% से कम करके 1.7% तक लाने की अपेक्षा की गयी है।
इस प्रकार राज्यों को जनसंख्या संबंधी मुद्दे पर इसे उत्तर-दक्षिण विवाद का विषय बनाने के स्थान पर एक सर्वसम्मति के निर्माण हेतु एकजुट होना चाहिए। सहकारी संघवाद की भावना के लिए केंद्र को भी राज्यों द्वारा उठाए गए मुद्दों पर विचार करना चाहिए तथा उनके समाधान हेतु उपाय किए जाने चाहिए। केंद्र को कर हस्तांतरण में कमी के ऐसे किसी भी प्रयास से बचना चाहिए जिससे संविधान की संघीय भावना के उल्लंघन की संभावना हो।
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