आपदा प्रबंधन चक्र में लैंगिक संवेदनशीलता : आपदा प्रबंधन के दौरान आने वाली लैंगिक विशिष्ट चुनौतियां

प्रश्न: आपदा प्रबंधन के दौरान सामने आने वाली लैंगिक विशिष्ट चुनौतियों पर प्रकाश डालिए। इस संबंध में, चर्चा कीजिए कि किस प्रकार आपदा प्रबंधन चक्र को लैंगिक रूप से और अधिक संवेदनशील बनाया जा सकता है।

दृष्टिकोण

  • आपदा प्रबंधन चक्र में लैंगिक संवेदनशीलता की आवश्यकता को स्पष्ट कीजिए।
  • आपदा प्रबंधन के दौरान आने वाली लैंगिक विशिष्ट चुनौतियों पर चर्चा कीजिए।
  • चर्चा कीजिये कि कैसे आपदा प्रबंधन चक्र को अधिक लैंगिक संवेदनशील बनाया जा सकता है।
  • उचित निष्कर्ष दीजिए।

उत्तर

आपदाएँ और उनके परिणाम जाति, वर्ग, नृजातीयता, यौनिकता, विकलांगता और आयु, इन सभी में लैंगिक रूप से पूर्वविद्यमान सामाजिक असमानताओं को दर्शाते हैं।

आपदा प्रबंधन के दौरान सामने आने वाली लैंगिक विशिष्ट चुनौतियों में शामिल हैं:

  • महिलाओं की सुभेद्यताएं जैविक रूप से निर्मित नहीं हैं, अपितु सामाजिक है और सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक प्रक्रियाओं में अंतर्निहित है।
  • महिला गतिशीलता पर सांस्कृतिक बाधाएं आत्म-सुरक्षा में बाधा उत्पन्न करती हैं। उदाहरण के लिए, विशेष रूप से गर्भवती, स्तनपान कराने वाली और मासिक धर्म वाली महिलाएं साझा सांप्रदायिक सुविधाओं में निजी स्थानों की कमी के कारण आश्रय लेने के लिए अनिच्छुक हो सकती हैं।
  • पारंपरिक रूढ़ियों के कारण कौशल की कमी: उदाहरण के लिए, तैराकी और पेड़ पर चढ़ने जैसे कई कौशल पारंपरिक रूप से पुरुषों को सिखाए जाते हैं जबकि महिलाओं को जैविक मतभेदों के बहाने उन कौशलों को जानबूझकर नहीं सिखाया जाता है। यह परिवहन, कौशल, सूचना, भूमि पर नियंत्रण जैसे संसाधनों तक कम पहुंच के साथ संयुग्मित हो जाता है, जो उन्हें आपदाओं के लिए और अधिक संवेदनशील बना देता है।
  • पोषण/स्वास्थ्य कारण: आपदाओं के दौरान गर्भवती व स्तनपान कराने वाली महिलाओं और किशोर युवतियों को पोषण के लिए शरीर की बढ़ी हुई आवश्यकताओं के कारण विशेष रूप से कुपोषण का जोखिम होता है। इसे लिंग-भेद के कारण भी बढ़ावा मिलता है। लिंग-भेद के कारण संकटग्रस्त घरों में महिलाओं और लड़कियों को भोजन तक कम पहुंच प्राप्त होती है। साथ ही महिलाएं प्रजनन और यौन स्वास्थ्य संबंधी मुद्दों की चपेट में हैं और आपदाओं के कारण यौन और घरेलू हिंसा की दर में वृद्धि हुई है।

आजीविका और परिवार के सदस्यों की क्षति उनको और अधिक हाशिए पर ले जाती है। राहत सामग्री का वितरण भी महिलाओं की विशिष्ट आवश्यकताओं की अनदेखी करता है।

आपदाओं का सामना करने में पुरुषों को विभिन्न प्रकार की सुभेद्यता का सामना करना पड़ता है। उदाहरण के लिए, किसी आपदा के दौरान बचावकर्ता के रूप में उनकी सामाजिक रूप से स्वीकार्य पुरुषोचित भूमिका, उनके द्वारा सम्पूर्ण वित्तीय बोझ को सहन किए जाने की अपेक्षा तथा घरेलू कार्यों/बच्चों के पालन-पोषण की जानकारी की कमी उन्हें आपदा के दौरान और बाद में सुभेद्य बनाती है।

कुछ कदम जो आपदा प्रबंधन चक्र को अधिक लिंग संवेदनशील बना सकते हैं:

  • लिंग विभेदित आंकड़ों का उपयोग करके नीति निर्माण, जेंडर बजटिंग, क्षमता आकलन और आपदा पश्चात रिकवरी के प्रयासों के माध्यम से आपदा की तैयारी।
  • लैंगिक भूमिका को समझना: घर की खाद्य सुरक्षा या आय में योगदान करने की महिलाओं की भूमिका को समझने की आवश्यकता है तथा आजीविका निर्वाह और व्यावसायिक प्रशिक्षण जैसी पुनर्वास गतिविधियों को इन्हें ध्यान रखते हुए डिजाइन किया जाना चाहिए।
  • समुदाय आधारित आपदा शमन में महिलाओं को सम्मिलित करना: महिलाओं को आपदा योजना और प्रबंधन के सभी चरणों में संलग्न होना चाहिए।
  • परामर्श सेवाएं प्रदान करना: आपदा प्रबंधन के बारे में जागरुकता उत्पन्न करने और आपदा पश्चात तनाव एवं आघात से निपटने के लिए ये आवश्यक हैं।
  • राहत वस्तुओं की उपयुक्तता: राहत पैकेटों को डिजाइन करते समय विशिष्ट आवश्यकताओं को ध्यान में रखा जाना चाहिए, जैसे कि दवाइयां, सैनिटरी आइटम, गर्भनिरोधक आदि।
  • स्वास्थ्य संबंधी मुद्दों को संबोधित करना: आपदा राहत प्रयासों में महिला स्वास्थ्य संबंधी विशिष्ट आवश्यकताओं, जैसे महिला शौचालय, गर्भावस्था आदि पर ध्यान दिए जाने की आवश्यकता है।

इसके अलावा, राष्ट्रीय और राज्य स्तरों पर आपदा प्रबंधन योजनाओं का लिंग आधारित लेखांकन आपदा शमन और अनुक्रिया में एक लिंग-आधारित फोकस (gender focus) का समावेश कर सकता है। लैंगिक संवेदनशीलता की आवश्यकता को देखते हुए राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन संस्थान (NIDM) ने लैंगिक और आपदा प्रबंधन पर एक प्रशिक्षण मॉड्यूल भी विकसित किया है।

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