भारत में तृतीयक शिक्षा के खराब हालात से संबंधित परिचय

प्रश्न: तृतीयक शिक्षा के निम्न-श्रेणी के मानक भारत की प्रतिस्पर्धात्मकता में अवरोधक हैं। स्पष्ट कीजिए। साथ ही भारत में उच्च शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार लाने के लिए पिछले कुछ वर्षों के दौरान सरकार द्वारा की गई पहलों को भी सूचीबद्ध कीजिए। (150 शब्द)

दृष्टिकोण

  • भारत में तृतीयक शिक्षा के खराब हालात से संबंधित तथ्यों को बताते हुए परिचय दीजिए। 
  • यह दर्शाइए कि वैश्विक प्रतिस्पर्धात्मकता मानकों में भारत की कमजोरी निम्न स्तरीय तृतीयक शिक्षा के कारण है।
  • भारत में उच्च शिक्षा की स्थिति सुधारने के लिए सरकार द्वारा उठाए गए क़दमों की चर्चा कीजिए।

उत्तर

भारत ने उच्च शिक्षा में सकल नामांकन अनुपात (GER) के मामले में सार्थक प्रगति की है, उच्च शिक्षा में GER 2011-12 के 20.8% के मुकाबले 2015-16 में 24.5% हो गया है। हालांकि तृतीयक शिक्षा की गुणवत्ता और मानक बेहद खराब रहे हैं। उदाहरण के लिए, मैकिन्से की एक रिपोर्ट में बताया गया कि भारत के केवल एक चौथाई इंजीनियर ही रोजगार योग्य हैं।

इससे भारत की प्रतिस्पर्धात्मकता विभिन्न प्रकार से प्रभावित होती है, जैसे:

  • भारतीय उद्योग: तृतीयक शिक्षा की निम्न गुणवत्ता, उत्पादन प्रक्रिया में क्रान्ति लाने वाली विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी (S&T) की अत्याधुनिक प्रगतियों तक पहुँच बनाने की उद्योगों की क्षमताओं को सीमित करती है।
  • प्रौद्योगिकी के स्वदेशीकरण की कमी: निम्न दर्जे की उच्च शिक्षा के कारण भारत विभिन्न महत्वपूर्ण क्षेत्रों जैसे रक्षा, इलेक्ट्रॉनिक्स और तीव्र परिवहन आदि के लिए अन्य देशों पर निर्भर है।
  • प्रतिभा पलायन: इसके परिणामस्वरूप राजस्व हानि होती है, भावी उद्यमियों की संभावनाओं की क्षति होती है और कुशल श्रमिकों के अभाव का सामना करना पड़ता है।
  • भारतीय विश्वविद्यालयों की रैंकिंग: उच्च शिक्षण संस्थानों की वैश्विक रैंकिंग में किसी भी भारतीय संस्थान को शीर्ष 200 विश्वविद्यालयों में स्थान प्राप्त नहीं हुआ है। निम्न मानकों के चलते भारत तृतीयक शिक्षा में अच्छे शिक्षकों को आकर्षित नहीं कर पाता।
  • मानविकी (ह्यूमैनिटीज़) के क्षेत्र में शोध का अभाव

तृतीयक शिक्षा के संदर्भ में वित्तीय आवंटन की कमी, शीर्ष संस्थानों को स्वायत्तता का अभाव और विश्वविद्यालयों के विनियमन और अभिशासन संबंधी मुद्दों के चलते ये समस्याएं बनी हुयी हैं। इन समस्याओं का सामना करने के लिए सरकार द्वारा विभिन्न कदम उठाए गए हैं, जैसे:

  • 10 सरकारी और 10 निजी विश्वस्तरीय संस्थान विकसित करने के लिए अगले 5 वर्षों के दौरान 10,000 करोड़ रूपये का आवंटन।
  • उच्च शिक्षा के विकास को गति देने के लिए विनियामक तंत्र को सुधारना और महाविद्यालयों को अधिक स्वायत्तता प्रदान करना।
  • राष्ट्रीय संस्थागत रैंकिंग फ्रेमवर्क (NIRF): यह उच्च शिक्षण संस्थानों की रैंकिंग पद्धति रुपरेखा तैयार करता है और उनके मध्य प्रतिस्पर्धा उत्पन्न करता है।
  • राष्ट्रीय उच्चतर शिक्षा अभियान (RUSA): यह एक केंद्र प्रायोजित योजना है, जिसका उद्देश्य अवसंरचना सुधार तथा शोध एवं नवाचार को प्रोत्साहित करने के लिए राज्य उच्च शिक्षा संस्थानों को वित्तीय मदद प्रदान करना है।
  • “स्वयं” पोर्टल उच्च शिक्षा के लिए नि:शुल्क ऑनलाइन कोर्स उपलब्ध कराता है, “स्वयं प्रभा”, DTH चैनलों का एक समूह है जो उच्च गुणवत्ता वाले शिक्षण कार्यक्रमों का प्रसारण करता है।
  • इम्पैक्टिंग रिसर्च इन्नोवेशन एंड टेक्नोलॉजी (IMPRINT): इंजीनियरिंग और टेक्नोलॉजी से जुड़ी बड़ी चुनौतियों के समाधान हेतु एक रोडमैप विकसित करने के लिए देश भर के IIT व IISc की संयुक्त पहल।
  • ग्लोबल इनिशिएटिव ऑफ़ एकेडमिक नेटवर्क्स (GIAN) का लक्ष्य भारतीय उच्च शिक्षण संस्थानों के साथ अंतर्राष्ट्रीय स्तर के वैज्ञानिकों और उद्यमियों के अनुबंध को प्रोत्साहित करना है।
  • भारत में उच्च शिक्षा की गुणवत्ता को सुधारने के लिए नेशनल डिजिटल लाइब्रेरी, कैंपस कनेक्ट कार्यक्रम, उच्चत्तर आविष्कार अभियान, उन्नत भारत अभियान आदि का कार्यान्वयन किया जा रहा है।
  • अधिक प्रशासनिक और शैक्षिक स्वायत्तता प्रदान करने के लिए UGC में सुधार तथा परिणाम आधारित प्रमाणन व क्रेडिट आधारित कार्यक्रम के लिए संशोधित फ्रेमवर्क।
  • शोध व उससे संबंधित अवसंरचना को आगे बढ़ाने के लिए 20,000 करोड़ रुपए के कॉर्पस फण्ड वाली उच्च शिक्षा फंडिंग एजेंसी।

भारत को तृतीयक शिक्षा की गुणवत्ता को बढ़ाने के लिए एक दृढ़ संकल्प वाले अभियान की आवश्यकता है, इसके लिए प्राथमिक और द्वितीयक शिक्षा में सुधार की भी आवश्यकता होगी।

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