भारतीय सन्दर्भ में ‘तत्व एवं सार’ के सिद्धांत (doctrine of ‘Pith and Substance’) की बुनियादी अवधारणा
प्रश्न: भारतीय सन्दर्भ में ‘तत्व एवं सार’ के सिद्धांत (doctrine of ‘Pith and Substance’) की आवश्यकता पर चर्चा कीजिए। साथ ही उन परिस्थितियों को सूचीबद्ध कीजिए जिनमें संघ की विधायी शक्तियों का राज्यसूची के विषयों पर विस्तार हो सकता है।
दृष्टिकोण
- सर्वप्रथम ‘तत्व एवं सार’ के सिद्धांत की बुनियादी अवधारणा का उल्लेख कीजिए।
- इसके पश्चात् भारतीय संदर्भ में इस सिद्धांत की आवश्यकता पर चर्चा कीजिए।
- अंत में, उन परिस्थितियों को सूचीबद्ध कीजिए जिनमें संघ की विधायी शक्तियों का राज्यसूची के विषयों पर विस्तार हो सकता है।
उत्तर
तत्व का अर्थ है ‘किसी विषय का मूल विचार’ और सार का अर्थ है ‘किसी विषय का सबसे महत्वपूर्ण या आवश्यक हिस्सा’। “तत्व एवं सार” का सिद्धांत एक कानूनी अवधारणा है जो किसी विषय के संदर्भ में किसी प्राधिकारी या प्रमुख के विधायी क्षेत्राधिकार को निर्धारित करने में सहायक होता है। भारतीय संदर्भ में, यह न्यायालयों को मामले के ‘सार’ की जाँच करने में सहायता करता है जिससे यह सुनिश्चित किया जा सके कि कोई विशिष्ट कानून सातवीं अनुसूची की तीन सूचियों में से किसके तहत वर्णित है।
यह सिद्धांत अनुच्छेद 246 के अंतर्गत प्रदत्त विधायी शक्तियों की कठोर वितरण व्यवस्था में कुछ लचीलापन प्रदान करता है। यह निर्धारित करने के लिए कि कोई कानून किस सूची के अंतर्गत शामिल है, कानून के ‘तत्व एवं सार’ को ज्ञात करने की आवश्यकता होती है न की उसके विधायी स्तर को।
सिद्धांत की आवश्यकता
यदि अतिक्रमण मूलतः किसी ऐसी प्रविष्टि के अंतर्गत आता है जिस पर विधायिका का अधिकार क्षेत्र है, किसी अन्य प्रविष्टि (जिस पर विधायिका का अधिकार क्षेत्र नहीं है) का प्रासंगिक अतिक्रमण कानून को अमान्य नहीं करेगा। इस सिद्धांत की अनुपस्थिति में, विधायिका की शक्तियों को व्यापक रूप से सीमित किया जा सकता है।
वे परिस्थितियां जब संघ, राज्य सूची के विषयों पर कानून बना सकता है:
अनुच्छेद 249: संसद राज्य सूची में सम्मिलित किसी विषय पर कानून बना सकती है, यदि राज्य सभा उपस्थित और मत देने वाले सदस्यों में से कम से कम दो-तिहाई सदस्यों द्वारा समर्थित संकल्प के माध्यम से घोषित करती है कि यह राष्ट्रीय हित में आवश्यक है की संसद इस तरह के मामलों पर कानून का निर्माण करे। इस प्रकार का प्रत्येक कानून बिना पुनः अनुमोदन के एक वर्ष के लिए प्रवृत रहेगा।
अनुच्छेद 250: ‘आपातकाल’ की उद्घोषणा के दौरान, राज्यसूची के विषय के संबंध में संसद के पास विधि निर्माण की शक्ति होगी।
अनुच्छेद 252: यदि दो या अधिक राज्यों की विधानमंडलों द्वारा यह संकल्प पारित किया जाता है कि संसद राज्य सूची के किसी विषय पर विधि निर्माण करे तो संसद के पास उन राज्यों के लिए संबंधित विषय पर विधि निर्माण की शक्ति होगी।
अनुच्छेद 253: अंतर्राष्ट्रीय समझौतों, सम्मेलनों और संधियों में लिए गए किसी भी निर्णय के क्रियान्वयन हेतु संसद के पास भारत के सम्पूर्ण राज्यक्षेत्र या उसके किसी भाग के लिए विधि निर्माण की शक्ति होगी।
अनुच्छेद 356: किसी राज्य में संवैधानिक तंत्र की विफलता के संबंध में राष्ट्रपति की उदघोषणा के तहत, राष्ट्रपति यह घोषित कर सकता है कि राज्यों की विधायिका की शक्तियों को संसद के द्वारा या उसके प्राधिकरण के अधीन प्रयोग किया जाएगा।
इस प्रकार, यह भारतीय राजव्यवस्था में उभरने वाली परिस्थिति से निपटने हेतु संघीय और एकात्मक तंत्र का एक अद्वितीय मिश्रण किया गया है।
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