सामाजिक अंकेक्षण : महत्व और सीमाओं की चर्चा
प्रश्न: सामाजिक अंकेक्षण क्या है? इसके महत्व और सीमाओं की चर्चा कीजिए।
दृष्टिकोण
- सामाजिक अंकेक्षण शब्द को परिभाषित करते हुए उत्तर का आरम्भ कीजिए।
- संक्षिप्त रूप में सामाजिक अंकेक्षण के महत्व पर चर्चा कीजिए।
- सामाजिक अंकेक्षण के दौरान अनुभव की जाने वाली सीमाओं का उल्लेख कीजिए।
- जहां भी आवश्यक हो उचित उदाहरण दीजिए।
- आगे की राह के साथ निष्कर्ष प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर
सामाजिक अंकेक्षण एक विधिक रूप से अनिवार्य प्रक्रिया को संदर्भित करता है। इसके अंतर्गत संभावित और विद्यमान लाभार्थियों द्वारा जमीनी स्तर की वास्तविकताओं की आधिकारिक रिकॉर्ड के साथ तुलना करके किसी कार्यक्रम के कार्यान्वयन का मूल्यांकन किया जाता है। इसका उद्देश्य जवाबदेहिता की नागरिक केन्द्रित प्रणाली को संस्थागत रूप प्रदान करना है। भारत में कुछ कानूनों यथा महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (MGNREGA), राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (NFSA) आदि में सामाजिक अंकेक्षण को अनिवार्य किया गया है।
सामाजिक अंकेक्षण का महत्व:
- विकास गतिविधियों में जन भागीदारी को बढ़ावा देता है: यह अंकेक्षण प्रक्रिया को अधिक पारदर्शी बनाता है। साथ ही यह अंकेक्षण निष्कर्षों को सरकारी योजनाओं, सेवाओं और जनोपयोगी सेवाओं (यूटिलिटीज़) के उपयोगकर्ताओं जैसे हितधारकों के एक व्यापक सार्वजनिक डोमेन में प्रस्तुत करने का प्रयास करता है।
- यह प्रदर्शन और वितरण के संबंध में सरकार के उत्तरदायित्व को सुदृढ़ बनाता है। इसमें विकास पहलों के लिए सार्वजनिक एजेंसियों द्वारा उपयोग किए जाने वाले वित्तीय और गैर-वित्तीय संसाधनों की जांच शामिल होती है। इस प्रकार यह सार्वजनिक संसाधनों के अपव्यय को भी कम करता है।
- अधिकार आधारित दृष्टिकोण: यह लाभार्थियों और अधिकारियों के मध्य शक्ति (power dynamic) को स्थानांतरित करने का कार्य करता है, भले ही यह केवल अस्थायी रूप से ही क्यों न हो। इसके परिणामस्वरूप लाभार्थी अधिकारियों से याचिकाकर्ताओं के रूप में अंतक्रिया नहीं करते हैं अपितु वे अपने अधिकार के रूप में कार्रवाई की मांग कर सकते हैं।
- अधिकारों के संबंध में जागरुकता (Awareness about entitlements): सामाजिक अंकेक्षण के कार्यान्वयन के पश्चात लाभार्थियों के जागरुकता स्तर में अत्यधिक वृद्धि हुई है। इसे आंध्र प्रदेश के उदाहरण से देखा जा सकता है।
- लीकेज को नियंत्रित करने एवं भ्रष्टाचार को कम करने के अतिरिक्त यह लोगों के मध्य ईमानदारी और सामुदायिक भावना को प्रोत्साहित करता है।
सामाजिक अंकेक्षण की सीमाएं:
- लोगों की मानसिकता और अनभिज्ञता: लोग सहभागी शासन, उनके अधिकारों और हक़ की अवधारणा को समझ नहीं पाते हैं। इसलिए सामान्य जनता विकास सम्बंधी गतिविधियों में शामिल नहीं होती है।
- किसी भी विधिक कार्यवाही का अभाव: सामाजिक अंकेक्षण को लागू नहीं करने के लिए जब तक अधिकारियों पर कठोर दंड का प्रावधान नहीं किया जाएगा तब तक वे अपने नियंत्रण में कमी नहीं करेंगे क्योंकि इससे उनकी रिश्वत प्राप्ति और सत्ता में कमी हो जाती है।
- सामाजिक अंकेक्षण आयोजित करने वाले लोगों में बही खाता, लेखांकन पद्धति जैसी तकनीकी और प्रबंधकीय क्षमता का अभाव होता है।
- सामाजिक अंकेक्षण को सफल बनाने हेतु राजनीतिक और नौकरशाही इच्छाशक्ति का अभाव है । अकाउंटेबिलिटी रिसर्च सेंटर द्वारा किए गए एक सर्वेक्षण के अनुसार 33% राजनेता और 21% नौकरशाहों द्वारा सामाजिक अंकेक्षण पर कोई अनुक्रिया नहीं की गयी। .
- जागरुकता का अभाव: 25% भारतीय निरक्षर हैं, अतः सामाजिक अंकेक्षण के बारे में जागरुकता नहीं हैं।
- पदाधिकारियों का हस्तांतरण: इससे उचित उत्तरदायित्व निर्धारित करना कठिन हो जाता है।
- बैठकों एवं अनुवर्ती जांचों (follow ups) का आयोजन समय पर नहीं किया जाता है।
इस प्रकार सामाजिक अंकेक्षण को संस्थागत रूप प्रदान करने हेतु विभिन्न कदम उठाए जाने की आवश्यकता है। इन क़दमों में स्थानीय स्तर पर सामाजिक अंकेक्षण समितियों को CAG के साथ संबद्ध करना, राजस्थान की पद यात्रा जैसे जागरुकता अभियानों का अनुसरण करना, विधिक अधिदेश प्रदान करना और आगे की कार्रवाई को सुनिश्चित करना आदि शामिल हैं। मेघालय ने ‘मेघालय सामुदायिक भागीदारी और लोक सेवा सामाजिक अंकेक्षण अधिनियम, 2017’ पारित कर अन्य राज्यों के लिए उदाहरण स्वरुप एक मॉडल प्रस्तुत किया है। यह अधिनियम सरकारी कार्यक्रमों और योजनाओं के सामाजिक अंकेक्षण को सरकारी कार्यप्रणाली का एक भाग बनाता है।
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