पृथ्वी के चुंबकत्व की घटना : कालिक और स्थानिक रूप से इसके परिवर्तन हेतु उत्तरदायी कारक
प्रश्न: पृथ्वी के चुंबकत्व की घटना के पीछे सर्वाधिक स्वीकृत कारण क्या है? कालिक और स्थानिक रूप से इसके परिवर्तन हेतु उत्तरदायी कारकों पर चर्चा कीजिए।
दृष्टिकोण
- पृथ्वी के चुंबकत्व की घटना का एक संक्षिप्त विवरण दीजिए।
- पृथ्वी के चुंबकत्व के स्रोत सम्बन्धी विभिन्न अवधारणाओं को स्पष्ट कीजिए।
- पृथ्वी के चुंबकत्व की घटना से संबंधित सर्वाधिक स्वीकृत सिद्धांत की चर्चा कीजिए।
- कालिक और स्थानिक रूप से पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र में परिवर्तन हेतु उत्तरदायी कारकों को रेखांकित कीजिए।
उत्तर
पृथ्वी एक वृहद गोलाकार चुंबक की भांति व्यवहार करती है। यह एक चुंबकीय क्षेत्र से घिरी है जो समय और स्थान के अनुसार परिवर्तित होता रहता है। यह क्षेत्र पृथ्वी के केंद्र में स्थित एक द्विध्रुवीय चुंबक द्वारा उत्पन्न होता प्रतीत होता है। द्विध्रुव का अक्ष पृथ्वी के घूर्णन अक्ष से लगभग 11 डिग्री का कोण बनाता है। यह चुंबकीय क्षेत्र पृथ्वी को सौर पवनों से सुरक्षा प्रदान करता है जो पृथ्वी की ओजोन परत के क्षरण का प्रमुख कारण हो सकती हैं।
पृथ्वी के चुंबकत्व से संबन्धित सिद्धांत:
पृथ्वी के चुम्बकत्व की व्याख्या हेतु डायनेमो प्रभाव सिद्धान्त, आयनीकरण सिद्धांत आदि जैसे कई सिद्धान्त हैं। हालाँकि, ये सभी सिद्धान्त पृथ्वी के घूर्णन से संबन्धित हैं। पृथ्वी के चुंबकत्व से संबन्धित सर्वाधिक स्वीकृत सिद्धांत डायनेमो प्रभाव सिद्धान्त है। डायनेमो प्रभाव सिद्धांत के अनुसार ‘पृथ्वी के चुंबकत्व’ की उत्पत्ति पृथ्वी के बाह्य कोर में होने वाली में ‘द्रवित धात्विक गति’ (मेटैलिक फ्लूइड मोशन) के कारण होती है। ध्यातव्य पृथ्वी के परिप्रेक्ष्य में, बाह्य कोर में द्रवित लौह और अन्य भारी तत्व पाए जाते हैं, जबकि आंतरिक कोर गुरुत्वाकर्षण के प्रभाव से ठोस अवस्था में बना रहता है। संवहनीय प्रवाह के परिणामस्वरूप पृथ्वी के बाह्य कोर में होने वाली द्रवित धात्विक गति, एक विद्युत प्रवाह का कारण बनती है जिसे “जियो-डायनेमो” कहा जाता है। यह एक विद्युत जेनरेटर के समान होता है। इस प्रकार, पृथ्वी स्वयं के चुंबकीय क्षेत्र का निर्माण करती है।
पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र में परिवर्तन हेतु उत्तरदायी कारक:
पृथ्वी का चुंबकीय क्षेत्र कालिक और स्थानिक दोनों भिन्नताओं को दर्शाता है। पृथ्वी का चुंबकीय क्षेत्र निरंतर परिवर्तित हो रहा है और जिन कारणों से यह परिवर्तित होता है उनमें भी परिवर्तन हो रहे हैं। कुछ परिवर्तन धीरे-धीरे समय के साथ घटित होते हैं जबकि कुछ परिवर्तन या तो पृथ्वी की भू-पर्पटी पर या भू-कालिक वातावरण में अनुकूल परिस्थितियों की उपस्थिति के कारण उत्पन्न होते हैं:
- सौर-कलंक चक्र (Sunspot Cycle): पृथ्वी की चुंबकीय गतिविधि तब प्रभावित होती है जब पृथ्वी द्वारा सौर-कलंक (एक सुदृढ़ चुंबकीय क्षेत्र, जो प्रत्येक 11 वर्षों के अंतराल पर उत्पन्न होते हैं) का सामना किया जाता है।
- सौर गतिविधि: जब सूर्य की सौर गतिविधि अत्यधिक सक्रिय होती है तब सूर्य से निकलने वाले विकिरण पृथ्वी के वायुमंडल को आयनित करते हैं। ध्यातव्य है कि पृथ्वी अपने अक्ष पर घूर्णन करती रहती है, ऐसे में आयानित वायुमंडल से घूर्णित पृथ्वी का सम्पर्क होने के कारण विद्युत् धारा उत्पन्न होती है तथा परिणामतः चुंबकीय क्षेत्र उत्पन्न होता है।
- पराबैंगनी किरणें: सूर्य से निकलने वाली पराबैंगनी किरणों में होने वाले दैनिक और वार्षिक परिवर्तन पृथ्वी के वायुमंडल को आयनित करते हैं, जिससे विद्युत् की उत्पत्ति होती है जो चुंबकीय क्षेत्र उत्पन्न करती है।
- चुम्बकीय चट्टानें: भू-चुंबकीय क्षेत्र में स्थानिक भिन्नता पृथ्वी की भू-पर्पटी में चुंबकीय चट्टानी परतों के वितरण के कारण होती है, जैसे- मैग्नेटाइट। हालाँकि, भू-चुंबकीय क्षेत्र के इस घटक में शीघ्र परिवर्तन नहीं होता है।
- ज्वालामुखी: भू-चुम्बकीय क्षेत्र की सुदृढ़ता में परिवर्तन के साथ ही वृहद बेसाल्टिक प्रवाह जैसी अन्तर्जात प्रक्रियाएं भी परिलक्षित होती हैं।
पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र में कालिक आधार पर परिवर्तन (वर्षों से शताब्दी तक) होते रहे हैं, जिन्हें सामान्यतः चिरकालिक परिवर्तन (secular variation) के रूप में जाना जाता है। सैकड़ों वर्षों की अवधि में चुम्बकीय दिक्पात (Magnetic Declination) में दस डिग्री तक परिवर्तन देखा जाता है। द्विध्रुवीय तीव्रता में भी समय के साथ परिवर्तन होते रहते हैं। इसके अतिरिक्त, कभी-कभी आकस्मिक घटनाएँ भी दृष्टव्य होती हैं जब उत्तरी और दक्षिणी भू-चुम्बकीय ध्रुव के स्थान भी उत्क्रमित (swap) होते हैं, जिन्हें भू-चुंबकीय उत्क्रमण (geomagnetic reversals) कहा जाता है।
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