आपदाओं के प्रति शहरी क्षेत्रों की सुभेद्यता

प्रश्न: आपदाओं के प्रति शहरी क्षेत्रों की सुभेद्यताओं पर चर्चा कीजिए। आपदाओं के दौरान ऐसे क्षेत्रों में होने वाली क्षति को न्यून करने के लिए क्या उपाय किए गए हैं? आप उन्हें और अधिक सुनम्य (रिज़िल्यन्ट) बनाने के लिए क्या उपाय सुझाएंगे?

दृष्टिकोण

  • आपदाओं के प्रति शहरी क्षेत्रों की सुभेद्यताओं को रेखांकित करते हुए परिचय दीजिए।
  • आपदाओं के दौरान ऐसे क्षेत्रों में होने वाली क्षति को न्यून करने के लिए किए गए उपायों का वर्णन कीजिए।
  • आपदा सुनम्य फ्रेमवर्क को अधिक बेहतर बनाने के अन्य उपाय सुझाइए।

उत्तर

21वीं शताब्दी में दो प्रवृतियां स्पष्ट दिखती हैं- तीव्र नगरीकरण और आपदाओं की बढ़ती तीव्रता। चूंकि क्षेत्रों में नगरीय आपदाओं से प्रभावित लोगों की संख्या में वृद्धि हो रही है, इसलिए यह स्पष्ट है कि इससे जटिल नगरीय परिवेश में मानवीय प्रतिक्रियाओं में तीव्र वृद्धि होगी। नगरीकरण, जनसंख्या गतिशीलता और जनसंख्या संकेद्रण को तीव्र करने वाली सामाजिकआर्थिक संरचनात्मक प्रक्रियाएं इन क्षेत्रों की आपदा सुभेद्यता में अत्यधिक वृद्धि करती हैं।

विश्व बैंक का अनुमान है कि वर्ष 2050 तक, चक्रवातों से संभावित रूप से प्रभावित होने वाली नगरीय जनसंख्या 310 मिलियन से बढ़कर 680 मिलियन हो जाएगी, जबकि बड़े भूकंप के जोखिम के प्रति सुभेद्य नगरीय जनसंख्या 370 मिलियन से बढ़कर 870 मिलियन हो जाएगी। विश्व आर्थिक मंच ने नगरीय नियोजन संबंधी विफलताओं की पहचान एक पृथक जोखिम कारक के रूप में की है।

निम्नलिखित विशेषताएं आपदाओं के प्रति शहरी क्षेत्रों की सुभेद्यताओं का प्रकटीकरण करती हैं:

  • उच्च जनसंख्या घनत्व वाले क्षेत्र (विशेष रूप से वे क्षेत्र जहां नए प्रवासियों का निवास होता है) की विशेषता निम्न गुणवत्ता वाले भवन हैं। प्राकृतिक भूकंपों या अन्य कारणों से इन संरचनाओं के ढहने से जीवन और संपत्ति की पर्याप्त क्षति हो सकती है।
  • अत्यधिक कंक्रीट युक्त संरचनाओं का निर्माण भूमिगत जल के पुनर्भरण को बाधित करता है, जिससे बाढ़ के जोखिम और बारंबारता में वृद्धि होती है। जल निकायों का विलुप्त होना भी सुभेद्यता को बढ़ाता है।
  • वर्ष 1984 का भोपाल गैस रिसाव या गैस पाइप-लाइन के फटने आदि जैसी औद्योगिक और/अथवा रासायनिक आपदाओं से भी समुदायों को अपूरणीय क्षति हो सकती है।

ऐसे क्षेत्रों में सुनम्यता में सुधार करने के माध्यम से क्षति को न्यून करने के लिए विभिन्न उपाय किए गए हैं:

  • पुराने भवनों का सर्वेक्षण और मरम्मत
  • SDGs और सेंडाई फ्रेमवर्क के उद्देश्यों को अपनाना: वर्ष 2030 तक आपदाओं के कारण होने वाली मृत्युओं तथा प्रभावित लोगों की संख्या में पर्याप्त कमी करना, प्रत्यक्ष आर्थिक क्षतियों में कमी करना, संधारणीय और सुनम्य भवनों के निर्माण में स्थानीय सामग्री का उपयोग करने वाले अल्पविकसित देशों का समर्थन करना आदि।
  • न्यू अर्बन एजेंडा: सभी शहरों में सभी लोगों के लिए एक संधारणीय, न्यायसंगत, सुरक्षित, समावेशी और सुनम्य भविष्य सुनिश्चित करना। स्मार्ट सिटीज, AMRUT, प्रधानमंत्री आवास योजना जैसी योजनाएं चिन्हित शहरों में सुनम्यता के निर्माण हेतु अग्रणी भूमिका निभा सकती हैं।
  • संकट के प्रति सुनम्यता को सम्मिलित करने वाली भवन संहिता को अपनाना।

यद्यपि, अधिक अग्रसक्रिय दृष्टिकोण के लिए कुछ अन्य सुझाव निम्नलिखित हैं:

  • निवेश और सार्वजनिक विनियमन, उदाहरण के लिए- भवन संहिता, क्षेत्रीकरण और भू-उपयोग नियोजन नियमों सहित सुरक्षा को बढ़ाने वाले नियमों को लागू करना।
  • वैकल्पिक वित्त की व्यवस्था करना: उदाहरण के लिए- प्राकृतिक आपदा बांड या शहरी/नगरपालिका प्रभावी जोखिम अभिशासन, उदाहरण के लिए- आपदा जोखिम न्यूनीकरण को नगरीय विनियमों सम्मिलित करना और इसे स्थानीय विकास का अभिन्न अंग बनाना।
  • आकस्मिक योजना तैयार करना: आपदा के दौरान अवसंरचना की क्षति, व्यवधान अथवा विफलता के मामले में आकस्मिक योजनाओं का निर्माण भी किया जाना चाहिए।

इन पहलों को प्राकृतिक आपदाओं के पूर्वानुमान, रोकथाम और शमन से संबद्ध और एकीकृत करने की भी आवश्यकता होगी। सुनम्य नगरीय विकास वस्तुतः निर्धनता और असमानता में कमी, पर्यावरणीय प्रबंधन और जलवायु परिवर्तन अनुकूलन के साथ-साथ चलने वाली प्रक्रिया है।

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