संविधान संशोधन की विभिन्न विधियों की व्याख्या : “संविधान की मूल संरचना” के सिद्धांत के आलोक में संशोधन करने की शक्ति पर चर्चा

प्रश्न: भारत का संविधान कठोरता और लचीलापन के मध्य एक उचित संतुलन स्थापित करता है। भारत के संविधान में संशोधन की विधियों के आलोक में इस कथन पर चर्चा कीजिए।

दृष्टिकोण

  • संविधान संशोधन की विभिन्न विधियों की व्याख्या कीजिए।
  • विभिन्न प्रकार के संशोधनों के आधार पर चर्चा कीजिए कि कैसे संविधान कठोरता और लचीलेपन के मध्य संतुलन स्थापित करता है।
  • “संविधान की मूल संरचना” के सिद्धांत के आलोक में संशोधन करने की शक्ति पर चर्चा कीजिए।

उत्तर

भारतीय संविधान परिवर्तित परिस्थितियों और आवश्यकताओं को समायोजित करने के लिए संशोधन का प्रावधान करता है। अनुच्छेद 368 दो प्रकार के संशोधन के लिए प्रावधान करता है, जबकि तीसरे प्रकार के संशोधन को अनुच्छेद 368 के प्रयोजन के लिए संशोधन नहीं माना जाता है।

इस प्रकार, तीन प्रकार से संविधान संशोधन किया जा सकता है:

  • संसद के दोनों सदनों के साधारण बहुमत द्वारा संशोधन: यह सामाजिक-राजनीतिक और वित्तीय क्षेत्र की परिवर्तित आवश्यकता को पूरा करने आवश्यक होता है। नए राज्यों का गठन, नागरिकता की प्राप्ति एवं समाप्ति, निर्वाचन क्षेत्रों का परिसीमन, अनुसूचित क्षेत्रों एवं अनुसूचित जनजातियों का प्रशासन, जनजातीय क्षेत्रों का प्रशासन इत्यादि को संसद के दोनों सदनों के साधारण बहुमत द्वारा संशोधित किया जा सकता है।
  • संसद के विशेष बहुमत द्वारा संशोधन: अनुच्छेद 368 के तहत संविधान के अधिकांश प्रावधानों को संसद के एक विशेष बहुमत (प्रत्येक सदन की कुल सदस्यों के 50% से अधिक और प्रत्येक सदन के उपस्थित और मतदान के सदस्यों के दोतिहाई बहुमत से संशोधन करने की आवश्यकता होती है)। FRs और DPSP में विशेष बहुमत द्वारा संशोधन होता है।
  • संसद के विशेष बहुमत द्वारा एवं आधे राज्य विधानमंडलों के अनुमोदन से साधारण बहुमत के द्वारा संशोधन: अनुच्छेद 368 के तहत यह संघीय संरचना से संबंधित प्रावधानों में संशोधन करने के लिए आवश्यक है। उदाहरण के लिए :-
  • राष्ट्रपति का निर्वाचन- अनुच्छेद 54 और 551 
  • केंद्र एवं राज्य कार्यकारिणी की शक्तियों का विस्तार – अनुच्छेद 73 और 1621
  • न्यायपालिका, उच्चतम न्यायालय, उच्च न्यायालयों से संबंधित अनुच्छेद- अनुच्छेद 124 से 147, 214 से 231 और
  • 2411 0 केंद्र एवं राज्य के मध्य विधायी शक्तियों का विभाजन।
  • सातवीं अनुसूची से संबद्ध कोई विषय।
  • संसद में राज्यों का प्रतिनिधित्व- चौथी अनुसूची।
  •  अनुच्छेद 368 स्वयं।

इस प्रकार, संविधान कठोरता और लचीलेपन के मध्य एक उचित संतुलन स्थापित करता है। संशोधन प्रकिया ब्रिटेन के समान आसान अथवा संयुक्त राज्य अमेरिका के समान अत्यधिक कठिन नहीं है। संविधान अत्यधिक कठोर नहीं है जिससे यह देश की उन्नति के साथ समन्वय स्थापित कर सके और परिवर्तित आवश्यकताओं और परिस्थितियों में स्वयं को अनुकूलित कर सके। साथ ही यह इतना लचीला भी नहीं है कि सत्तारूढ़ दलों द्वारा अपनी वैचारिक प्रवृति के अनुसार इसे परिवर्तित किया जा सके। महत्वपूर्ण प्रावधानों को विशेष बहुमत द्वारा संशोधित किया जा सकता है जबकि संघीय प्रावधानों के लिए राज्यों की स्वीकृति की भी आवश्यकता होती है। इस प्रकार, सरकार संसद के संकल्प की उपेक्षा नहीं कर सकती है जबकि केंद्र, राज्यों की चिंताओं की उपेक्षा नहीं कर सकता है।

इसके अतिरिक्त, केशवानंद भारती बनाम केरल वाद में उच्चतम न्यायालय ने संविधान की मूल ढांचे के सिद्धांत का प्रतिपादन किया। इस सिद्धांत के अनुसार संसद के सभी प्रावधानों में संशोधन करने के लिए संसद सक्षम है बशर्ते संविधान की मूल ढांचे के सिद्धांत और प्रावधान प्रभावित न हों। वास्तव में, इस सिद्धांत ने स्थिरता और परिवर्तन के मध्य संतुलन को अधिक सुनिश्चित किया है।

Read More

Add a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *


The reCAPTCHA verification period has expired. Please reload the page.