जनसांख्यिकीय संक्रमण की विभिन्न अवस्था : भारत के तीसरी अवस्था तक संक्रमण को दर्शाने वाले कारकों

प्रश्न: भारत जनसांख्यिकीय संक्रमण से गुजर रहा है जिसके निहितार्थ बहुआयामी हैं। विश्लेषण कीजिए।

दृष्टिकोण

  • जनसांख्यिकीय संक्रमण की विभिन्न अवस्थाओं को संक्षिप्त में परिभाषित कीजिए।
  • भारत के तीसरी अवस्था तक संक्रमण को दर्शाने वाले कारकों को सूचीबद्ध कीजिए।
  • भारत के लिए इसके निहितार्थों की विवेचना कीजिए।

उत्तर

जनसांख्यिकीय संक्रमण किसी दी गई समयावधि में किसी क्षेत्र की जनसंख्या में होने वाले परिवर्तन को संदर्भित करता है। इस परिघटना की व्याख्या निम्नलिखित चार अवस्थाओं के रूप में की जा सकती है:

  • अवस्था I: इस अवस्था में निम्न जीवन प्रत्याशा, प्रौद्योगिकी का निम्न स्तर और उच्च अशिक्षा के कारण उच्च प्रजननशीलता और उच्च मृत्यु दर बनी रहती है, जिससे नगण्य या बहुत कम – 40 जनसंख्या वृद्धि होती है।
  • अवस्था II: इस अवस्था में स्वच्छता और स्वास्थ्य सम्बन्धी दशाओं में सुधार के कारण उच्च प्रजननशीलता और मृत्यु दर में कमी के कारण जनसंख्या में वृद्धि होती है।
  • अवस्था III: इस अवस्था में जनसंख्या वृद्धि दर मंद हो जाती  है क्योंकि प्रजननशीलता में गिरावट आ जाती है और मृत्यु  दर में कमी बनी रहती है।अर्थव्यवस्था में तीव्र नगरीकरण के साथ संरचनात्मक परिवर्तन  भी देखने को मिलते हैं।
  • अवस्था IV: बढ़ता हुआ नगरीकरण, साक्षरता स्तर और प्रजनन सम्बन्धी ज्ञान परिवार के आकार को संकुचित करते हैं। प्रजननशीलता और मृत्यु दर अत्यधिक घट जाती है, जिसके परिणामस्वरूप जनसंख्या या तो स्थिर हो जाती है या मंद गति से बढ़ती है।

भारत जनसांख्यिकीय संक्रमण की तीसरी अवस्था की ओर बढ़ रहा है, जो निम्नलिखित से परिलक्षित होता है:

  • जनसंख्या वृद्धि में तीव्र गिरावट: जनांकिकीय अनुमानों से ज्ञात होता है कि भारत की जनसंख्या वृद्धि में आगामी दो दशकों में तीव्र गिरावट आएगी, 2021-31 के दौरान जनसंख्या वृद्धि 1% से कम और 2031-41 में 0.5% से कम रहेगी।
  • कुल प्रजनन दर में गिरावट: चौथे राष्ट्रीय पारिवारिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS-4) 2015-16 के अनुसार भारत की कुल प्रजनन दर (TFR) पहली बार 2.18 पर पहुंच गई है। यह औसत वैश्विक प्रतिस्थापन दर से 2.3 कम है।

2018-19 के आर्थिक सर्वेक्षण के अनुसार जनसांख्यिकीय संक्रमण सभी राज्यों में एक समान नहीं है। इस अवधि के दौरान सभी प्रमुख राज्यों में जनसंख्या वृद्धि में कमी आई है। यह कमी उन राज्यों में आयी है जिनमें ऐतिहासिक दृष्टि से जनसंख्या वृद्धि दर काफी अधिक रही है, जैसे- बिहार, उत्तरप्रदेश, राजस्थान और हरियाणा। जो राज्य जनसांख्यिकीय संक्रमण में आगे हैं वहां जनसंख्या वृद्धि में निरंतर गिरावट आएगी और 2031-41 में लगभग शून्य वृद्धि दर तक पहुंच जाएगी। जनसांख्यिकीय संक्रमण में पीछे रहने वाले राज्यों में भी 2021-41 के दौरान जनसंख्या वृद्धि में स्पष्ट गिरावट दृष्टिगोचर होगी।

निहितार्थ:

जनसांख्यिकीय संक्रमण के स्वास्थ्य सुविधाओं, वृद्धजनों की देखभाल, विद्यालय सुविधा, सेवानिवृत्ति से सम्बन्धित वित्तीय सेवाओं, सार्वजनिक पेंशन निधि, आयकर राजस्व, श्रम बल और श्रम भागीदारी दर तथा सेवानिवृत्ति की आयु के क्षेत्रों में नीति निर्माण हेतु अनेक निहितार्थ हैं। जो इस प्रकार हैं:

  • जनसांख्यिकीय लाभांश (वर्तमान में इसमें 60% जनसंख्या का भार निहित है) के लाभों को प्राप्त करने के लिए यह आवश्यक है कि युवा स्वस्थ, शिक्षित और पर्याप्त रूप से कुशल हों। यह मेक इन इण्डिया के माध्यम से रोजगार सृजन तथा स्किल इण्डिया जैसी पहलों के माध्यम से रोजगार में सुधार पर विशेष ध्यान केंद्रित करने के साथ सामाजिक क्षेत्र में निवेश को प्रोत्साहित करता है।
  • भारत में 5-14 आयु वर्ग की जनसंख्या (प्राथमिक स्कूलों में जाने वाले बच्चों की संख्या) में पहले से ही गिरावट प्रारम्भ हो गयी है। इसके कारण उनकी पहुँच को प्रभावित किए बिना स्कूलों के विलय पर अधिक ध्यान दिए जाने की आवश्यकता हो सकती है।
  • कुछ दशकों में बेहतर जीवन प्रत्याशा (longevity) और जनसांख्यिकीय लाभांश के दौर के समापन के परिणामस्वरूप आश्रित जनसंख्या में वृद्धि होगी। इसके लिए स्वास्थ्य सुविधाओं और अवसरंचना के क्षेत्र में निवेश करने की आवश्यकता होगी तथा साथ ही साथ सेवानिवृत्ति की आयु में चरणबद्ध ढंग से वृद्धि करने के योजनाएं बनानी होंगी। यह उपभोक्ता वस्तुओं के बड़े विनिर्माताओं को भी हतोत्साहित करेगा, जो भारत की युवा जनसंख्या को उपभोग की कुंजी के रूप में देखते हुए इसका लाभ उठाने की अपेक्षा करते रहे हैं।
  • राज्यों में प्रवासन प्रतिरूप को परिवर्तन प्रक्रिया से गुजरना होगा। अधिक वृद्ध आयु जनसंख्या वाले राज्यों में श्रम की कमी को बढ़ती कार्यशील आयु जनसंख्या वाले राज्यों से पूरा करना होगा। भारत को जनसंख्या नियंत्रण के लिए नीतियों से परे जाने की आवश्यकता होगी ताकि यह अपनी जनसांख्यिकीय क्षमता का पूरी तरह से उपयोग करने हेतु तकनीक-सक्षम स्वास्थ्य सेवा के कार्यान्वयन, सार्वभौमिक सामाजिक सुरक्षा, बदलती हुई रोज़गार संरचनाओं के आधार पर शिक्षा की पुनर्कल्पना तथा समग्र समावेशी और संधारणीय नीतियों की दिशा में आगे बढ़ सके।

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