भ्रष्टाचार : सामाजिक-आर्थिक विषमताएं
प्रश्न: सामाजिक-आर्थिक विषमताएं जितनी तीक्ष्ण होंगी, भ्रष्टाचार के प्रति प्रोत्साहन उतना ही अधिक होगा। विश्लेषण कीजिए।
दृष्टिकोण
- भारत में सामाजिक-आर्थिक विषमताओं एवं भ्रष्टाचार की स्थिति का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
- बढ़ती सामाजिक-आर्थिक असमानता एवं भ्रष्टाचार के मध्य विद्यमान कारणों की चर्चा कीजिए।
- समाज पर इसके प्रभाव को रेखांकित कीजिए।
उत्तर
भ्रष्टाचार एवं असमानता, दोनों की वृद्धि के मध्य एक प्रत्यक्ष संबंध विद्यमान होता है। ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल द्वारा 2018 के करप्शन परसेप्शन इंडेक्स में भारत को 180 देशों में 78वीं रैंक प्रदान की गयी है। इसके अतिरिक्त, इस सूचकांक के अंतर्गत अन्य निम्न रैंकिंग वाले देशों में भी आय असमानता के संदर्भ में निम्नस्तरीय प्रदर्शन को दर्ज किया गया है।
सामाजिक-आर्थिक विषमताएं एवं भ्रष्टाचार:
- भ्रष्टाचार का किसी राष्ट्र में मौजूद सामाजिक-आर्थिक अंतराल के साथ प्रत्यक्ष रूप से आनुपातिक सम्बन्ध होता है। यद्यपि सांस्कृतिक और ऐतिहासिक कारकों द्वारा भी इसे प्रभावित किया जाता है, परंतु सामाजिक-आर्थिक विषमताएं जितनी अधिक होती हैं भ्रष्टाचार को उतना ही अधिक बढ़ावा मिलता है।
- असमानता में वृद्धि के कारण समाज भी व्यक्तियों द्वारा आय के पुनर्वितरण हेतु की गई प्रबल मांग से प्रभावित होता है। पुनर्वितरण हेतु दबाव में वृद्धि होने के साथ ही अभिजात वर्ग अपने विशेषाधिकारों को संरक्षित करने के लिए भ्रष्टाचार का उपयोग करता है एवं निर्णय-निर्माण को प्रभावित करता है। दूसरी ओर, समाज का कमजोर वर्ग सत्ता एवं संसाधनों तक अपनी सीमित पहुंच के कारण, आवश्यक कार्यों की पूर्ति तथा समाज और अर्थव्यवस्था के सुसंचालन हेतु भ्रष्टाचार को एक आवश्यकता के रूप में स्वीकार कर लेता है।
- असमानता द्वारा नियमों एवं संस्थानों की वैधता के सन्दर्भ में लोगों की मान्यताओं को प्रतिकूल रूप से प्रभावित किया जाता है, जिस कारण भ्रष्टाचार के प्रति उनकी सहनशीलता में वृद्धि होती है। इसके परिणामस्वरूप दोनों पक्षकारों की नीतिपरकता और नैतिकता में कमी आ जाती है। जहाँ कुछ व्यक्तियों द्वारा अपने कार्यों की पूर्ति हेतु धन व्यय करना सरल हो सकता है, वहीं अन्य व्यक्तियों द्वारा उस धन को अस्वीकार करना कठिन होता है।
परिणाम
- क्रमशः समाज के इन दोनों वर्गों में शासन व्यवस्था के साथ-साथ एक-दूसरे के प्रति भी अवमान की भावना उत्पन्न होगी। इससे संपूर्ण प्रणाली एवं राष्ट्र के अधिक भ्रष्ट बनने की सम्भावना में वृद्धि होगी।
- यह दोनों पक्षों के भ्रष्ट आचरण को उचित ठहराता है। निर्धन द्वारा धनी व्यक्ति की समृद्धि को चिन्हित करते हुए उसे भ्रष्टाचार का एक परिणाम माना जाता है। जबकि एक समृद्ध व्यक्ति द्वारा निर्धन व्यक्तियों की अतिसंवेदनशीलता को भ्रष्ट नैतिकता के परिणाम के रूप में देखा जाता है।
- यह गठजोड़ (नेक्सस) राष्ट्र की सामाजिक संरचना को विखंडित करता है एवं भ्रष्टाचार के प्रति सहनशीलता का सृजन करता है। साथ ही इससे जन सामान्य में वैमनस्य उत्पन्न हो सकता है, जिसका परिणाम सामाजिक अशांति की स्थिति हो सकती है।
अतः भारत जैसे विकासशील देशों को भ्रष्टाचार से निपटने हेतु प्रथम उपाय के रूप में समृद्ध एवं निर्धन के मध्य के अंतराल को कम करना होगा।
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