विकलांग व्यक्ति : गरिमापूर्ण जीवन जीने के मार्ग में व्याप्त विभिन्न चुनौतियां

प्रश्न: विकलांग व्यक्तियों के गरिमापूर्ण जीवन जीने के मार्ग में व्याप्त विभिन्न चुनौतियां क्या हैं? समाज में उनकी प्रभावी भागीदारी सुनिश्चित करने हेतु कुछ उपायों का सुझाव दीजिए।

दृष्टिकोण

  • परिचय के रूप में, भारत में विकलांग व्यक्तियों की स्थिति का उल्लेख कीजिए। 
  • विकलांग व्यक्तियों द्वारा सामना की जाने वाली चुनौतियों को सूचीबद्ध कीजिये।
  • इन चुनौतियों से निपटने हेतु कुछ रणनीतियों पर चर्चा कीजिए।

उत्तर

विकलांग व्यक्ति अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन के अनुसार, “विकलांग व्यक्तियों में उन लोगों को शामिल किया गया है जो लंबे समय तक शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक या विभिन्न बाधाओं के साथ संवेदी विकार से ग्रस्त हैं, जो उनकी अन्य लोगों के साथ समान आधार पर समाज में प्रभावी भागीदारी में बाधक है। “ 2011 की जनगणना के अनुसार, भारत में विकलांग व्यक्तियों की संख्या 2.68 करोड़ (कुल आबादी का 2.21%), थी, जिनकी पहचान अब विशेष रूप से सक्षम या दिव्यांग व्यक्तियों के रूप में की गयी है।

विकलांग व्यक्ति (PwDs) द्वारा सामना की जाने वाली चुनौतियाँ

  • सामाजिक उपेक्षा और अभिवृत्ति संबंधी बाधाएँ
  • रुढ़िवादी व्यक्ति इन्हें घृणा के साथ देखते हैं। ऐसा मानते है कि वे अपने पिछले पापों या बुरे कर्मों रुढ़िवादी व्यक्ति हैं। 
  • प्रायः वे परिवार, सार्वजनिक स्थान और कार्यस्थल सहित विभिन्न सामाजिक व्यवस्थाओं में कलंक, पूर्वाग्रह और भेदभाव का सामना करते हैं।
  • अगम्यता
  • वे विभिन्न प्रकार की भौतिक बाधाओं (उदाहरण के लिए रैंप के बिना सार्वजनिक भवन), संचार बाधाओं, सुविधाजनक परिवहन हेतु पहुँच की कमी आदि का सामना करते हैं।
  • आर्थिक असमानता
  • विकलांगता अलगाव और आर्थिक विकृति को बढ़ाकर गरीबी उत्पन्न करती एवं उसे बढ़ाती है।
  • विकलांग व्यक्तियों के विरुद्ध भेदभाव उन्हें आर्थिक भागीदारी के समान अवसरों से वंचित करता है।
  • सूचनात्मक उपेक्षा 
  • विकलांग व्यक्तियों की अधिकांश सूचना सामग्रियों तक पहुंच नहीं है। इसके अतिरिक्त, उनके लिए अलग स्कूल स्थापित करके शैक्षिक रूप से विकलांग बच्चों को हाशिए पर रखा गया है।

विकलांग व्यक्ति (PwDs) को सशक्त बनाने हेतु आवश्यक उपाय

भारत ने दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम, 2016 को अधिनियमित किया, जिसे 2006 में विकलांग व्यक्ति अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन के साथ सामंजस्य स्थापित किया गया था। भारत ने 2006 में PwDs के लिए अपनी प्रथम राष्ट्रीय नीति तैयार की।

हालाँकि, अन्य उपाय जिनकी आवश्यकता है, निम्नलिखित हैं:

  • PwD संबंधी आंकड़े एकत्रित करना : सूचित नीति-निर्धारण के लिए विश्वसनीय और नियमित रुझानों की पहचान करने के लिए लिंग, आयु और सामाजिक आर्थिक स्थिति के आधार पर आंकड़े एकत्रित करना।
  • संस्थागत आर्किटेक्चर और नीतिगत रूपरेखा तैयार करना: संबंधित मंत्रालयों के दायरे में PwD से संबंधित विशिष्ट मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करने वाले कार्यक्रमों की शुरुआत करना। PwD से संबंधित योजनाओं के लिए सामाजिक क्षेत्र के मंत्रालयों के कुल बजट का कम से कम 5 प्रतिशत निर्धारित करना।
  • शिक्षा: PwDs के प्रति अभिवृत्ति को परिवर्तित करने के लिए मुख्यधारा के पाठ्यक्रम में विकलांगता शिष्टाचार और PwDs से सम्बंधित सफलता की कहानियों को पाठ्यक्रम में सम्मिलित करने की आवश्यकता है। इसके अतिरिक्त, स्कूलों को भौतिक वातावरण (जैसे सुलभ शौचालय), प्रवेश प्रक्रिया, पाठ्यक्रम डिजाइन, विकलांग अनुकूल खेल आदि से संबंधित बाधाओं का समाधान करके अधिक समावेशी होने की आवश्यकता है।
  • स्वास्थ्य देख-भाल : बच्चों की जाँच हेतु जिला स्तर पर प्रारम्भिक नैदानिक और सहायता केंद्र स्थापित करना तथा कम उम्र में सहायक उपकरणों के लिए विशेष आवश्यकता या जरूरतों की पहचान करना।
  • रोजगार एवं आय सृजन: कौशल विकास योजना को नेशनल ट्रस्ट की योजनाओं (जैसे, दिशा) के साथ एकीकृत करना, जिससे कि बौद्धिक रूप से अक्षम लोगों की आवश्यकताओं को पूरा किया जा सके। PwD को कौशल प्रशिक्षण, आसान ऋण एवं उद्यमिता के अवसर प्रदान करने हेतु विभिन्न मंत्रालयों की पहल को एकीकृत करना।
  • सहायक प्रौद्योगिकियां: अनुसंधान और नई प्रौद्योगिकियों के विकास में निवेश करना जैसे कि प्रोथेस्टिक उपकरण आदि।
  • अभिगम्यता और समावेशिता: नागरिकों एवं सिविल समाज की भागीदारी के साथ सुगम्य भारत अभियान को एक जन आंदोलन बनाना। चैरिटी-आधारित दृष्टिकोण के स्थान पर अधिकार-आधारित दृष्टिकोण को अपनाने की आवश्यकता है। दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम, 2016 द्वारा शिक्षा और रोजगार में आरक्षण प्रदान करके इस दिशा में सकारात्मक प्रयास किया गया है।

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