संस्कृति पर वैश्वीकरण के प्रभाव : भारतीय संस्कृति के विविध पहलू

प्रश्न: भारत के संदर्भ में संस्कृति पर वैश्वीकरण के प्रभाव का समालोचनात्मक विश्लेषण कीजिए।

दृष्टिकोण

  • वैश्वीकरण की परिघटना की संक्षिप्त चर्चा कीजिए।
  • उल्लेख कीजिए कि इसने भारतीय संस्कृति के विविध पहलुओं को किस प्रकार प्रभावित किया है।
  • उपर्युक्त बिन्दुओं के आधार पर संक्षिप्त निष्कर्ष प्रस्तुत कीजिए।

उत्तर

वैश्वीकरण मुख्यतः प्रवास, व्यापार और वित्तीय प्रवाहों के माध्यम से सम्पूर्ण विश्व के लोगों, कंपनियों एवं सरकारों के मध्य परस्पर अंतर्किया एवं एकीकरण में वृद्धि को संदर्भित करता है। आर्थिक पहलू से भिन्न इसके महत्वपूर्ण सांस्कृतिक आयाम भी है

भारत वैश्वीकरण द्वारा प्रारम्भ की गई सांस्कृतिक अंतर्किया की प्रक्रिया से अछूता नहीं रहा है। वैश्वीकरण के प्रभाव को तीन प्रक्रियाओं, यथा- समरूपीकरण, संकरण और संस्कृति के पुनरुद्धार के माध्यम से देखा जा सकता है, जिनका उदाहरणों सहित निम्नानुसार वर्णन किया गया है: 

  • भारत में परिवार प्रणाली: कुछ लोगों द्वारा यह तर्क दिया गया है कि वैश्वीकरण ने भारत में पूर्व में प्रचलित संयुक्त परिवार प्रणाली के एकल परिवार प्रणाली के रूप में समरूपीकरण की प्रवृत्ति का सृजन किया है। वृद्धाश्रमों की बढ़ती संख्या को प्राय: इस विचार के प्रस्तावकों द्वारा एक साक्ष्य के रूप में उद्धृत किया जाता है। हालांकि, अन्य यह तर्क देते हैं कि जुड़ाव की संस्कृति अभी भी विद्यमान है तथा वास्तव में संस्कृतियों का संकरण ही हुआ है। सप्लिमेंटेड न्यूक्लियर फैमिलीज़ (ऐसे एकल परिवार जिनमें माता-पिता और उनके अविवाहित बच्चों के अतिरिक्त उनका कोई ऐसा संबंधी हो जो तलाकशुदा,अविवाहित हो या जिसके जीवन-साथी की मृत्यु हो चुकी हो) की बढ़ती संख्या इसका प्रमाण प्रस्तुत करती है। तथापि अन्य लोगों द्वारा आगे तर्क दिए गए हैं कि भारत के नगरीय क्षेत्रों में विविध कारकों के कारण संयुक्त परिवारों की संख्या में हुई वृद्धि संस्कृति के पुनरुद्धार को इंगित करती है।
  • भाषा: भारत के नगरीय क्षेत्रों में अंग्रेजी भाषा के प्रयोग में कई गुना वृद्धि हुई है। हालाँकि, अंग्रेजी के बढ़ते प्रयोग को संस्कृति के समरूपीकरण की प्रवृत्ति के रूप में उद्धृत करना एक सीमित दृष्टिकोण होगा। वास्तव में संकरण के एक उदाहरण के रूप में केवल हिंदी अथवा अंग्रेजी के बजाय हिंगलिश (Hinglish) के प्रचलन की बढ़ती हुई प्रवृत्ति की पहचान किए बिना उपर्युक्त समरूपीकरण उचित नहीं होगा।

इसके अतिरिक्त, प्रादेशिक भाषाओं पर बल दिए जाने (जो समय-समय पर भाषागत मुद्दों पर विरोध प्रदर्शनों से स्पष्ट है) वाली बात को वैश्वीकरण के प्रतिरोध के एक उदाहरण के रूप में उद्धृत किया जा सकता है।

  • धर्म: यद्यपि कुछ लोगों ने यह तर्क दिया है कि समाज में धर्मनिरपेक्षतावाद में वृद्धि की प्रवृत्ति देखी जा रही है (समरूपीकरण), परन्तु विवाह जैसी प्रथाओं में धार्मिक समारोहों की निरंतरता संस्कृतियों के संकरण (मिश्रण) की ओर संकेत करती है। इसलिए, जहाँ धर्म सामाजिक जीवन के कुछ पहलुओं में महत्वपूर्ण हो गया है,वहीं अन्य पहलुओं में इसका महत्व वैश्वीकरण के कारण कम हुआ है। हालांकि, ऐसी समरूपता और संकरण के सह-अस्तित्व के साथ-साथ समाज में एक धार्मिक पुनरुत्थानवाद भी मौजूद रहा है। धर्म गुरुओं की मौजूदगी एवं ज्योतिष शास्त्र की प्रधानता, ऐसे ही पुनरुत्थानवाद की ओर संकेत करते हैं।
  • भोजन: हालाँकि, सम्पूर्ण देश में मैकडॉनल्ड्स, KFC जैसे फ़ास्ट फूड्स केन्द्रों की लोकप्रियता एक समरूपीकरण की प्रवृत्ति की ओर संकेत करती है, परन्तु यह भी सत्य है कि विदेशी व्यंजनों को स्थानीय संस्कृति के अनुरूप तथा भारतीयों के स्वादानुसार बनाने के लिए संशोधित किया जा रहा है। उदाहरणार्थ- मैकडॉनल्ड्स भी भारत में केवल शाकाहारी एवं चिकन उत्पादों की ही बिक्री कर रहा है, बीफ (गाय का मांस) उत्पादों की नहीं, जो विदेशों में प्रचलित है।

इसी प्रकार, लिव-इन-रिलेशनशिप की संख्या में वृद्धि तथा मल्टीप्लेक्स थिएटरों, वैलेंटाइन डे, फ्रेंडशिप डे आदि का प्रचलन समरूपीकरण की ओर संकेत करते हैं, इसी प्रकार संगीत एवं नृत्य के ‘सम्मिश्रित’ प्रारूप संकरण को रेखांकित करते हैं। इसके साथ-साथ देश और विदेशों में योग और परम्परागत औषधियों का प्रचलन संस्कृति के पुनरुत्थान का सूचक है। इसलिए, जहाँ वैश्वीकरण ने भारतीय संस्कृति को अनेक तरीकों से प्रभावित किया है, वहीं इसे केवल समरूपीकरण के माध्यम से समझने के बजाय समरूपीकरण, संकरण और पुनरुत्थानवाद की तीन प्रक्रियाओं के माध्यम से उत्कृष्ट तरीके से समझा जा सकता है।

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