फुटलूज उद्योग : भारत के लिए इसके महत्व

प्रश्न: फुटलूज उद्योग के उपयुक्त उदाहरणों के साथ भारत के लिए इसके महत्व पर चर्चा कीजिए।

दृष्टिकोण

  • प्रासंगिक उदाहरणों की सहायता से फुटलूज उद्योग की व्याख्या कीजिए।
  • भारत के लिए इसके महत्व को रेखांकित कीजिए।

उत्तर

फुटलूज उद्योग ऐसे उद्योग के लिए उपयोग किया जाने वाला सामान्य शब्द है जो व्यापार के स्थानिक पहलुओं (जैसे कच्चा माल, बाजार या परिवहन) के प्रति लगभग उदासीन रहता है। प्राय: इन उद्योगों की लागत स्थानिक रूप से स्थिर होती है और ये उद्योग परिवहन लागतों से प्रभावित नहीं होते हैं। इसलिए, पर्याप्त जनसंख्या वाले क्षेत्रों में इनकी अवस्थिति के लिए अनेक संभावनाएं होती हैं। इन उद्योगों के कुछ उदाहरण बेकरी, घड़ी-विनिर्माण, इलेक्ट्रानिक्स, हीरा उद्योग आदि हैं। ये उद्योग विभिन्न प्रकार के हल्के कच्चे माल का उपयोग करते हैं, इसलिए किसी भी एक प्रकार के कच्चे माल का आकर्षण प्रभाव कम हो जाता है। इसी प्रकार, सूचना प्रौद्योगिकी एवं सूचना प्रौद्योगिकी सक्षम सेवाओं (IT & ITes) को ऐसे किसी भी स्थान पर स्थापित किया जा सकता है जहां भौतिक अवसंरचना और कार्यबल उपलब्ध हो।

फुटलूज उद्योग की विशेषताएं:

 

भारत के लिए इस उद्योग का महत्व:

  • क्षेत्रीय असमानताओं का समाधान: ऐसे उद्योग क्षेत्रीय असमानताओं को कम करने हेतु एक सेतु के रूप में कार्य कर सकते हैं ,क्योंकि उनके विकास को कर छूट, भौतिक अवसंरचना विकास, भूमि अधिग्रहण और कानून तथा व्यवस्था की स्थिति जैसे उपयुक्त नीतिगते एवं शासकीय उपायों से प्रभावित किया जा सकता है। दक्षिणी राज्यों ने सूचना प्रौद्योगिकी उद्योग को विकसित करने हेतु ऐसे ही नीतिगत उपायों का प्रयोग किया है जबकि उत्तरी और पूर्वी राज्यों द्वारा इसका लाभ उठाया जाना अभी भी शेष है।
  • रोजगार सृजन क्षमता: भारी उद्योग पूँजी गहन होते हैं, लेकिन फुटलूज उद्योग सामान्यतः श्रम गहन होते हैं। इस प्रकार, इनमें रोजगार सृजन की अपार संभावनाएं हैं। विकेंद्रीकरण के साथ वस्त्र उद्योग व्यावहारिक रूप से फुटलूज उद्योग बन गया है जिसमें विशाल श्रमबल को समावेशित करने की क्षमता विद्यमान है।
  • कुशल जनसंख्या के विकास को प्रोत्साहन: फुटलूज उद्योग को गुणवत्तापूर्ण और उत्पादक बनाने के लिए कुशल श्रमिकों की आवश्यकता होती है। इस प्रकार, यह किसी क्षेत्र विशेष में कॉलेजों, प्रशिक्षण संस्थानों, प्रशिक्षु पाठ्यक्रमों आदि के विकास को प्रोत्साहित करता है उदाहरण के लिए कानपुर में प्रस्तावित भारतीय कौशल संस्थान।
  • संबद्ध/संबंधित क्षेत्रों की वृद्धि को प्रोत्साहन: यह हास्पिटैलिटी, रियल एस्टेट, मनोरंजक गतिविधियों आदि संबंधित क्षेत्रकों के विकास के माध्यम से क्षेत्र की समग्र अर्थव्यवस्था में संवृद्धि करता है। उदाहरण के लिए, सूचना प्रौद्योगिकी कार्यालयों की स्थापना ने महाराष्ट्र में निकटवर्ती क्षेत्रों के विकास को बढ़ावा दिया है।
  • संकुलनों का विकास: प्राय: उपनगरीय भूमि सस्ती होती है। शहर के बाहर का परिवेश एवं उपनगर में श्रमिकों की सरलता से उपलब्धता, बिजनेस पार्कों के निर्माण हेतु आदर्श परिस्थितियां प्रदान करते हैं। इससे शहरों की भीड़भाड़ को कम करने में भी सहायता मिलती है। निर्यात क्षमता: ऐसे उद्योगों में निर्यात की भारी संभावनाएं होती हैं। जैसे गुजरात में हीरा और अन्य उद्योगों के कारण यह भारत के सबसे बड़े निर्यातक राज्यों में से एक के रूप में उभरा है।
  • पर्यावरण अनुकूल: चूंकि ऐसी इकाइयाँ अपेक्षाकृत कम प्रदूषणकारी होती हैं इसिलए इनकी पर्यावरणीय लागत भी कम होती है।

इस प्रकार, केंद्र और राज्यों के लिए इस क्षेत्र पर ध्यान केन्द्रित करना महत्वपूर्ण है। राज्यों को ईज ऑफ डूइंग बिज़नेस में अनिवार्य रूप से सुधार करना चाहिए। केन्द्र सरकार द्वारा विभिन्न फुटलूज उद्योगों के लिए विशिष्ट कौशल विकास, ऋण योजनाओं आदि के माध्यम से आवश्यक समर्थन प्रदान करना चाहिए। केवल सामंजस्यपूर्ण प्रयास ही इस क्षेत्रक की यथार्थ क्षमता को वास्तविकता में परिणत करने में सहायता कर सकता है।

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