आर्थिक सुधारों के बाद की अवधि में, उच्च संवृद्धि दर और निर्धनता की अति व्यापकता
प्रश्न: आर्थिक सुधारों के बाद की अवधि में उच्च संवृद्धि दर दर्ज करने के बावजूद, भारत लगातार निर्धनता की अति व्यापकता का साक्षी रहा है। इस विरोधाभास की व्याख्या कीजिए और इसका समाधान करने के उपाय सुझाइए। (150 शब्द)
दृष्टिकोण
- आर्थिक सुधारों के बाद की अवधि में, उच्च संवृद्धि दर और निर्धनता की अति व्यापकता के विरोधाभास को संक्षेप में समझाइए।
- इस विरोधाभास के कारणों की चर्चा कीजिए।
- इस समस्या का समाधान करने के उपाय सुझाइए।
उत्तर
भारत विश्व की सबसे तीव्र गति से वृद्धि कर रही प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में से एक है जिसकी औसत वृद्धि दर लगभग 7% है। हालांकि, 2011 की तेंदुलकर समिति की रिपोर्ट के अनुसार भारत में गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाले लोगों (BPL) की संख्या कुल जनसँख्या का 21% है जिसके कारण भारत विश्व में सर्वाधिक निर्धन जनसंख्या वाले देशों में शामिल है। इसके साथ ही, 2016 के मानव विकास सूचकांक (HDI) में 188 देशों की सूची में भारत 131वें स्थान पर था। यह स्पष्ट रूप से इंगित करता है कि भारत में आर्थिक विकास न्यायसंगत वितरण की ओर अग्रसर नहीं है। हालांकि विगत दशक में निर्धनता में गिरावट की गति सर्वाधिक रही है, फिर भी निर्धनता से बाहर आने वाले अधिकांश लोग इसमें पुनः शामिल होने के प्रति सुभेद्य है।
उपर्युक्त विरोधाभास को निम्नलिखित कारकों के आधार पर समझाया जा सकता है:
- कृषि में निम्न वृद्धि दर जिस पर जनसंख्या का आधा भाग निर्भर है।
- श्रम का अनौपचारीकरण- कुल श्रमबल का लगभग 90% अनौपचारिक क्षेत्र में कार्यरत है जो निम्न मजदूरी और सामाजिक सुरक्षा के अभाव से ग्रस्त है।
- क्षेत्रीय असमानताएं- अधिकांश निवेश दिल्ली और मुंबई जैसे महानगरों में होता है जबकि, बिहार, उत्तर प्रदेश, ओडिशा जैसे क्षेत्र कम निवेश के कारण पिछड़े बने हुए हैं।
- स्वास्थ्य और शिक्षा जैसे सामाजिक क्षेत्रों का असमान वितरण- स्वास्थ्य बीमा की कमी, स्वास्थ्य सेवाओं पर किया जाने वाला उच्च व्यय निर्धनों को और अधिक निर्धनता की ओर ले जाता है। इसके अतिरिक्त, गुणवत्तापूर्ण शिक्षा का अभाव श्रम बाजार में प्रवेश करने के लिए लोगों को पर्याप्त कौशल प्राप्त करने से रोकता है।
- महिला श्रम सहभागिता की निम्न दर – संरचनात्मक और सामाजिक जैसी अदृश्य बाधाएं (glass ceiling) लैंगिक असमानता को उत्पन्न करती हैं।
- नक्सल प्रभावित जैसे कुछ क्षेत्रों में विकास के समक्ष विद्यमान बाधाएं।
इस प्रकार, भारत द्वारा ईज ऑफ डूइंग बिजनेस (EODB), FDI आकर्षित करने, श्रम सुधार के क्षेत्र में प्रभावशाली प्रगति करने के बावजूद न्यायसंगत वितरण पर पर्याप्त ध्यान के अभाव के कारण निर्धनता की स्थिति व्यापक बनी हुई है। इस विरोधाभास के समाधान हेतु
निम्नलिखित क़दम उठाए जाने की आवश्यकता है:
- डेटा आधारित नीति निर्माण – उदाहरण के लिए, निम्नस्तरीय प्रदर्शन करने वाले राज्यों द्वारा स्वास्थ्य नीति विकसित करने के लिए नीति आयोग की व्यापक स्वास्थ्य सूचकांक रिपोर्ट को एक स्रोत के रूप में अपनाया जा सकता है।
- बीज प्रतिस्थापन, सिंचाई, अनुबंध कृषि, भूमि पट्टे पर देने आदि के माध्यम से कृषि विकास को प्रोत्साहन प्रदान करना।
- प्रभावी कराधान नीति– विकास के परिणामस्वरूप कर -GDP अनुपात में वृद्धि होनी चाहिए, ताकि बढे हुए राजस्व का उपयोग सामाजिक-आर्थिक कल्याण कार्यों के लिए किया जा सके।
- वस्त्र, परिधानों (apparels), खाद्य प्रसंस्करण आदि जैसे श्रम गहन विनिर्माण क्षेत्रों को बढ़ावा देना।
- सामाजिक सुरक्षा परिवेश का सुदृढीकरण।
- कौशल प्रदान करना और रोजगार सृजन करना।
- श्रमबल में महिलाओं की भागीदारी में वृद्धि करना।
गरीबी उन्मूलन से संबंधित कई योजनाएं लागू की जा रही हैं। उदाहरण स्वरुप, गरीबी उन्मूलन के लिए मनरेगा की विश्व बैंक द्वारा सराहना की गई है। इसी प्रकार सामाजिक सुरक्षा और श्रम कल्याण संबंधी श्रम संहिता के लिए मसौदा विचाराधीन है। मेक इन इंडिया, स्टार्टअप इंडिया, मिड-डे-मील स्कीम, भोजन का अधिकार और शिक्षा का अधिकार साधन-संपन्न और साधनविहीन लोगों के मध्य के अंतराल को कम करते हैं। यह अनिवार्य है कि शासन तंत्र को सभी स्तरों पर गरीबी उन्मूलन के सतत विकास लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए सक्रिय रूप से निर्धनता, सामाजिक मुद्दों और सुभेद्य समूहों की आवश्यकताओं से निपटने का प्रयास करना चाहिए।
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