विस्तृत दक्षिण एशियाई क्षेत्र के भौगोलिक विस्तार का संक्षेप में उल्लेख
प्रश्न: विस्तृत दक्षिण एशियाई क्षेत्र में अस्थिरता का भारत की आंतरिक सुरक्षा पर पड़ने वाले प्रभावों का विश्लेषण कीजिए। ऐसे प्रभावों के अल्पीकरण हेतु क्या कदम उठाए जा सकते हैं?
दृष्टिकोण
- विस्तृत दक्षिण एशियाई क्षेत्र के भौगोलिक विस्तार का संक्षेप में उल्लेख कीजिए।
- इस क्षेत्र में विद्यमान अस्थिरता और इसके कारण भारत की आंतरिक सुरक्षा पर पड़ने वाले प्रभावों पर चर्चा कीजिए।
- ऐसे प्रभावों के अल्पीकरण हेतु उठाए जा सकने वाले कदमों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर
दक्षिण एशिया में अवस्थित भारतीय उपमहाद्वीप में 8 देश अर्थात् भारत, पाकिस्तान, अफगानिस्तान, नेपाल, भूटान, बांग्लादेश, श्रीलंका और मालदीव सम्मिलित हैं। भारत सभी दक्षिण एशियाई देशों के साथ सीमा साझा करता है और इसलिए, किसी भी प्रकार की अस्थिरता भारत की आंतरिक सुरक्षा को भी प्रभावित करती है।
- विगत तीन दशकों से भारत के लिए, विशेष रूप से जम्मू-कश्मीर में, पाकिस्तान आधारित इस्लामी आतंकवादी समूह आंतरिक सुरक्षा के सबसे महत्वपूर्ण खतरे के रूप में बने हुए हैं।
- अफगानिस्तान में संसाधनों की अपर्याप्तता का सामना कर रही सेनाएं पाकिस्तान के तालिबानी प्रतिनिधियों को नियंत्रित करने में समर्थ नहीं हैं। इसका परिणाम पाकिस्तान और अफगानिस्तान में एक समृद्ध गोल्डन क्रिसेंट (अवैध अफीम उत्पादक क्षेत्र) के रूप में सामने आया है। इसका उपयोग खालिस्तानी आतंकवादियों का वित्त पोषण करने के लिए किया गया था और अब यह पंजाब में मादक पदार्थों के खतरे के लिए भी उत्तरदायी है।
- नेपाल और बांग्लादेश जैसे देशों में आर्थिक वंचना और धार्मिक संघर्ष जैसे गंभीर कारकों के चलते बड़ी संख्या में लोगों ने भारत में प्रवास किया है। इससे जनसांख्यिकीय समीकरण में व्यवधान उत्पन्न हुआ है। नतीजतन, भारत में, विशेष रूप से असम और त्रिपुरा में, राजनीतिक अस्थिरता की स्थिति उत्पन्न हुई है और समय-समय पर हिंसक घटनाएँ हुई हैं।
- भारत में कार्यरत विद्रोही और आतंकवादी समूहों द्वारा छिद्रिल सीमाओं के कारण, समय-समय पर बांग्लादेश, भूटान और नेपाल का उपयोग, परिचालन अड्डों, सुविधा केंद्रों, सुरक्षित ठिकानों (सेफ हेवन) अथवा सामग्री समर्थन में सहायता हेतु किया गया है। यही कारण है कि भारत में रेड कॉरिडोर और उत्तर-पूर्वी क्षेत्रों में उग्रवाद अभी तक अस्तित्व में है। इसके साथ ही इन देशों में चीन की बढ़ती भूमिका के कारण भारत विरोधी भावनाएं भी सुदृढ़ हुई हैं।
- हालाँकि, श्रीलंका ने LTTE को समाप्त कर दिया है परंतु तमिलनाडु में LTTE के प्रति काफी सहानुभूति अभी भी बनी हुई है। LTTE से सम्बद्ध अलगाववाद की विचारधारा भारत के लिए खतरा है।
ऐसे प्रभावों के अल्पीकरण हेतु उठाए जा सकने वाले कदम निम्नलिखित हैं:
- धार्मिक कट्टरता और राजनीतिक उग्रवाद का सामाजिक-आर्थिक और सांस्कृतिक उपायों के माध्यम से समाधान किया जा सकता है। इसके लिए, सार्क की सफलता, साप्टा (साउथ एशिया प्रेफरेंशियल ट्रेड एग्रीमेंट: SAPTA) जैसे समझौते और बिम्सटेक जैसे उष-क्षेत्रीय समूह महत्वपूर्ण हैं।
- 1987 में हस्ताक्षरित सार्क रीजनल कन्वेंशन ऑन सप्रेशन ऑफ़ टेररिज्म जैसी क्षेत्रीय पहलों को सुदृढ़ करना आवश्यक है।
- अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद, मादक द्रव्यों की तस्करी और असैनिक खतरों के अन्य रूपों से निपटने के लिए इंटरपोल की तर्ज पर एक उचित रूप से समन्वित रणनीति और ख़ुफ़िया सहयोग आवश्यक है। साथ ही शरणार्थी समस्याओं के समाधान विकसित किए जाने चाहिए।
- नेपाल और भूटान के साथ बुद्धिमत्तापूर्ण व्यवहार आवश्यक है ताकि चीन का प्रभाव इन देशों के साथ हमारे दीर्घकालिक संबंधों को कमजोर न कर सके।
- राज्य/राज्य एजेंसियों और राज्य/केंद्रीय एजेंसियों के मध्य परिचालन एवं खुफिया संचार अत्यधिक महत्वपूर्ण है।
- विशेषकर साइबर सुरक्षा के लिए प्रौद्योगिकी अंगीकरण और उन्नयन आवश्यक है।
एक व्यापक समावेशी और सर्वांगीण दृष्टिकोण आवश्यक है जिससे राज्यों और समाज के गुटों को अलगाव की अनुभूति न हो और क्षेत्र में विद्यमान अस्थिरता समाप्त हो जाए।
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