भारत में वृद्धों की बढ़ती जनसंख्या का संक्षिप्त विवरण एवम उनके समक्ष आने वाली बाधायें

प्रश्न: वृद्धों की देखभाल सार्वजनिक और निजी दोनों क्षेत्रों हेतु तेजी से चिंता के एक नाजुक विषय के रूप में उभर रहा है। भारत में वृद्धों की बढ़ती जनसंख्या के संदर्भ में चर्चा कीजिए।

दृष्टिकोण

  • भारत में वृद्धों की बढ़ती जनसंख्या का एक संक्षिप्त विवरण दीजिए।
  • उनके समक्ष आने वाली उन चुनौतियों का उल्लेख कीजिये, जिन्हें सार्वजनिक क्षेत्र में संबोधित करने की आवश्यकता है।
  • इसी प्रकार, उनके समक्ष आने वाली उन बाधाओं का उल्लेख कीजिए, जिन पर निजी क्षेत्र द्वारा ध्यान दिए जाने की आवश्यकता

उत्तर

2011 की जनगणना के अनुसार, भारत में लगभग 104 मिलियन वृद्ध व्यक्ति (अर्थात् 60 वर्ष या उससे अधिक आयु के) हैं। 2001 से 2011 तक वृद्ध जनसंख्या में 35% की वृद्धि हुई है। बढ़ती जीवन प्रत्याशा, जीवन-स्तर में सुधार और चिकित्सा उन्नति के कारण उनकी जनसंख्या में तीव्र वृद्धि की उम्मीद है। यूनाइटेड नेशंस पापुलेशन फण्ड रिपोर्ट के अनुसार 2050 तक भारत में वृद्धों की संख्या तीन गुनी हो जाएगी।

वृद्धों को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है जिन पर तत्काल ध्यान दिए जाने की आवश्यकता है। इनमें सार्वजनिक क्षेत्र से संबंधित मुद्दे हैं।

  • अवसंरचनाः उन्हें भौतिक अवसंरचना और परिवहन सुविधाओं तक बेहतर पहुंच की आवश्यकता है।
  • हेल्थकेयर: जेरियाट्रिक (जराचिकित्सा) मेडिकल इकोसिस्टम में जन-शक्ति, अविकसित स्वास्थ्य अवसंरचना एवं बीमा का अभाव आदि मौजूदा अंतरालों को समाप्त किए जाने की आवश्यकता है।
  • सामाजिक समर्थन का अभाव: सरकार द्वारा प्रदान की गई सामाजिक सुरक्षा सुविधाएं जैसे वृद्धाश्रम जीर्ण-शीर्ण स्थितियों में हैं। इसके अलावा, डे केयर सेंटर्स, परामर्श केंद्र जैसी अधिकांश सुविधाएं शहरी क्षेत्रों में हैं और ग्रामीण क्षेत्रों की वृद्ध जनसंख्या की पहुंच से बाहर हैं।
  • शारीरिक और मानसिक क्षमताओं का ह्रास: जरावस्था के कारण, वृद्धों में शारीरिक कमजोरी और भावनात्मक तनाव।
  • शारीरिक हिंसा और दुर्व्यवहार: वृद्धों के विरुद्ध हिंसा और दुर्व्यवहार की घटनाएं बढ़ रही हैं, कभी-कभी उनके स्वयं के रिश्तेदारों द्वारा भी ये दुर्व्यवहार किये जाते हैं।

वृद्ध लोगों के कल्याण के लिए सरकार द्वारा विभिन्न कार्यक्रमों / विधानों जैसे वृद्ध व्यक्तियों के लिए एकीकृत कार्यक्रम, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय वृद्धावस्था पेंशन योजना तथा माता-पिता और वरिष्ठ नागरिकों का भरण पोषण तथा कल्याण अधिनियम 2007 आदि शामिल हैं। हालांकि, इन कल्याणकारी उपायों को प्रभावी ढंग से लागू करने के लिए सरकारी एजेंसियों की क्षमता में वृद्धि करने की आवश्यकता है।

इसके अलावा, निजी क्षेत्र में, वृद्धों द्वारा निम्नलिखित समस्याओं का सामना करना पड़ता है:

  • एकल परिवारों में वृद्धि और इसके परिणामस्वरूप उत्पन्न असुरक्षा: ऐसे परिवर्तनों के कारण वृद्धों को भावनात्मक, शारीरिक और वित्तीय असुरक्षा का सामना करना पड़ रहा है।
  • मनोवैज्ञानिक समस्याएं: इसमें शक्तिहीनता की भावना, हीन भावना, अवसाद, निरर्थकता, अलगाव आदि समस्याएं शामिल हैं।
  • कलंक (स्टिग्मा) : वे मनोभ्रम (डिमेंशिया), असंयमिता, वैधव्य आदि समस्याओं का सामना करते हैं, जो कभी-कभी उनके कलंकीकरण को बढ़ावा देते हैं।

उपर्युक्त निजी क्षेत्र की चुनौतियों का समाधान करने के लिए, परिवार और सामुदायिक सदस्यों को संवेदनशीलता से व्यवहार करना चाहिए और उन्हें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि वृद्धों को हाशिए पर नहीं रखा गया है और एक मजबूत समर्थन प्रणाली द्वारा उनकी दैनिक चुनौतियों को कम किया जा रहा है।

निष्कर्षत:, वृद्धों की देखभाल, निजी और सार्वजनिक, दोनों क्षेत्रों की चिंताओं के एक महत्वपूर्ण तत्व के रूप में उभर रही है तथा पारिवारिक सदस्यों, समुदाय और राज्य के सम्मिलित प्रयासों से उनकी समस्याओं को कम करना आवश्यक है। इसके अतिरिक्त, उचित कार्यक्रमों द्वारा उम्र के साथ अर्जित उनके ज्ञान का उपयोग किया जाना चाहिए।

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