चीनी उद्योग द्वारा सामना की जाने वाली समस्याओं का उल्लेख : इन समस्याओं को दूर करने के लिए सरकारी दृष्टिकोण

प्रश्न: भारत में चीनी उद्योग द्वारा सामना की जा रही समस्याओं को दूर करने के लिए राहत पैकेज से आगे और कुछ करने की आवश्यकता है। चर्चा कीजिए।

दृष्टिकोण

  • चीनी उद्योग द्वारा सामना की जाने वाली समस्याओं का उल्लेख करते हुए संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत कीजिए।
  • इन समस्याओं को दूर करने के लिए सरकारी दृष्टिकोण और उनसे जुड़ी समस्याओं पर चर्चा कीजिए।
  • इस मुद्दे से संबंधित मूल समस्याओं का उल्लेख करते समय, इस हेतु कुछ दीर्घकालिक समाधानों का सुझाव दीजिए।

उत्तर

चीनी उद्योग दूसरा सबसे बड़ा कृषि आधारित उद्योग है। लगभग 50 मिलियन गन्ना किसान और ग्रामीण जनसंख्या का 7.5 प्रतिशत भारत में गन्ने की कृषि, कटाई और संबंधित सहायक गतिविधियों में संलग्न हैं।

भारत में चीनी उद्योग को निम्नलिखित समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है जैसे कि:

  • मूल्य निर्धारण संबंधी मुद्दे
  • इस वर्ष घरेलू स्तर पर चीनी के अत्यधिक उत्पादन के कारण, गन्ना की कीमत काफी कम हो गई थी, जिससे उचित एवं लाभकारी मूल्य (Fair and Remunerative Price) को बढ़ाने की मांग में वृद्धि हुई।
  • समान्यत: राजनीतिक रूप से प्रेरित राज्य सलाहकार मूल्य (SAP) केंद्र सरकार के FRP से अधिक होता है, इस
  • प्रकार मिलों द्वारा किसानों को दी जाने वाली बकाया राशि अधिक हो जाती है।
  • नीतिगत मुद्दे
  • ० आपूर्ति बिक्री पक्ष (लेवी चीनी, मासिक निर्गमन पद्धति, निर्यात और आयात, पैकिंग में जूट बैग की आवश्यकता)
  • गन्ना नियंत्रण पक्ष (गन्ना के मूल्य निर्धारण से संबंधित मुद्दे और मिलों के मध्य न्यूनतम दूरी संबंधी मानदंड)
  • चीनी मिल : अधिकांश चीनी मिलों की पेराई क्षमता सीमित है, पुरानी मशीनरी, वसूली की न्यून दर, उत्पादन की उच्च लागत लाभ की मात्रा को कम कर देती है और इस प्रकार मिलों को अलाभकारी और रुग्ण बना देती है।
  • बढ़ती प्रतिस्पर्धा: बिना किसी नियंत्रण के गुड़/खांडसारी उद्योग द्वारा गन्ना के एक तिहाई भाग का उपयोग किया जाता है, जो चीनी मिलों में गन्ने की कमी का कारण बनता है।
  • गन्ना उत्पादन में चक्रीयता: गन्ने का उत्पादन एकल फसल (monoculture) के रूप किए जाने के कारण, गन्ने की फसल का लगातार तीन वर्षों तक बेहतर उत्पादन होता है उसके बाद आगे के वर्षों में प्रति हेक्टेयर फसल उत्पादन में निरंतर कमी होती जाती है।
  • पेराई की समयावधि का कम होना: गन्ने की पेराई की अवधि 4-6 महीने की ही होती है अत: इसकी प्रकृति मौसमी है, जो श्रमिकों के लिए वित्तीय समस्याएं उत्पन्न करती है।
  • अन्य मुद्दे: वितरण में क्षेत्रीय असंतुलन (यूपी और महाराष्ट्र), प्रति व्यक्ति उपभोग की निम्न दर, गन्ने की खेती वाले क्षेत्रों में जल संकट, ग्लोबल वार्मिंग के संभावित प्रभाव इत्यादि।

सरकार की प्रतिक्रिया

  •  CCEA द्वारा में चीनी उद्योग से संबंधित संकट से निपटने के लिए 7,000 करोड़ रुपये के पैकेज को स्वीकृति प्रदान की गयी है।
  • चीनी की कीमतों को नियंत्रण में रखने के लिए चीनी मिलों पर भंडारण सीमाओं का निर्धारण किया गया है।

ये कदम तात्कालिक, अदूरदर्शी और अपर्याप्त हैं क्योंकि ये मिलों की कार्य संचालन क्षमता और दीर्घावधि के लिए ऋण प्राप्ति को सीमित करते हैं। बफर स्टॉक, प्रतिबंधित निर्गमन तंत्र और निर्यात प्रोत्साहन नौकरशाही द्वारा की गयी विशिष्ट स्वचालित प्रतिक्रियाएँ हैं। फिर भी सरकार द्वारा इसका दीर्घकालिक समाधान नहीं किया गया है।

इस मुद्दे पर GOM द्वारा चीनी भुगतान संकट के लिए एक तीन-स्तरीय समाधान प्रस्तावित किया गया है, जैसे कि चीनी पर उपकर, गन्ने की कृषि करने वाले किसानों को उत्पादन सब्सिडी और इथेनॉल पर GST में कमी। हालांकि, चीनी उद्योग में विद्यमान संरचनात्मक समस्याओं के समाधान हेतु अन्य कदम उठाने की आवश्यकता है:

  • चीनी की कीमतों के साथ गन्ना की कीमतों को युक्तिसंगत बनाने के लिए सी. रंगराजन समिति के सुझाव का क्रियान्वयन।
  • जल मूल्य निर्धारण, प्रिसिशन फार्मिंग, सूक्ष्म सिंचाई और जलवायु स्मार्ट कृषि के माध्यम से जल उपयोग एवं संरक्षण नीतियों का क्रियान्वयन।
  • गन्ने और चीनी नियंत्रण आदेशों के उल्लंघन की संभावना को समाप्त करना।
  • न्यू मॉडल कॉन्ट्रैक्ट एक्ट के तहत वर्तमान नियंत्रण और सुरक्षा प्रणाली को कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग प्रणाली में स्थानांतरित करना।
  • लैंड सीलिंग कानूनों द्वारा तय की गई सीमाओं को समाप्त करना ताकि मिलों को भूमि का स्वामित्व प्राप्त हो सके और उनके द्वारा उत्पादन प्रणाली को बड़े पैमाने पर किफायती बनाया जा सके।
  • लोकवादी उपाय के रूप में गन्ना किसानों के पक्ष में राज्य सलाहकारी कीमतों (SAP) के अवैज्ञानिक और तात्कालिक निर्धारण को समाप्त करना।
  • न केवल अनिवार्य रूप से, बल्कि वितरण संरचना को परिवर्तित कर इथेनॉल के उपयोग को प्रोत्साहित करना।
  • तात्कालिक चीनी-निर्यात नीति के स्थान पर एक स्थिर निर्यात व्यवस्था उपलब्ध कराना।

इसके अतिरिक्त, सरकार द्वारा मिल मालिकों को नई तकनीक को अपनाने हेतु कर प्रोत्साहन भी प्रदान करना चाहिए और साथ ही चीनी उद्योग में नये युवा उद्यमियों को बढ़ावा देने हेतु अनुकूल वातावरण का भी निर्माण किया जाना चाहिए।

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