सूखे के प्रति भारत की सुभेद्यता : राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) के प्रमुख दिशा-निर्देश

प्रश्न:सूखे के प्रति भारत की सुभेद्यता पर प्रकाश डालते हुए, सूखा प्रबंधन के लिए राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) के प्रमुख दिशा-निर्देशों पर चर्चा कीजिए।

दृष्टिकोण

  • सूखे के प्रति भारत की सुभेद्यता से संबंधित प्रमुख तथ्यों पर संक्षिप्त चर्चा कीजिए।
  • भारतीय अर्थव्यवस्था पर सूखे के प्रभावों का वर्णन कीजिए।
  • NDMA के दिशा-निर्देशों एवं सूखा प्रबंधन से संबंधित चुनौतियों पर चर्चा कीजिए।
  • सूखे के द्वारा उत्पन्न चुनौतियों से निपटने के लिए सरकारी पहलों एवं नवाचारी उपायों का वर्णन कीजिए।

उत्तर

विगत शताब्दी में वर्षा के आंकड़ों से ज्ञात होता है कि प्रत्येक 8 से 9 वर्षों में गंभीर सूखे की स्थिति उत्पन्न हुई है। सरकार द्वारा संचालित सूखा शमन कार्यक्रम 225 सूखाग्रस्त जिलों को कवर करते हैं। भारत में अधिकांश निर्धन लोग सूखाग्रस्त क्षेत्रों में निवास करते हैं।

सीमित जल की परिस्थितियों का सामना करने में पारिस्थितिक तंत्र की अक्षमता, फसल उत्पादन, खाद्य सुरक्षा एवं कार्बन प्रच्छादन के संदर्भ में एक गंभीर चुनौती है। भारत के शुष्क एवं अर्द्ध-शुष्क क्षेत्रों में एक परिघटना के रूप में सूखे के प्रति पारंपरिक दृष्टिकोण में परिवर्तन हुआ है क्योंकि अब उच्च वर्षा वाले क्षेत्रों को भी प्रायः गंभीर जल संकट का सामना करना पड़ रहा है।

भारतीय अर्थव्यवस्था की सूखे के प्रति सुभेद्यता हेतु अनेक कारक संयुक्त रूप से उत्तरदायी हैं, उदाहरणस्वरूप समग्र रोजगार में कृषि की अपेक्षाकृत उच्च हिस्सेदारी एवं कमजोर ग्रामीण अवसंरचना। अपर्याप्त खाद्य वितरण तथा सरकार के राजकोषीय घाटे में खाद्य सब्सिडी की उच्च लागत भारत को सूखे के प्रति अधिक सुभेद्य बना देती है। साथ ही, सूखाग्रस्त जिलों में शेष राज्य की तुलना में मानव विकास सूचकांक निम्न रहता है।

वर्षा आधारित कृषि क्षेत्रों में सूखा छोटे और सीमांत किसानों को अत्यधिक प्रभावित करता है। इससे उनके भोजन और उनकी आजीविका की सुरक्षा को खतरा उत्पन्न हो सकता है। विगत एक दशक में आत्महत्या करने वाले किसानों में से लगभग 78 प्रतिशत छोटे किसान थे। साथ ही इनमें से 76 प्रतिशत वर्षा आधारित कृषि क्षेत्रों पर निर्भर थे।

राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) द्वारा दिए गए दिशानिर्देश: सूखा प्रबंधन हेतु दिए गए दिशा-निर्देश के तहत सूखे की परिघटना का संक्षिप्त वर्णन किया गया है। इसके अतिरिक्त इनमे केंद्र एवं राज्य सरकारों और अन्य चयनित एजेंसियों द्वारा किए जाने वाले उपायों के संबंध में कई महत्वपूर्ण एवं दूरगामी अनुशंसाएं की गयी हैं। दिशा-निर्देशों के आधार पर राज्य/केंद्रशासित प्रदेश की सरकारों द्वारा ऐसी सूखा प्रबंधन योजनाएं तैयार की जाएंगी जिनके कार्यान्वयन से सूखा संबंधी जोखिमों को कम किया जाना अपेक्षित हो। कुछ महत्वपूर्ण अनुशंसाएँ निम्नलिखित हैं:

  • सूखा प्रबंधन हेतु तैयारियों की समीक्षा/चर्चा करने के लिए संकट प्रबंधन समूह (Crisis Management Group) की नियमित बैठकों का आयोजन।
  • सूखा प्रबंधन के लिए एक कंट्रोल रूम का संचालन।
  • डेटा एवं विशेषज्ञता के साझाकरण के लिए सभी भागीदार संस्थानों में परस्पर समन्वय।
  • सूखा प्रबंधन योजनाओं का प्रभावी कार्यान्वयन।
  • योजनाओं के कार्यान्वयन की नियमित / निरंतर निगरानी सुनिश्चित करना।
  • सूखा आकलन, सूखा पूर्वानुमान, प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली और निर्णय समर्थन प्रणाली का निरंतर आधुनिकीकरण।
  • सभी हितधारकों की जागरुकता एवं तत्परता स्तर में सुधार।
  • प्रभावी सूखा प्रबंधन के लिए उन्नत क्षमता निर्माण।
  • उपयुक्त तंत्रों के माध्यम से अनुपालन व्यवस्था में सुधार।

NDMA ने अपने दिशा-निर्देशों में सूखा प्रबंधन से संबंधित अनेक मौजूदा चुनौतियों की भी पहचान की है, जैसे:

  •  विभिन्न राज्यों के अंतर्गत सूखे की घोषणा तथा सूखे के रूप में घोषित करने की समयावधि संबंधी मानदंड में भिन्नता पाई जाती है। एक राज्य से दूसरे राज्य में सूखे की गहनता के आकलन एवं सूखा निरीक्षण में प्रयुक्त होने वाले संकेतकों एवं कार्य-पद्धति में व्यापक भिन्नता पायी जाती है।
  • सूखा आंकलन एवं सूखे की घोषणा के लिए अप्रभावी डेटा साझाकरण।
  • सूखा प्रबंधन में विभिन्न एजेंसियों द्वारा सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी (ICT) संबंधी उपकरणों का अपर्याप्त उपयोग।
  • वर्षा आधारित कृषि क्षेत्रों में बांधों का अभाव, जिसके परिणामस्वरूप आवश्यकता के समय या सूखे की स्थिति में पर्याप्त जल-संग्रहण संभव नहीं होता है।
  • गाँव/तहसील स्तर पर सूखा प्रबंधन गतिविधियों में सामुदायिक भागीदारी का अभाव।
  • स्वयं सहायता समूहों (SHGs), गैर सरकारी संगठनों (NGOs) एवं कॉर्पोरेट क्षेत्रक की निम्न-स्तरीय भागीदारी।

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