ISRO के चंद्रयान 1 मिशन : चंद्रमा के संबंध में हमारी समझ
प्रश्न: व्याख्या कीजिए कि किस प्रकार ISRO के चंद्रयान 1 मिशन से चंद्रमा के प्रति हमारी वैज्ञानिक समझ में सुधार आया है।चंद्रयान 2 प्रौद्योगिकी और उद्देश्यों के संदर्भ में पूर्ववर्ती से किस प्रकार भिन्न होगा ?
दृष्टिकोण
- चन्द्रयान 1 के उद्देश्यों को संक्षेप में सूचीबद्ध कीजिए।
- रेखांकित कीजिए कि इसकी खोजों ने चंद्रमा के संबंध में हमारी समझ को कैसे बेहतर बनाया है।
- चन्द्रयान 1 और चंद्रयान 2 के मध्य अंतर को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
2008 में, ISRO द्वारा चंद्रयान 1 को PSLV C-11 द्वारा लॉन्च किया गया था। यह चंद्रमा के लिए भारत का पहला प्लेनेटरी प्रोब था जिसने चंद्रमा की कक्षा में कई प्रकार के परीक्षण संपन्न किए। यह प्रोब खनिज, भूगर्भीय और रासायनिक संघटन के अध्ययन के माध्यम से चंद्रमा की उत्पत्ति को समझने के साथ ही जल के साक्ष्यों का पता लगाने पर केन्द्रित था।
चंद्रयान -1 के तहत विभिन्न परीक्षणों के लिए अंतरराष्ट्रीय सहयोग लिया गया था। इसके प्रमुख उपकरणों के अंतर्गत टेरेन मैपिंग कैमरा (TMC), एक्स-रे और IR स्पेक्ट्रोमीटर, मून मिनरलॉजी मैपर, मून इम्पैक्ट प्रोब आदि शामिल थे। इसके द्वारा एकत्रित आंकड़ों के विश्लेषण ने निम्नलिखित तरीकों से चंद्रमा के प्रति हमारी समझ को बेहतर बनाया है:
- वाटर-आइस और हाइड्रॉक्सिल आयनों के प्रत्यक्ष प्रमाण: बहिर्मंडल में, चंद्रमा की सतह और उप-सतह में, विशेष रूप से जमे हुए जल के निक्षेप वाले अन्धकारमय ध्रुवीय क्षेत्र में। इस जल की आद्य प्रकृति सौर प्रणाली में जल की उत्पत्ति को समझने में सहायता करेगी। इसका अर्थ यह भी है कि चंद्रमा भविष्य के डीप स्पेस मिशन के लिए जल और ऑक्सीजन हेतु एक रीफ्यूअल स्टेशन हो सकता है।
- विवर्तनिकी गतिविधि: चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुवीय क्षेत्र से एकत्र किए गए आकड़ों से ज्ञात होता है कि ऐसे कई साक्ष्य उपस्थित हैं, जो यह स्थापित करते हैं कि पृथ्वी के समान ही चन्द्रमा की सतह पर भी विवर्तनिकी गतिविधियाँ घटित होती हैं।
- मैग्मा महासागर परिकल्पना की पुष्टि: अर्थात् चंद्रमा एक समय पूर्ण रूप से पिघली अवस्था में था।
- स्पाइनल (एक प्रकार का खनिज) से समृद्ध चट्टान और X-किरणों की खोज के माध्यम से चंद्रमा की सतह पर मैग्नीशियम, एल्यूमीनियम, सिलिकॉन और कैल्शियम की उपस्थिति के संकेत प्राप्त हुए हैं।
- चंद्रमा की सतह पर पहली बार सोडियम की अत्यधिक प्रचुरता के स्पष्ट साक्ष्य प्राप्त हुए हैं। यह अनुमान से अपेक्षाकृत शीतल चन्द्रमा की सतह के विकास को दर्शाता है।
चंद्रयान-1 के पश्चात् अब आगे चंद्रयान-2 का प्रक्षेपण किया जाएगा जो एक फॉलो-अप मिशन है। चंद्रयान-2 पूर्णतः स्वदेश निर्मित होगा। इस मिशन में, चंद्रयान -1 (जिसने केवल चंद्रमा की परिक्रमा की थी) के विपरीत चंद्रमा से साक्ष्य प्राप्त करने और अध्ययन करने हेतु एक लैंडर और एक रोवर को शामिल किया गया है, जबकि साथ ही ऑर्बिटर चन्द्रमा (पृथ्वी का उपग्रह) के चारों ओर परिक्रमा करेगा। चंद्रयान-1 मिशन (जिसने चंद्रमा की सतह पर क्रैश लैंडिंग की) के विपरीत ISRO द्वारा चंद्रयान-2 के लिए चंद्रमा की सतह पर एक नियंत्रित या सॉफ्ट लैंडिंग की योजना बनाई जा रही है। लैंडर (इसे विक्रम नाम दिया गया है) द्वारा सॉफ्ट लैंडिंग के साथ-साथ एक रोवर को भी तैनात किया जाएगा जो नमूनों को एकत्रित करेगा और चंद्रमा की सतह का प्रत्यक्ष रूप से निरीक्षण (मूनक्वेक, तापीय गुणों और प्लाज्मा घनत्व आदि का) करेगा।
अतः यह अन्य ग्रहों और क्षुद्रग्रहों के विकास के प्रति हमारी समझ को भी विकसित करेगा। इस ऑर्बिटर द्वारा समान किन्तु अपेक्षाकृत उन्नत उपकरणों के माध्यम से सुदूर संवेदन का कार्य किया जायेगा। लैंडर की दक्षिणी ध्रुव के निकट लैंडिंग की जाएगी, यह स्थल पूर्व के किसी भी अन्य लैंडिंग स्थल की तुलना में चंद्रमा की भूमध्य रेखा से सर्वाधिक दूर स्थित है और साथ ही यह भविष्य में ISRO द्वारा की जाने वाली मंगल या क्षुद्रग्रहों पर लैंडिंग को भी सहायता प्रदान करेगा।
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