भारत में वर्षा की स्थानिक और कालिक भिन्नता

प्रश्न: भारत में वर्षा की स्थानिक और कालिक भिन्नता पर चर्चा कीजिए। क्या हाल के वर्षों में यह पैटर्न परिवर्तित होता रहा है? परीक्षण कीजिए।

दृष्टिकोण

  • उत्तर के प्रथम भाग में,भारत के प्रमुख क्षेत्रों में वर्षभर होने वाली वर्षा के वितरण तथा इसमें विभिन्नता के कारणों का उल्लेख कीजिए।
  • दूसरे भाग में, वर्षा के पैटर्न में हाल ही में आए परिवर्तनों तथा उसके कारणों पर चर्चा कीजिए।

उत्तर

भारत में औसत् वार्षिक वर्षा लगभग 125 से.मी. होती है, परन्तु इसमें महत्वपूर्ण स्थानिक एवं कालिक विभिन्नताएँ पाई जाती

कालिक विभिन्नता:

ऋतुओं के वार्षिक चक्र के अनुसार वर्षा के वितरण में कालिक विभिन्नताएँ पायी जाती हैं। भारत में वर्षा की कालिक विभिन्नताओं के आधार पर मौसम विज्ञानियों द्वारा चार ऋतुओं का वर्णन किया गया है। इन ऋतुओं में वर्षा की मात्रा निम्नलिखित रूप में भिन्न होती है:

 शरद ऋतु

  •  भारत के कुछ भागों में बहुत कम वर्षा।
  • भू-मध्यसागर की ओर से आने वाले कुछ निम्न तीव्रता वाले शीतोष्ण चक्रवातों द्वारा भारत के उत्तर-पश्चिमी भागों में वर्षा होती है, जिसे पश्चिमी विक्षोभ कहते हैं

ग्रीष्म ऋतु

  • शुष्क और आर्द्र वायु राशियों में परस्पर होने वाले आकस्मिक संपर्क से स्थानीय तूफानों की उत्पति होती है, जो मूसलाधार वर्षा का कारण बनते हैं।

दक्षिण-पश्चिम मानसून ऋतु

  • 80% से अधिक वार्षिक वर्षा जून से सितम्बर के मध्य के चार वर्षा वाले महीनों में प्राप्त होती है।
  • इसके अंतर्गत जून के प्रथम सप्ताह में केरल, कर्नाटक, गोवा और महाराष्ट्र के तटीय भागों में मानसून के अचानक प्रस्फोट (burst) होने की सम्भावना होती है जबकि देश के आंतरिक भागों में, इसमें जुलाई के पहले सप्ताह तक विलम्ब हो सकता है।
  • मानसूनी वर्षा मुख्य रूप से उच्चावच या स्थलाकृति द्वारा नियंत्रित होती है तथा समुद्र से दूरी बढ़ने के साथ ही वर्षा की मात्रा में कमी होती जाती है।

मानसून का निवर्तन (Retreating)

  • सितंबर के अंत तक, सूर्य के दक्षिणायन होने के कारण मानसून कमज़ोर पड़ जाता है।।
  • उत्तर-भारत में मौसम शुष्क होता है परन्तु प्रायद्वीप के पूर्वी भागों में वर्षा होती है।

स्थानिक वितरण 

  • उच्च वर्षा वाले क्षेत्र (200 सेमी से अधिक): पर्वत श्रेणियों के साथ-साथ सबसे अधिक वर्षा होती है ,क्योंकि ये आने वाली आर्द्र हवाओं के समक्ष अवरोध उत्पन्न करती हैं। यथा पश्चिमी घाट के साथ-साथ उत्तर-पूर्व में उप-हिमालयी क्षेत्रों में वर्षा।
  • मध्यम वर्षा के क्षेत्र (100-200 सेमी): गुजरात के दक्षिणी भाग, पूर्वी तमिलनाडु, उड़ीसा सहित उत्तर-पूर्वी प्रायद्वीप, झारखंड, बिहार, पूर्वी मध्यप्रदेश, उप-हिमालय के साथ संलग्न उत्तरी गंगा का मैदान और कछार घाटी।
  • न्यून वर्षा के क्षेत्र (50-100 सेमी): महाद्वीपीयता का प्रभाव रखने वाले अधिकांश क्षेत्र जैसे पश्चिमी उत्तर प्रदेश, दिल्ली, हरियाणा, पंजाब, जम्मू और कश्मीर, पूर्वी राजस्थान, गुजरात और दक्कन के पहाड़ी मैदान।
  • अपर्याप्त वर्षा वाले क्षेत्र (50 से.मी. से कम): ये ऐसे शुष्क क्षेत्र हैं जो प्रायद्वीप के आंतरिक भागों में अवस्थित हैं, विशेष रूप से आंध्रप्रदेश, कर्नाटक, महाराष्ट्र, लद्दाख और पश्चिमी राजस्थान का अधिकांश क्षेत्र।

उत्तर भारत में, पश्चिम की ओर बढ़ने पर वर्ष की मात्रा घटती जाती है तथा प्रायद्वीप भारत में, तमिलनाडु के अतिरिक्त वर्षा पूर्व की ओर बढ़ने पर घटती जाती है।

भारत में वर्षा का परिवर्तनशील पैटर्न:

इस बात पर आम सहमति है कि भारत में मानसून पैटर्न तीव्रता, अवधि, आवृत्ति और स्थानिक वितरण के संदर्भ में परिवर्तित हो रहा है:

  • पिछले कुछ वर्षों में, वर्षा की अधिकतम मात्रा तीन गुना तक बढ़ी है।
  • उत्तर-पश्चिम और उत्तर-पूर्व में बाढ़ की आवृत्ति में बढ़ोतरी हुई है जबकि दक्षिण में वर्षा की मात्रा में गिरावट आई है।
  • जलवायु की प्रवृत्ति में परिवर्तन के कारण मानसून के आगमन में विलम्ब हुआ है जैसे कमजोर और प्रभावी एल-नीनो (अवधि के दौरान।
  • मानसून का समापन शीघ्र होने से वर्षा ऋतु की अवधि में कमी हो रही है।
  • मानसून ऋतु में आकस्मिक विराम चक्र देखने को मिल रहा है। साथ ही या तो बहुत कम या बिल्कुल भी वर्षा नहीं होती है।

हालांकि, परिवर्तित होते पैटर्न के लिए निश्चित कारणों को उत्तरदायी ठहराना कठिन होगा, फिर भी निम्नलिखित कारकों ने मानसून पैटर्न को प्रभावित किया है: 

  • ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन के तरंग प्रभाव (ripple effects)
  • एल-नीनो की बारंबारता और ला-नीना, इंडियन ओशन डायपोल और अटलांटिक नीनो
  • मानसून विच्छेद की अवधि, भूमध्य रेखा से उत्तर की ओर विस्तृत वर्षा प्रणालियों से संबंधित हैं 
  • वनोन्मूलन की उच्च दर

इस प्रकार, भारत के लिए यह अनिवार्य हो जाता है कि वह अन्य देशों के साथ मिलकर प्रकृति के संतुलन को पुनःस्थापित करने हेतु प्रयास करे, ताकि मानसून पैटर्न स्थायी रूप से परिवर्तित न हो सके।

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